यूपीए सरकार ने 2009 के लोकसभा चुनाव में दोबारा सत्ता़ में आने के बाद अपने तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा कर लिया है। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए जिस आम आदमी का हितैषी होने का प्रचार करती है वही आम आदमी इस सरकार के कुशासन का सबसे बड़ा शिकार बना है। कुशासन, भ्रष्टाचार और उदासीनता के कारण गरीब आदमी का दुख, उपेक्षा और पीड़ा सभी हदों को पार कर चुकी है। सच्चाई तो यह है कि भारत के विकास की कहानी के सभी दावे संदेह और अविश्वापस के घेरे में आ गए हैं। कांग्रेस के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार की नीतिगत विफलताओं और उसके खराब शासन के कारण दुनिया भर में भारत की साख गिरी है। घिसट-घिसटकर चलना यूपीए-2 की विशेषता बन गई है। उम्मीद का माहौल खत्म हो गया है और भारत के एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरने के सपने पर अब न केवल तटस्थ पर्यवेक्षक बल्कि ऐसे लोग भी गंभीरता से सवाल उठा रहे हैं जो इस सरकार के विशेष सलाहकार हैं। यह सब इस महान देश की असाधारण सामर्थन और इसकी जनता की असीम क्षमता के बावजूद हो रहा है। श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए सरकार ने उम्मीद, उत्साह, भागीदारी, वास्तविक विकास, मंहगाई के ठोस प्रबंधन और सामान्य सद्भावना और आशा की महान विरासत छोड़ी थी जिसकी वजह से भारत को नई ऊंचाईयां छूने को मिली और भारत एक महत्वपूर्ण देश के रूप में उभरकर सामने आया था। आज इसकी जगह अंधकार और निराशा का माहौल है। इस सभी का कारण ढूंढना कोई बहुत मुश्किल नहीं है। एक सफल सरकार चलाने और किसी भी कार्यक्रम को लागू करने के लिए तीन चीजें आवश्यक हैं। पहला नेतृत्व ऐसा होना चाहिए जो फैसले लेने और उन्हें लागू करने की क्षमता रखता हो। दूसरा सरकार की विश्वसनीयता है और तीसरी महत्वपूर्ण बात है सरकार की साख। प्रधानमंत्री को स्वाभाविक रूप से देश और सरकार का नेता होना चाहिए और नीतिगत मामलों में उनकी ही बात मानी जानी चाहिए। डा. मनमोहन सिंह दोहरी कसौटी पर खरा उतरने में एकदम ही नाकाम रहे हैं। देश में न केवल दोहरा नेतृत्व है बल्कि 7 रेसकोर्स रोड और 10 जनपथ की दूरी बढ़ती जा रही है। नीतिगत पहलों पर भी वे एकमत नहीं हैं। सरकार मंत्रियों और गठबंधन के सहयोगियों के बीच कोई तालमेल नहीं है। प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी है कि वे चीजों को दुरूस्त रखें। हांलाकि हर दिन इस बात की पुष्टि कराई जाती है कि प्रधानमंत्री अपने पद पर आसीन हैं लेकिन उन्हें अधिकार प्राप्त नहीं है। उन्हें देखकर ऐसा लगता है जैसे वह एक सीईओ की तरह काम कर रहे हैं, जिसे एक कम्पानी के बोर्ड से निर्देश मिलते हैं जिसके चैयरमैन के पास सारे अधिकार हैं लेकिन वास्तव में कोई जवाबदेही नहीं है।
नीतिगत विफलता और मुद्रास्फीति
