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तृतीय श्रेणी कर्मचारी संघ - पदोन्नतियों में आरक्षण तथा परिणामी ज्येष्ठता

Posted on 07 June 2012 by admin

उत्तर प्रदेश सरकार ने कर्मचारियों की पदोन्नतियों में आरक्षण तथा परिणामी ज्येष्ठता के सम्बन्ध में मा0 सर्वोच्च न्यायालय में योजित याचिका संख्या-2608/2011 मंे दिनांक 27 अप्रैल, 2012 को पारित निर्णय के अनुसार कार्मिक अनुभाग-2 के शासनादेश संख्या-4/1/2002 टीसी-का-2/2012 दिनाॅंक 8 मई, 2012 तथा 13 मई, 2012 के द्वारा आरक्षण समाप्त कर दिया गया है । लेकिन विधान परिषद् सचिवालय में सरकार के शासनादेशों के लागू होने के बाद भी प्रमुख सचिव श्री प्रताप वीरेन्द्र कुशवाहा द्वारा नियमांे की गलत व्याख्या करने के कारण एक अत्यन्त कनिष्ठ अनुसूचित जाति के अनुसचिव श्री बृजेश चन्द्र की आरक्षण के अन्तर्गत प्रोन्नति करने पर अडिग है ।
विधान परिषद् की वास्तविक कोटिक्रम सूची (ज्येष्ठता सूची) के वैभागिक आदेश संख्या-3480/वि0प0, दिनाॅंक 18 दिसम्बर,1991 तथा वैभागिक आदेश संख्या-1246/वि0प0, दिनाॅंक 30 जून, 1994 में अंकित अधिकारियों/कर्मचारियों की प्रोन्नतियाॅं नहीं की जा रही है। क्योकि एक अत्यन्त कनिष्ठ अनुसूचित जाति के कर्मचारी श्री बृजेश चन्द्र, जो कि वरिष्ठता क्रम में एकल पात्रता सूची के अनुसार 31वें क्रमांक पर अंकित हैं, को प्रोन्नति देने के लिए क्रमांक दो पर लाते हुये प्रमुख सचिव ने अपने नेतृत्व में, अपने ही निजी सचिव को चयन समिति का सदस्य बनाते हुए, अवैधानिक रूप से अनुमोदित करा लिया । इस चयन समिति के अन्य सदस्य, जोकि अनुभाग अधिकारी स्तर के हैं तथा चयन समिति के सदस्य हो ही नहीं सकते हैं, को चयन समिति का ’’सहयोगी समिति सदस्य’’ नामित कर दिया। क्योंकि छोटे पद का अधिकारी अपने से उच्च पदों पर चयन की प्रक्रिया में शामिल ही नहीं हो सकता है ।
विधान परिषद् में चयन प्रक्रिया के भी दो मापदण्ड अपनाये गये हैं । निजी सचिव संवर्ग की प्रोन्नतियों में किसी भी प्रकार की चयन समिति का गठन नहीं किया गया और बिना चयन समिति के सर्वश्री रामनरेश, कृष्ण चन्द्र, महेन्द्र नारायण सक्सेना, समर सिंह, बाल कृष्ण आदि जैसे सभी अनारक्षित कर्मचारियों को प्रोन्नति आदेश जारी कर दिये गये जबकि दूसरे संवर्ग (अनुसचिव/अनुभाग अधिकारी संवर्ग) में अवैध चयन समिति का गठन करके चयन का कार्य किया गया । अर्थात एक संवर्ग में चयन समिति का गठन हुआ जबकि दूसरे संवर्ग में चयन समिति का गठन नहीं किया गया ।
उल्लेखनीय है कि विधान सभा सचिवालय में समान परिस्थितियों के रहते हुए प्रमुख सचिव, श्री प्रदीप कुमार दुबे ने शासनादेश के अनुसार विज्ञप्ति/प्रकीर्ण संख्या-713,714, 715, 716, 718,719, 720, 721, 722, 723 तथा 725/वि0स0-6/97, दिनाॅंक 15 मई, 2012 के द्वारा ज्येष्ठता के आधार पर प्रोन्नतियाॅं प्रदान कर दी किन्तु विधान परिषद् के प्रमुख सचिव, श्री प्रताप वीरेन्द्र कुशवाहा राज्य सरकार के शासनादेशों का उल्लंघन कर रहे हैं ।
प्रमुख सचिव, विधान परिषद् के अडि़यल रूख के कारण विधान परिषद् के कर्मचारियों की यूनियन की माॅंग तथा मा0 सभापति जी के निर्देशानुसार शासन के कार्मिक विभाग की राय प्राप्त होने के बाद भी प्रमुख सचिव, शासनादेश के विरूद्ध कार्य करने पर अड़े हुये हैं तथा इस सम्बन्ध में कई विधान परिषद् के सदस्यों ने माननीय मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखंे । मा0 मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव श्री आलोक कुमार ने दिनाॅंक 29/30 मई, 2012 को शासनादेशों के अनुसार 3 दिन मंे एकल पात्रता सूची बनाकर प्रोन्नतियाॅं करने के निर्देश भी दिये किन्तु माननीय मुख्यमंत्री के निर्देशों की अवहेलना करते हुये प्रमुख सचिव श्री कुशवाहा ने कोई कार्यवाही नहीं की । प्रमुख सचिव, विधान परिषद् की हठधर्मिता के कारण ही सचिवालय के अधिकारियां कर्मचारियों ने एक दिन का सांकेतिक विरोध काली पट्टी बाॅंध कर भी किया लेकिन प्रमुख सचिव पर लोकतांत्रिक विरोध का भी प्रभाव नहीं पड़ा ।
विधान परिषद् सचिवालय की विडम्बना यह है कि इस उच्च सदन के सदस्य मा0 मुख्यमंत्री स्वयं है फिर भी शासनादेशों के विपरीत सेवानिवृत्त के बाद संविदा पर दो वर्ष जून, 2013 तक के लिए नियुक्त प्रमुख सचिव श्री प्रताप वीरेन्द्र कुशवाहा अपनी पूर्ववर्ती सरकार के प्रतिनिधि बनकर पिछली सरकार का एजेण्डा लागू करवा रहे हैं । वर्तमान सरकार के शासनादेशों से विधान परिषद् के कर्मचारी लाभान्वित होने से वंचित हैं तथा अत्यन्त निराश व हताश हो रहे हैं। यह निराशा व हताशा वर्तमान बजट सत्र में बहुत जल्द कब विस्फोट का रूप ले लेगी, जिसके लिए मुख्य रूप से विधान परिषद् सचिवालय के प्रमुख सचिव श्री प्रताप वीरेन्द्र कुशवाहा ही जिम्मेदार होगें ।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com

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