सरकार व्यस्त, जच्चा-बच्चा परिवार की सुरक्षा के नाम पर स्वास्थ्य विभाग की तरफ से तमाम योजनाओं का क्रियान्वयन करके लाखों रूपये खर्च कर रही है परन्तु संसाधनों की कमी की वजह से जरूरतमन्दों को लाभ नहीं मिल पा रहा जैसे प्रसव के पूर्व गर्भवती महिला को बेड नहीं मिलना, प्रसव के बाद बेड खाली होने का इन्तजार तक लेबर रूम में ही डाले रखना, घर से अस्पताल के लिये समय पर वाहनों का न मिलना प्रसव रास्ते में ही हो जाना आम दिनों की बाते रहती हैं हरदोई महिला जिला अस्पताल में 64बेडवाला अस्पताल है जहाँ पर प्रतिदिन 50-60प्रसव का रिकार्ड आंकड़ों के हिसाब से दर्ज है प्रसूता को 48घण्टे रूकने का दावा जिला प्रशासन करता है क्या यह सुविधा प्रसूता को मिलनी चाहिये, मिल सकती है। कभी एक पलंग पर दो महिला कहीं बरामदा या जमीन पर प्रसूतायें पड़ी हैं नवजात शिशु माँ के साथ उसी प्रकार रखे जाते छुट्टी होने का इन्तजार किया जाता महिला अस्पताल का अल्ट्रासाउण्ड का कमरा शायद ही कभी खुला मिलता जो जबकि प्रतिदिन औसतन 25-30प्रसूताओं का अल्ट्रासाउण्ड होता है जिसमें डाक्टरों,कर्मचारियों का कमीशन तय होने के बाद वाहर से करवाया जाता है। निजी कारोबारी इन जांचों में हजारो रूपये खर्च कर देते इन सब बातों के जबाव में महिला सीएमएस डा0रंजना श्रीवास्तव का यह कहना है कि भीड़ ज्यादा है अस्पताल के विस्तारीकरण हेतु जमीन नहीं शासन को कई बार हम लिख चुके हैं जबकि अस्पताल में बाल शिशुओं के लिये बेबी इक्यूबेटर थिरैपी युनिट की मशीनें धूल खा रही हैं क्योंकि उनके लिये दक्ष टेक्नीशियन या बाल रोग विशेषज्ञ नहीं है। तब परिजनों को निजी चिकित्सकों के पास जाना मजबूरी जाहिर करता तो यह सत्य है जो स्वयं बीमार दूसरे का इलाज कैसे कर पायेगा।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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