अलगाववादियों की शब्दावली का उपयोग

Posted on 11 July 2012 by admin

भारतीय जनता पार्टी जम्मू-कश्मीर, राज्यों के मामले पर केन्द्र सरकार द्वारा नियुक्त वार्ताकारों की रपट पर टिप्पणी द्वारा श्री राधामोहन सिंह जी सह प्रभारी उ0प्र0 एवं राष्ट्रीय सदस्यता प्रमुख, भाजपा इस रपट में पाक अधिकृत (पी0ओ0के0) के स्थान पर पाक प्रशासित कश्मीर का उपयोग किया गया है। लगाववादी हमेशा ही जम्मू-कश्मीर राज्य के कुछ हिस्सों को पाक प्रशासित कश्मीर और भारत शासित हिस्सों को भारत प्रशासित कश्मीर के तौर पर सम्बोधित करते हैं। यहाॅ तक कि पाकिस्तान भी इन शब्दों का प्रयोग नहीं करता और पाक अधिकृत कश्मीर के क्षेत्र आजाद जम्मू-कश्मीर सम्बोधित करता है। इस रपट में अलगाववादियों की शब्दावली का उपयोग किया गया है।
(1) भारत पिछले 64 वर्ष से (संयुक्त राष्ट्र संघ) यू0एन0ओं0 तथा सभी अन्र्तराष्ट्रीय पर कह रह है कि पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में हमलावर की भूमिका में हैं, जम्मू-कश्मीर का विलयपुरी तरह वैध है तथा/संवैधानिक रूप से ठीक है, इस मुद्दे पर पाकिस्तान की कोई भूमिका नहीं है, जम्मू-कश्मीर राज्य जिसमें पी0ओ0के0 गिलगित-बल्तिस्तान भारत के ही वैधानिक रूप से क्षेत्र हैं। इस मामले में भारत और पाकिस्तान को जम्मू-कश्मीर के मामले में बराबरी पर नहीं रखा जा सकता है। क्योंकि पाकिस्तान हमलावर की भूमिका में है और भारत पीडि़त की। यहाॅ तक कि संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव में भी जम्मू-कश्मीर राज्य के क्षेत्र में पाकिस्तान की उपस्थिति को गौरकानूनी माना था और बिना किसी शर्त के तत्काल खाली करने का निर्देश दिया था।
(2) नई दिल्ली से भेजे गए इन वार्ताकारों ने राज्य के विकास, आय के स्रातों तथा अन्य मामलों पर विचार के लिए नियंत्रण रेखा के दोनों ओर के जन प्रतिनिधियों संयुक्त सलाहकार समितियाॅ और मिलीजुली संस्थाएं बनाने के लिए कहा है। स्थाई समाधान की खोज के लिए इन वार्ताकारों ने भारत, जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा के दोनों ओर के प्रतिनिधियों और पाकिस्तान को शामिल करने के सुझाव दिया है।
(3) वार्ताकारों ने केन्द्र सरकार और हुर्रियत के बीच जल्दी से जल्दी बातचीत करवाए जाने और बाद में नियंत्रण रेखा के दोनों ओर प्रतिनिधियों को शामिल करने तथा अन्त में पाकिस्तान से वार्ता करने का सुझाव दिया है। इस रपट में वार्ताकारों ने हुर्रियत की वार्ता से उस शर्त को स्वीकार कर लिया है। जिसमें कहा गया था कि जम्मू-कश्मीर विवाद को सुलझाने के लिए भारत-पाकिस्तान और जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा के दोनों ओर के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाए।
(4) वार्ताकारों ने समाधान की सिफाारिश करते हुए कहा है कि हमें जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा की दृष्टि से महत्व की बात भी ध्यान में रखनी चाहिए। क्योंकि यह क्षेत्र मध्य एशिया और दक्षिणी एशिया को जोड़ने वाले एक पुल की भूमिका अदा करता है। जबकि इन वार्ताकारों को कहना चाहिए था कि यह क्षेत्र भारत का मध्य एशिया, यूरोप, अफ्रीका और यूरेशिया की तरफ का प्रवेश द्वार है। वार्ताकार यह बात भी कहना भूल गए कि कश्मीर भारत की सुरक्षा की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण क्षेत्र है।
(5) इन वार्ताकारों ने 1947 में पाक अधिकृत कश्मीर से उजड़े 10 लाख लोगों, 1947 में ही पश्चिमी पाकिस्तान से आए चार लाख शरणर्थियों, 1990 से कश्मीर घाटी से निकाले गए चार लाख कश्मीरी पंडि़तों, जम्मू, लद्यख के आतंकवाद के पीडि़त लोगों और साथ ही गूजर, शिया, पहाड़ी, मुस्लिमों को जम्मू-कश्मीर का हितग्राही (स्टेकाहोल्डर) नहीं माना है।