नीतिगत विफलता और भ्रष्टा्चार के परिणाम चारों तरफ दिखाई दे रहे हैं। निवेश कम हुआ है, औद्योगिक माहौल बिल्कुल अनुकूल नहीं है और भ्रष्टाचार ने मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। अर्थव्यवस्था में मंदी का दौर है, अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग अनुकूल नहीं हैं और रूपया गिरा है डॉलर के मुकाबले रूपये का 22 प्रतिशत अवमूल्यमन हो चुका है। डॉलर मंहगा होने के कारण अब छात्रों, पर्यटकों और सरकार को ज्यादा भुगतान करना पड़ेगा। वृद्धि और विकास के लिए जरूरी कई नीतिगत पहल अधर में लटके पड़ी हैं क्योंकि सरकार और यूपीए के भीतर न केवल स्पष्टीता और आम सहमति का अभाव है बल्कि कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ मंत्री भी अलग-अलग भाषा बोल रहे हैं। इसके लिए प्रधानमंत्री के पास राजनैतिक अधिकार होना जरूरी है जो दुर्भाग्य से उपलब्ध नहीं है। निष्क्रियता और भ्रष्टाचार के लिए गठबंधन की राजनीति की मजबूरी का बहाना नहीं बनाया जा सकता। विपक्ष के साथ सहमति बनाने का काम एकतरफा नहीं हो सकता जबकि वरिष्ठ मंत्री राज्यों के साथ, विपक्ष से निपटते समय अहंकार वाली बयानबाजी करते हैं और विपक्ष द्वारा शासित राज्यों के लिए परेशानियां खड़ी करने में कोई कसर नहीं छोड़ते।
मुद्रास्फीति खासतौर से खाद्यान्नों की कीमतें एक बार फिर बढ़ने के कारण न केवल गरीब आदमी का जीवन दूभर हो गया है बल्कि मध्यम वर्ग के लिए भी काफी मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। ऐसा लगता है कि सरकार ने हाथ खड़े कर दिये हैं। उसके पास खाद्यान्नों की बढ़ती कीमतों की समस्या से निपटने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं है जिसके कारण अर्थव्यवस्थाक लम्बे अरसे से चैपट पड़ी है। यह एक विडम्बना ही है कि भारतीय किसानों की कड़ी मेहनत के कारण अनाज के रिकॉर्ड उत्पादन के बावजूद, अनाज खुले में सड़ रहा है क्योंकि भंडारण की पर्याप्त सुविधा नहीं है और अत्यधिक गरीब और हाशिये पर चले गए लोगों को खाना नसीब नहीं हो रहा है। सरकार के पास इस गंभीर मुद्दे से निपटने के लिए कोई रोडमैप नहीं है और यह स्थिति बार-बार पैदा हो रही है। अर्थव्यवस्था का प्रबंधन खासतौर से खाद्य अर्थव्यवस्था घोर असंतोषजनक है जबकि पिछले 8 वर्ष से एक जाने-माने अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री हैं। पेट्रोल की कीमत पर एक दिन में 7 रुपये से अधिेक की बढ़ोतरी आज तक कभी नही हुअी। अपनी तीसरी वर्षगांठ पर यूपीए के द्वारा देश के गरीब जनता को दिया गया एक क्रूर उपहार हैं।
भ्रष्टाचार यूपीए सरकार का अभिन्न अंग
भाजपा ने कुछ समय पहले अपनी पिछली राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठकों में स्पैक्ट्रम मत व्यक्त किया था कि आजादी के बाद सबसे भ्रष्ट केन्द्र सरकार का नेतृत्व डा. मनमोहन सिंह कर रहे हैं। इस अवधारणा में बदलाव की कोई वजह नहीं दिखाई देती। भ्रष्टोचार करना और भ्रष्टाचार करने वाले को संरक्षण देना उनके शासन की विशेषता बन गई है। यहां तक कि गठबंधन के सहयोगियों और कांग्रेस पार्टी से जुड़े लोगों की भ्रष्टाचार में लिप्ततता को लेकर अलग-अलग मानदंड बना दिए गए हैं। मौजूदा गृह मंत्री पी. चिदम्बरम जब वित्त मंत्री थे तो उस समय 2जी घोटाला हुआ जो आजादी के बाद राजनीतिक भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा मामला है, इसमें उनकी खुद की भूमिका का काफी संदेह के घेरे में है और इसकी निष्पक्ष जांच करने की आवश्यकता है। फिर भी वह प्रधानमंत्री के निर्विवाद विश्वासपात्र बने हुए हैं। जिस तरह से अत्यधिक संदेहपूर्ण परिस्थितियों में विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) ने होल्डिंग कंपनियों के जरिये एयरसेल मैक्सिस सौदे को मंजूरी दी उसे लेकर अनेक गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। इस सौदे में श्री चिदम्बंरम के परिवार के सदस्य कथित रूप से शामिल हैं। इस सौदे की सीबीआई जांच कर रही है जिसमें तत्कालीन दूरसंचार मंत्री श्री मारन की भूमिका की भी जांच की जा रही है।
