उत्तर प्रदेश जिससे पहले ही जवाहरलाल नेहरू नेशनल सोलर मिशन (ज0ेएन0एन0एम0एस) के प्रथम चरण का अवसर चूक चुका है, द्वितीय चरण में भी झटका खा सकता है क्योंकि प्रमुख बाधाओं के समाधान में देरी हो रही है। जेएनएनएमएस भारत सरकार और राज्य सरकार की एक प्रमुख पहल है जिसमें भारत की ऊर्जा सुरक्षा चुनौती को संबोधित करते हुए पारिस्थितिकी स्थाई विकास को बढ़ावा दिया गया है। इसमें, जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने के वैश्विक प्रयास में भारत द्वारा एक बड़े योगदान का भी गठन किया जाएगा। हालांकि यह शुरूआत में महंगा है, परंतु जे0एन0एन0एम0एस का लक्ष्य 2022 तक इसकी उत्पादन लागत कम करना है। इसमें बिजली पैदा करते वक्त शून्य उत्सर्जन होता है जिससे यह वातावरण के अनुकूल है। टेक्निकल एसोसिएट्स लिमिटिड (टी0ए0एल) के अध्यक्ष एंव प्रबंध निदेषक, विष्णु अग्रवाल के अनुसार, ’’उत्तर प्रदेश में यू0एस0ए0आर भूमि जो खेती के इस्तमाल के लिए अयोग्य है और बुंदेलखंड के पहाड़ी इलाके सौर ऊर्जा स्थापना के लिए उपयुक्त है। यह उत्तर प्रदेश के लिए एक सुअवसर साबित हो सकता है।’’ गुजरात और राजस्थान में परियोजनाओं को पा लेने की दौड़ में, निवेशकों ने उत्तर प्रदेश में सौर क्षमता को अनदेखा कर दिया है, जो वर्तमान में उप्रयुक्त है। उत्तर प्रदेश में दो परियोजनाएं हैंः इरेडा योजना के तहत 4ग2 मेगावाट परियोजनाएं और एनवीवीएन योजना के तहत 5 मेगावाट परियोजनाएं। उत्तर प्रदेश को ’’निवेशक विमुख’’ माना जाता है और इसके लिए उत्तर प्रदेश की राज्य स्वामित्व उपयोगिताओं को निवेशकों में विश्वास पैदा करने की आवश्यकता है। एक स्पष्ट और प्रगतिशील ऊर्जा नीति बनाने और अपनाने की हमें सख्त आवश्यकता है। इसके अलावा बिजली निकासी की बुनियाद को भी मज़बूत करना आवश्यक है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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