(बी) वार्ताकारों ने संवैधानिक समिति बनाए जाने की सिफारिश की है जो 1952 में हुए (दिल्ली समझौते) के बाद से जम्मू-कश्मीर में लागू हुए सभी केन्द्रीय कानूनों और संविधान की धाराओें की समीक्षा करे। यह दिल्ली समझौता श्री शेख अब्दुल्ला और पंडि़त जवाहरलाल नेहरू के बीच दो व्यक्तियों का समझौता था। इस समझौते को जम्मू और लद्यख के लोगों ने भारी समर्थन के साथ नकारा था तथा देश के प्रमुख विपक्षी राजनीतिक दलों और राष्ट्रवादी संगठनों ने भी इसका कड़ा विरोध किया था। वार्ताकारों ने कहा है कि संवैधानिक समिति हमारे द्वारा सुझाए गए आधार पर समीक्षा करे।
(1) राज्य को दोहरा दर्जा-भारत संघ के एक हिस्से के तौर पर तथा संविधान के तहत प्राप्त विशेष दर्जा राज्य के तौर पर उसकी स्थिति।
(2) नागरिकों का दोहरा दर्जा-स्थाई निवासी का प्रमाण-पत्र प्राप्त नागरिक और भारत के नागरिक होने का दर्जा प्राप्त होगा।

(3) दिल्ली समझौता केन्द्र सरकार और राज्य के सम्बन्धों का आधार होना चाहिए। वार्ताकारों ने यहाॅ तक सुझाव दिया है कि अनुच्छेदों और कानूनों के तहत विभिन्न विषयों पर राज्यों और केन्द्र सरकार दोनों का कानून बनाने का अधिकार है वे सभी राज्य सरकार को दे देने चाहिए। इन वार्ताकारों ने यह भी सिफारिश की है कि संसद को भविष्य में कोई भी कानून जम्मू-कश्मीर में लागू करने के लिए नहीं बनाना चाहिए। इनमें अपवाद केवल आतंरिक और बाहरी सुरक्षा तथा प्रमुख आर्थिक मुद्दों से जुड़े कानून ही हो सकते है।
(3) पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर के लोगों का लोकसभा में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। उसमें 85 हजार किलोमीटर का क्षेत्र शामिल है और उस क्षेत्र के 10 लाख से अधिक शरणार्थी अपने घरों से 64 साल पहले उजाड़े गए थे और अब भी उन्हें कोई ठौर नहीं मिला है। यहाॅ तक कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पाक अधिकृत क्षेत्र के निवासियों के लिए 24 स्थान खाली पड़े हैं लेकिन इनकों भी शरणर्थियों के प्रतिनिधियों से भरने का प्रयास नहीं किया गया है।
(4) वाताकारों की रपट में 64 साल से शरणार्थी बने पश्चिमी पाक के शरणर्थियों के बारे में एक भी शब्द नहीं कहा गया है। यहाॅ तक कि उन्हें वार्ताकारों ने किसी प्रकार की मौखिक सांत्वना भी देने का प्रयास नहीं किया। इन लोगों को न मताधिकार मिला है और न ही रोजगार उच्च शिक्षा में दाखिला तथा सम्पत्ति खरीदने का अधिकार आज तक नहीं मिल पाया है।
(5) वार्ताकारों ने पाक अधिकृत कश्मीर के शरणर्थियों, कश्मीर पंडि़तों और आतंक में प्रभावित हुए जम्मू क्षेत्र के लोगों के बारे में कोई स्पष्ट सिफारिश भी नहीं की है। केवल उनकी दुर्दशा की चर्चा कर देने से उनकी समस्या का समाधान नहीं हो जाएगा।
(6) वार्ताकारों के दल ने आतंकवाद के वास्तविक कारणों और कश्मीर घाटी से 1990 में हिन्दुओं को निकाले जाने के मामले की चर्चा भी नहीं की।
(7) वार्ताकारों ने अनुच्छेद 370 के दुरूपयोग के कारण केन्द्रीय कानूनों को राज्य में लागू नहीं होने देने की भी चर्चा नहीं की। कमजोर वर्गो के लोग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग, शरणर्थियों को उनके सता और आर्थिक स्रोतों में अपना हिस्सा नहीं मिल पा रहा है। लेकिन इन मुद्दों पर वार्ताकारों ने ध्यान ही नहीं दिया है। वास्तव में, वार्ताकारों की यह रपट नेशनल कांफ्रेंस के दस्तावेज ग्रेटर आॅटोनामी, पी0डी0पी0 के दस्तावेज सेल्फ रूल, सज्जाद लोग की पुस्तक अचीवेबल नेशनल हुड, हुर्रियत कांफ्रेंस (गिलानी) तथा हुर्रियत कांफ्रेंस (मीरवाइज) ग्रुप की सिफारिश के दस्तावेज पर आधारित है। वार्ताकारों की यह सब सिफारिश जम्मू-कश्मीर राज्य के भारत में विलय की प्रक्रिया की उल्टी दिशा में ले जाएंगी। डाॅ0 श्यामा प्रसाद मुखर्जी की शहादत और जम्मू में प्रजा परिषद के आंदोलन के कारण 1953 से जम्मू-कश्मीर को देश की एकात्मा की ओर बांधने का जो प्रयास प्रारम्भ हुआ था, उसे इन वार्ताकारों की सिफारिश उल्टी दिशा में ले जाएंगी।