आदर्श घोटाले में महाराष्ट्र के अनेक कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों के नाम आए हैं और हैरानी की बात यह है कि उनमें से कई केन्द्रे सरकार में मंत्री बने हुए हैं। राष्ट्रमंडल खेल घोटाले में दिल्लीै की मुख्य मंत्री शीला दीक्षित को लगातार संरक्षण दिया जा रहा है जबकि इस मामले की जांच के लिए खुद प्रधानमंत्री द्वारा गठित शुंगलू समिति की रिपोर्ट में उनकी भूमिका के खिलाफ गंभीर टिप्पणियां की गई हैं। हाल ही में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में एंट्रिक्स-देवास सौदे को शासन व्यवस्था की विफलता का अनूठा उदाहरण करार दिया गया। रिपोर्ट में यह टिप्पणी की गई है कि इसरो के पूर्व प्रमुख और अन्य अधिकारियों ने सरकार के हितों की अनदेखी की और निजी कंपनी देवास को फायदा पहुंचाया। अंतरिक्ष मंत्रालय सीधे तौर पर प्रधानमंत्री के अधीन है, इसके बावजूद ऐसा हुआ। कैग ने एयर इंडिया के विमानों की खरीद में बहुत ज्यादा भ्रष्टाचार पाया। उर्वरक सब्सिडी के मामले में भी भारी भ्रष्टाचार हुआ है। हर रोज एक नया घोटाला या घपला सामने आ रहा है। कैग ने अपनी रिपोर्ट मे कोयला ब्लाॅक के आवंटन मे भी भयंकर अनियमिताओं को उजागर किया है। कैग ने दिल्ली हवाई अड्डे के निजीकरण में भी भयंकर अनियमितताओं को पाया है।
काले धन का पता लगाने के लिए प्रभावी और अर्थपूर्ण समयबद्ध कार्यक्रम चलाने तथा विदेशों में काला धन जमा करने वालों के नाम जनता के सामने लाने के लिए सरकार में राजनैतिक इच्छा शक्ति का अभाव है। सरकार जानती है कि अगर यह नाम उजागर हो गए तो उसकी फजीहत होगी। काले धन पर संसद मे सरकार द्वारा जारी वक्तव्य सिर्फ दिखावा है। इसमे कोई दिशा और स्पष्ट नीति का अभाव है जिससे विदेशी बैंको मे जमा काले धन को लाया जा सकें। रिपोर्ट से इस चैकानें वाले तथ्य का पता चलता है कि 2006 से 2010 के बीच स्वीट्जरलैंड के बैंको मे जमा भारतीयो के पैसे में 60ः की गिरावट हुई। रु 23,273 करोड़ रू॰ से कम होकर यह राशि 2010 में 9295 रुपये रह रह गई। हालांकी इस पूरी राशि का आकलन भी काफी कम है। लेकिन इससे यह ज्ञात होता है कि 2008 के बाद भाजपा द्वारा इस विषय को गंभीरता से उठाने के बाद वहा से ये पैसा निकाला गया। भाजपा महसूस करती है कि सशस्त्र बलों के लिए होने वाली खरीद के अनेक सौदों में भ्रष्टाचार का होना गंभीर चिंता का विषय है। सेना के लिए टाट्रा ट्रक की आपूर्ति ने भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को लेकर अनेक चिंताजनक सवाल खड़े कर दिये हैं।
कांग्रेस भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के प्रति गंभीर नहीं है। प्रधानमंत्री और यूपीए अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी द्वारा भ्रष्टाचार रोकने की गई सभी घोषणाएं खोखली और हास्यास्पद लगती हैं। अगर भाजपा द्वारा खासतौर से काफी आक्रामक अभियान नही चलाया गया होता और जागरूक मीडिया और अदालत की निगरानी नही होती तो किसी भी घोटाले में कोई कार्रवाई यू.पी.ए. सरकार द्वारा नही होती। कांग्रेस का भ्रष्टाचार करने वालों के दुष्कर्म को छिपाने के लिए अपने अधिकारों का दुरूपयोग करने की निर्लज्जता दिखाने का रिकॉर्ड रहा है।
