समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष एवं मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने स्व0 प्रभाष जोशी के बारे में अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा है कि हिन्दी पत्रकारिता में प्रभाष जी एक अलग नाम है। अपने अंदाज, भाषा और तेवर के साथ उन्होंने कई दशकों तक अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई थी। तमाम पाठक उनको पढ़ने के लिए बेचेैन रहते थे तो ऐसे भी कम नहीं थे जिन्हें उनकी हर बात की आलोचना करने में रस आता था। आज वे जिंदा होते तो उनका 75 वाॅ जन्म दिवस मनाया जा रहा होता। लेकिन क्रूर काल ने तीन साल पहले हमसे वह अवसर ही छीन लिया।
श्री प्रभाष जोशी एक प्रयोगधर्मी पत्रकार थे। उन्होंने ‘‘जनसत्ता’’ को एक नया भाषा-संस्कार नए तेवर के साथ दिया। उन्होंने बाजारवाद और सांम्प्रदायिकता के खिलाफ खूब लिखा। धर्म निरपेक्षता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता बेमिसाल थी। उन्होंने कभी बड़ंे से बडे़ नेता का भी लिहाज नहीं किया। आपात काल के विरोध में उन्होंने कोई डर नहीं महसूस किया। इधर समाचार पत्रों में ‘‘पेड न्यूज’’ की बढ़त से वे बहुत चिंतित थे और लगातार अपने लेखन और वक्तव्यों में वे इसका विरोध कर रहे थे।
श्री जोशी अपनी बात पर अडिग रहने वाले इंसान थे। ‘कांगद कोरे’ उनका स्तम्भ था, जिसमें बेबाक ढंग से वे अपने जीवन प्रसंगों की भी चर्चा करते थे। समसामयिक घटनाचक्र पर पैनी निगाह रखते थे। खेल की खबर को पहले पेज पर भी महत्व देने और स्वंय खेल विशेषकर क्रिकेट मेैचों की रिपोर्टिंग करने की उन्होंने नई परम्परा बनाई थी। वैश्वीकरण के गुण दोष पर कितने ही सटीक आलेख उन्होंने लिखे। उनके अपने मूल्य और सिद्धांत थे, पर ‘जनसत्ता’ अखबार में उन्होंने सहमति को कभी खारिज नहीं किया । पत्रकारों की स्वतन्त्रता के वे सच्चे हिमायती थे। उनकी स्मृति को मेरा शतषः नमन।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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