भारतीय जनता पार्टी देशवासियों को आह्वहन किय है कि केन्द्र सरकार के इस रवैया का डटकर विरोध करें। इस रिपोट के कारण देश की आखण्डता के सामने गम्भीर चुनौती खड़ी हो गई है। जम्मू-कश्मीर में 1952 में पहले की स्थिति वापस लाने के लिए प्रयास करने की जाति, पात और पार्टी से उपर उठकर इसका विरोध होनो चाहिए। यह चुनौती केवल भाजपा के लिए नहीं बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए है।
(4) केन्द्र और राज्य सरकार के बीच नया आर्थिक समझौता किया जाना चाहिए।
(सी) वार्ताकारों की सिफारिश है कि धारा 370 में से अस्थाई शब्द को हटाकर, इसके स्थान पर विशेष शब्द लगा देना चाहिए। जैसा कि देश के अन्त राज्यों के लिए धारा 371 आदि में उपयोग किया  गया है। पिछले कई दशकों से धारा 370 का असर कम करने के जो कदम उठाए गए, उन्हें निरस्त करके अधिक ताकतवर बनाया जाता चाहिए।
(डी) राज्यपाल और मुख्यमंत्री के लिए उर्द में उपयुक्त शब्दों को तय किया जाना चाहिए। राज्यपाल की नियुक्ति के लिए तीन नाम राज्य में विपक्ष की सलाह से तय किय जाएं और केन्द्र सरकार उनमें से एक नाम को चुन ले तथा राष्ट्रपति उसे नियुक्त कर दे।
(ई) केन्द्रीय प्रशासनिक सेवा (आई0ए0एस0 और आई0पी0एस0) के अधिकारियों के केन्द्र सरकार को कोटा 50 प्रतिशत जम्मू-कश्मीर ने है जबकि अन्य राज्यों में यह प्रतिशत 66 है। इसके बावजूद वार्ताकारों ने राज्य की प्रशासनिक सेवा का कोटा और बढ़ाए जाने की बात रपट में की है।
(एफ) पब्लिक सेफ्टी एक्ट में संशोधन, अशांत क्षेत्र कानून और ए0एफ0एस0पी0ए0 कानून को लागू करने के मुद्दे की समीक्षा करने की बात भी इन वार्ताकारों की रपट में कहीं गई है। उन्होंने कश्मीर घाटी की अनाम कब्रों की जांच के लिए न्यासिक आयोग बनाने के लिए कहा है। लेकिन इन वार्ताकारों ने अल्पसंख्यक हिन्दुओं के खिलाफ योजनाबद्ध ढंग से किये हमलों के शिकार लोगों को न्याय दिलाने के मुद्दों को कहीं नहीं उठाया है।
(जी) केन्द्र और राज्य सरकार की पिछले 60 वर्षों से चली आ रही कश्मीर घाटी को ही केन्द्रीत करके बनी सोच के कारण पिछले 60 वर्षों से उत्पन्न महत्वपूर्ण और गम्भीर विषयों पर इन वार्ताकारों ने किसी प्रकार का ध्यान नहीं दिया है।
(1) वार्ताकारों ने अपनी रपट में विधानसभा सीटों का पुनः निर्धारण किए जाने के सबसे संवेदनशील मुद्दे पर कहीं भी चर्चा नहीं की है जिससें जम्मू और लद्यख क्षेत्र के लोगों को विधानसभा और लोकसभा में न्यायोचित हिस्सा मिल सके।
(2) वार्ताकारों ने स्वीकार किया है कि राज्य में सभी स्तरों पर शासन में गड़बड़ी हैं लेकिन उन्होंने इसके लिए 64 सालों से जिम्मेदार शासनकर्ताओं के नाम नहीं लिए है। उनका मानना है कि प्रशासन में यह गडबड़ी केन्द्रीय संविधान का विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य में न होने के कारण हुई है। वार्ताकारों ने संवैधानिक संस्थाओं और आयोगों के कार्यक्षेत्र में इस राज्य को शामिल करने की सिफारिश की लेकिन उसे भी जम्मू-कश्मीर के संविधान के दायरे में बांध देने का प्रयास किया है।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com

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