हाल के चुनाव परिणाम
राष्ट्रीय कार्यकारिणी की पिछली बैठक के बाद अनेक राज्यों में चुनाव हुए। पंजाब में अकाली दल, भाजपा गठबंधन भारी बहुमत से विजयी रहा। पिछले 40 वर्ष में ऐसी पहली सरकार थी जो सत्ताु पर रहते हुए दोबारा चुनी गई। जाहिर है कि लोगों ने अकाली-भाजपा सरकार द्वारा किये गए अच्छे कार्यों पर भरोसा किया। इन दोनों दलों का सम्बन्ध 40 वर्ष से ज्यादा पुराना है। गोवा में भाजपा की भारी जीत काबिले तारीफ है। ईसाई मतदाताओं की बड़ी संख्या सहित औसत मतदाताओं के बहुमत को कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार के कुशासन से छुटकारा पाने के लिए भाजपा एकमात्र उम्मीद के रूप में दिखाई दी। बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक समुदाय के उम्मीदवारों ने भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतकर इस दुष्प्रचार को खत्म कर दिया कि भाजपा अल्पसंख्यक विरोधी है। वे भाजपा इस सिद्धांत की सराहना करते हैं कि सभी को न्याय मिले और किसी का तुष्टिकरण नहीं हो। उत्तराखंड राज्य में एक सीट कम रहने के कारण हम अपनी सरकार नहीं बना पाए। हम नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा की गई कड़ी मेहनत की सराहना करते हैं लेकिन इससे सबक लेने की जरूरत है। उत्तरप्रदेश के चुनाव परिणाम संतोषजनक नहीं रहे। कार्यकर्ताओं और समर्थकों के जबरदस्त चुनाव प्रचार और कड़ी मेहनत के बावजूद, हम वहां लोगों की अपेक्षाओं पर खरे नही उतर सके। हमें गंभीरता से आत्म विश्लेषण करने, सुधार करने और पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों को प्रेरित और उत्साहित करने की जरूरत है। भाजपा को उत्तर प्रदेश में पहले लोगों का विश्वास और समर्थन मिल चुका है। हमें इसे दोबारा हासिल करने की जरूरत है। मणिपुर में पार्टी की कड़ी मेहनत का पूरा फल नहीं मिल सका फिर भी हमें वहां अपना जनाधार बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास करने होंगे।
विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को न केवल भारी नुकसान हुआ बल्कि मतदाताओं ने मुंबई, दिल्लीे और बेंगलुरू के नगर निगम चुनावों में उसे बुरी तरह से सबक सिखाया। इससे यूपीए सरकार के कुशासन और भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता के गुस्से का पता चलता है।
संघीय ढांचे का लगातार उल्लंघन
बार-बार विरोध व्यक्त करने के बावजूद यूपीए ने राज्य सरकारों के अधिकार को कम करने के लिए संघीय ढांचे के सिद्धांतों के साथ छेड़छाड़ जारी रखी है। यूपीए के सहयोगी दलों सहित विपक्ष के विरोध के बावजूद यह लगातार जारी है। हाल में केन्द्र सरकार का एकतरफा और मनमर्जी करने का उदाहरण देखने को मिला। उसने जिस तरीके से राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधक केन्द्र (एनसीटीसी), रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) कानून में सुरक्षा संबंधी अधिकार को लेकर संशोधन किये उससे केन्द्र और राज्यों के बीच में अविश्वास और संदेह बढ़ा है। देश की आंतरिक सुरक्षा को मनमाने ढंग से नहीं देखा जा सकता। राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रबंधन और संघीय ढांचे के सिद्धांतों के सम्मान