शिक्षा ने किसानो में आत्मविश्वास पैदा किया है,और उनकी औषधीय खेती के प्रति जागरूकता भी बढ़ायी है। उन्हे के न्द्रीय औषधीय सगंध पौध संस्थान सीमैप ने इसके लिए प्ररित किया है। औषधीय पौधो की पौधो की खेती करने वालो किसानो के स्तर में गेहूँ और धान की खेती करने वालो किसानो के स्तर से काफी फर्क देखने को मिले है। इतना ही नही उनका बैंक बैंलेंस भी काफी अच्छा हो गया है। जी यह मै नही कह रहा हूँ यह सर्वे संस्थान के दो वैज्ञानिको की टीम ने किया है जो बाराबंकी सीता पुर और उनसे जूड़े गाँवो में गये और उन्होने देखा कि किसान कितनी तन्मयता से औषधीय पौधो की खेती में लगे हुए है । उन्ही मे एक वैज्ञानिक ने विस्तार से बताया कि बाराबंकी में तुलसी, मेंथा और खस की खेती करने वाले 91 फीसदी किसान शिक्षित है। वह संस्थान में आकर औषधीय पौधो से जूड़ी समस्त जानकारी को भी इक-ड्ढा करते है,साथ ही उनके पास सिंचाई के पर्याप्त संसाधन भी उपलब्ध है। उन्होने कहा कि अब किसान अपनी खेती को उच्च स्तर का बनाने के लिए एडवांस तकनीकी का सहारा ले रहे है, सिचाई के लिए आवश्यक उपकरणो को उपयोग कर रहे है। वह निरन्तर पता करते रहते है कि किसी चीज से लाभ है या खेती को अच्छा बनाने के लिए क्या उपास किये जाने जरूरी है। मेथा की खेती करने वाले 89.9 फीसदी,तुलसी की खेती करने वाले 90.8,खस की खेती करने वाले 93.08 फीसदी किसान एक हेक्टेयर की खेती करने पर खस से औसतन 1.50, तुलसी से 40 हजार और मेंथा से 50 हजार का मुनाफा कमा रहे है। जानकारी वरिष्ठ वैज्ञानिक राम सुरेश ने दी, सुरेश पहले धान और गेहूँ की फसल पर अध्ययन कर चुके है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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