सीताकुंड स्थित पर्यावरण पार्क जो कभी ष्षहर की ष्षान हुआ करता था वह आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। पार्क में लोगों के आकर्षण के लिए वर्षो पूर्व लगाए गए दुर्लभ किस्म के पेड़ पौधे उजड़ चुके हैं या फिर अंतिम सांसे गिन रहे हैं। स्वीमिंग पूल व झूलों की कौन कहे, यहां हरियाली तक गायब होती जा रही है। वन व उद्यान विभाग के बीच में उलझे सुविधा विहीन इस पार्क की बदहाली शायद कभी दूर हो।
तत्कालीन जिलाधिकारी ने करीब तीन दषक पूर्व गोमती नदी के तट पर पर्यावरण पार्क बनाने का प्रस्ताव बनवाकर षासन को भेजा था।षासन ने भी इसकी फौरन स्वीकृति दे दी। इतना ही नहीं षासन ने पालिका की भूमि समतल करने व पौधों को लगाने के लिए वन विभाग को खाका तैयार करने को कहा है। आर्थिक सहयोग के तौर पर कई किस्त में बजट स्वीकृति किया गया। साल भर की मषक्कत के बाद पार्क वजूद में आया। स्वीमिंग पूल, झूले व दुर्लभ प्रजाति के पेड़-पौधे पार्क का आकर्षण थे। बाद में यह षहर की षान में षुमार हो गया। पार्क की हरियाली व आकर्षण कायम रहे। इसके लिए इसे वन विभाग से उद्यान विभाग को हस्तांतरित करने की रणनीति बनाई गई। वर्ष 2003 में जिलाधिकारी ने वन मकहमे के प्रयास से पालिका की भूमि पर बनाए गए पार्क को उद्यान विभाग को हस्तांतरित करने का आदेष जारी किया। तब से आठ साल बीत गए, लेकिन यह आदेष अभी तक अमल में नहीं आ सका। बदहाली पर उद्यान विभाग के कर्मचारियों का कहना है उक्त पार्क विभाग के नाम पार्क हस्तांतरित नहीं होने से इसके रख-रखाव के लिए कोई बजट नहीं मिलता। ऐसे में हरियाली कैसे रखें। इस बाबत जब जिला उद्यान अधिकारी से सम्पर्क करने की कोषिष की गई तो उनसे सम्पर्क नहीं हो सका। हरियाली न होने अथवा पार्क की समुचित देख -रेख की कमी का कारण यह भी है तथा एक कारण और यह कि पार्क अब वन विभाग के अन्तर्गत नहीं है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com