को लेकर कोई मतभेद नहीं है। इस सम्बंध में राज्य सरकारों की बराबर की भागीदारी और जिम्मेदारी है। केन्द्रीय सहायता और संसाधनों के आवंटन में भेदभाव राज्यों की बिजली की जरूरतों को पूरा करने के लिए कोयला खदानों के आवंटन और राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित अनेक विधेयकों को मंजूरी नहीं दिये जाने जैसे भेदभाव के अनेक उदाहरण गंभीर चिंता का कारण हैं। ऐसा निष्कर्ष निकालना सही होगा कि संघीय ढांचे के सिद्धांतों का सम्मायन कांग्रेस के डीएनए का हिस्सा नहीं है।
आतंकवाद और नक्सल हिंसा का खतरा
भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की यह बैठक मुंबई में हो रही है और हमारे लिए यह जरूरी है कि हम 2008 के मुंबई आतंकवादी हमले के मुख्य षड़यंत्रकारियों और इसकी योजना बनाने वालों को अभी तक सजा नहीं दिलाने जाने पर गंभीर रोष प्रगट करें। वे पाकिस्तान में सुरक्षित घूम रहे हैं क्योंकि उन्हें पाकिस्तांन के शासकों और सेना का संरक्षण हासिल है। इस बारे में भारत सरकार पाकिस्तान को विस्तृत जानकारी के साथ दर्जनों दस्तावेज दे चुकी है लेकिन इसके बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई है। भाजपा का दृढ़ मत है कि पाकिस्तान के साथ सम्बन्धों को सामान्य बनाना तब तक संभव नहीं है जब तक वह अपनी जमीन से भारत के खिलाफ होने वाली आतंकवादी गतिविधियों के खिलाफ कड़ी और निर्णायक कार्रवाई नहीं करता। भारत को आतंकवाद के साथ लड़ाई में पूरी तरह से सतर्क रहने और कठोर कार्रवाई करने की जरूरत है। आतंकवाद से निपटने के लिए किसी तरह की कोताही और समझौता नहीं होना चाहिए क्योंकि यह सुरक्षा और एकता का मामला नहीं है बल्कि इससे देश की संप्रभुता जुड़ी हुई है।
माओवादी हिंसा ने गंभीर चिंता और चुनौती खड़ी कर दी है। पूरे देश को इस समस्या से पूरी तरह से सतर्क रहने की जरूरत है और इस चुनौती से निपटने के लिए केन्द्र एंव राज्य सरकारों के बीच पूरा तालमेल होना चाहिए। गरीबों की समस्याओं का हल ढूंढा जाना चाहिए लेकिन हमें इस तथ्य को स्वीकार करना होगा कि माओवादियों का मूल उद्देश्य हिंसा के जरिये संसदीय लोकतंत्र का तख्ता पलटना और राजनीतिक ताकत हासिल करना है। यही वजह है कि वे जबरन निर्दोष लोगों का अपहरण और हत्या करते हैं। यह अपने आप में बहुत बड़ी चुनौती है। हम छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री की इस घोषणा की सराहना करते हैं कि अगर मुख्यरमंत्री का भी अपहरण हो जाता है तो उनकी नाजायज मांगों के आगे नहीं झुका जाना चाहिए।
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के हालात और शरणार्थियों की स्थिति
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों खासतौर से हिन्दुओं की स्थिति बहुत दयनीय है। वहां पर हिन्दू लड़कियों का अपहरण करने के बाद जबरन धर्मांतरण करने और उनकी इच्छा के विरूद्ध विवाह कराने की घटनाएं अकसर सुनने को मिलती हैं। पुलिस ही नहीं बल्कि न्यायपालिका भी कई मामलों में उन्हें न्याय नहीं दिला पाती। पाकिस्तान के विभिन्न हिस्सों में अनेक हिन्दू पेशेवर और व्यवसायियों की हत्या। की जा चुकी है। हिन्दू ही नहीं बल्कि ईसाई भी दहशत में जी रहे हैं। पाकिस्तान मे अल्पसंख्यको के पूजा स्थलों पर भी हमला हो रहा है। मानवाधिकार संगठनों ने अपनी अनेक रिपोर्टों में इस दुर्दशा की विस्तार से जानकारी दी है। हमारा भारत सरकार से आग्रह और मांग है कि वह पाकिस्तान के साथ दृढ़ता से सभी कूटनीतिक उपाय करे और पाकिस्तान में इन अल्पसंख्य्कों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए इससे जुड़े अन्य उपाय भी करे।
पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर से आये हिन्दू शरणार्थियों की स्थिति गंभीर चिंता का विषय है। उन्हें धार्मिक कारणों और अपनी आस्था के कारण जबरन वहां से भागना पड़ा क्योंकि उनके नागरिक और सांस्कृतिक अधिकारों का हनन हो रहा था तथा एक सन्मान जनक जीवन जीने की स्थितियां भी नहीं थी। भारत सरकार को उनकी शिकायतों को दूर करने के लिए सभी उपाय करने चाहिए जिससे वे भारत में इज्जत और आत्मसम्मान के साथ रह सकें। उन्हें जबरन उनकी मातृभूमि से खदेड़ा गया है और वहां का शासन उनके बुनियादी मानवाधिकारों की अवहेलना कर रहा है। उन्हें शरणार्थियों और मानवाधिकार के उल्लंघन संबंधित आंतरराष्ट्रीय नियिमों के अनुसार सन्मान से जीवन यापन का अवसर मिलना चाहिए।
संस्था का पतन
यूपीए सरकार एक के बाद एक विवादों में घिरती चली गई और इस कारण संस्थाओं का पतन होने लगा है। उसने न केवल सिविल सोसाइटी को नाराज किया है जो भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदारी तय करने की मांग कर रही है बल्कि कैग और चुनाव आयोग के साथ भी उसका तकरार बढ़ा है। वे अपनी स्वायत्ता में हस्तक्षेप किये जाने की आशंका व्यक्त कर रहे हैं। हमें अपनी सेना के साहस और शौर्य पर गर्व है जो हमें सुरक्षा प्रदान करते हैं। वे हमारे संविधान और राजनैतिक स्वरूप के अनुसार राजनैतिक नेतृत्व के नियंत्रण मे काम करते हैं। हाल में सरकार और सेना के सम्बन्धों में तनाव के अनेक उदाहरण सामने आए जिनसे मजबूत शासन व्यवस्थों के जरिये बचा जा सकता था। भाजपा भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए पर्याप्त अधिकारों के साथ एक प्रभावी लोकपाल के लिए प्रतिबद्ध है और इस सम्बन्ध में कोई देरी नहीं की जानी चाहिए।
निष्कर्ष
यूपीए ने देश के शासन को गर्त में धकेल दिया है। भ्रष्टाचार, अनिर्णय, मंहगाई और असुरक्षा का भाव पैदा होने के कारण जनता की तकलीफें बढ़ गई हैं। वे भाजपा की ओर देख रहे हैं। हमारा कत्र्तव्य है कि हम उनकी उम्मीदों पर खरे उतरें और देश की जनता को आश्वस्त करें कि भाजपा ही देश को विकास के रास्ते पर ले जा सकती है।
यू॰पी॰ए॰ सरकार के तीन वर्ष पूरे होने के कार्यक्रम मे श्रीमती सोनिया गाँधी ने सराकार के संबंध मे विपक्ष विशेष रूप से भारतीय जनता पार्टी की टिप्पणियों को गैर-जिम्मेवार और आक्रामक बताया है। उनका यह कहना दुर्भाग्यपूर्ण है और हम इसकी भत्र्सना करते है। अगर आम आदमी इस सरकार में पीडि़त और ठगा हुआ महसूस कर रहा है, अगर किसान आत्महत्या कर रहे हैं, अगर औद्योगिक उत्पादन मे भयंकर गिरावट है, अगर बेरोजगारी बढ़ रही है और अगर भयंकर भ्रष्टाचार रोज नए-नए आयामों मे प्रकट हो रहा है और जब देश मे यू॰पी॰ए॰ के कुशासन के कारण भंयकर निराशा और असंतोष है तब भाजपा अपना नैतिक दायित्व समझती है कि वह देश की पीडि़त जनता की आवाज को गंभीरता से उठाए। यह कार्य पार्टी पूरी निष्ठा और संकल्प के साथ करती रहेगी।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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