भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी देश के विभिन्न भागों में, विशेषरूप से महाराष्ट्र, कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश-मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में, जो सूखे से बुरी तरह से प्रभावित हैं, सूखे की गंभीर स्थिति पर गहरी चिन्ता व्यक्त करती है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी लोगों के दुःख-तकलीफों के प्रति केन्द्र सरकार की उदासीनता पर भी गहरी निराशा व्यक्त करती है।
सूखे से कई प्रकार के प्रभाव पड़ते हैं और इसका अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप खाद्य की कमी, चारे की कमी, पानी की कमी, कृषि उत्पादन और आय में कमी, खाद्य और अन्य वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि, कृषि और इससे सम्बन्धित क्षेत्रों में बेरोजगारी हो जाती है, जिसके कारण पलायन होता है। कृषि ऋणों का भुगतान नहीं होता, ग्रामीण असन्तोष आदि पनपता है।
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र भयंकर सूखे की स्थिति का सामना कर रहा है। पश्चिमी महाराष्ट्र और मराठवाड़ा के कुछ हिस्से और विदर्भ क्षेत्र बुरी तरह से प्रभावित है। राज्य सरकार ने खरीफ के लिए 15 जिलों (209 तालुकों) और 6205 गांवों को और रबी की फसलों के लिए 1552 गांवों को सूखाग्रस्त घोषित किया है।
खरीफ के अन्तर्गत प्रभावित क्षेत्र 20.40 लाख हेक्टेयर है और इसमें 14,62,937 किसान प्रभावित हुए है जबकि रबी फसल उत्पादन 10.77 लाख हेक्टेयर बैठता है और इसमें 80,40,57 किसान प्रभावित हैं।
कृषि परियोजनाओं के जल स्तर तथा भू-जल स्तरों में भारी गिरावट आई है। 23 तालुकों में भू-जल स्तरों में 1-2 मीटर की कमी हुई है, 9 तालुकों में 2-3 मीटर के बीच की कमी हुई है, जबकि 6 तालुकों में भू-जल स्तर में 3 मीटर से अधिक की कमी हुई है। पीने के पानी की सप्लाई टैंकरों के माध्यम से की जा रही है।
खाद्यान्नों, तिलहनों, कपास और गन्ने के उत्पादन में भारी गिरावट आई है। अनाजों के उत्पादन में 5 प्रतिशत, दालों के उत्पादन में 22 प्रतिशत और खाद्यान्नों के उत्पादन में 5 प्रतिशत की कमी होने का अनुमान है। रबी-ज्वार के अनुमानित उत्पादन में भी सामान्य से और गत वर्ष की तुलना में क्रमशः 11 और 26 प्रतिशत की कमी होगी। पशुधन के लिये चारे की भारी कमी है। 13 जिलों में बागवानी पर सूखे का बुरा प्रभाव पड़ा है, जहां पर अनार, अंगूर, आम, संतरा, मौसमी जैसे फलों के उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ा है। अपर्याप्त वर्षा के कारण उत्पादन में भारी कमी हुई है।
महाराष्ट्र में सूखे की वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखते हुए, राज्य सरकार ने केन्द्र से 2281.37 करोड़ रुपए की कुल सहायता और राज्य को यथाशीघ्र गरीबी रेखा से नीचे की दरों पर 5 लाख मीटरी टन अनाज दिये जाने का अनुरोध किया है।
यद्यपि केन्द्र की एक टीम ने राज्य का दौरा किया और स्थिति का जायजा लिया है, तथापि अभी तक केन्द्रीय सहायता प्रदान नहीं की गई है।
कर्नाटक
कर्नाटक का 70 प्रतिशत भाग अर्थात् 176 में से 123 तालुका सूखा प्रभावित घोषित किये गये हैं। वहां पर पानी और चारे की कमी है। गत तिमाही में 1970 से अब तक वर्षा सबसे कम हुई है।
खरीब और रबी दोनों फसलें बर्बाद हो गई हैं। कुल 5953 करोड़ रुपए की फसल की हानि का अनुमान है। बहुत कम वर्षा, सूखे की स्थिति और अधिक नमी से राज्य के अन्दरूनी हिस्सों में न केवल खरीफ की फसल प्रभावित हुई है अपितु रबी की फसल भी बुरी तरह से प्रभावित हुई है। भू-जल स्तर दिन-प्रतिदिन गिरता जा रहा है। अधिकांश बोर कुएं सूख गये हैं। 700 बोर कुओं में से केवल 5 कुएं काम कर रहे हैं।
कुछ क्षेत्रों में 1250 फुट की गहराई पर भू-जल उपलब्ध है। भू-जल स्तर आज तक के रिकार्ड से भी नीचे चला गया है और वह पानी पीने लायक नही है। फ्लोराइड और आर्सेनिक सामग्री की उच्च मात्रा से स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं पैदा हो रही हैं।
4853 गांवो में पीने के पानी की भंयकर समस्या है। राज्य सरकार सैकेड़ो प्रभावित गांवो को टैंकरों के माध्यम से पीने के पानी की सप्लाई कर रही है। 3475 छोटे सिंचाई टैंको में से 1242 टैंक पूरी तरह से सूख गये हैं।
राज्य सरकार ने सूखे से निपटने के लिये अभी तक 562.55 करोड़ खर्च किये हैं। सूखा राहत उपायों के लिये राज्य सरकार ने प्रथम चरण में 2605.99 करोड़ रूपये की केन्द्रीय सहायता की मांग की ओर बाद में 5953 करोड़ रूपये के लिये एक ज्ञापन केन्द्र को सौंपा। केन्द्र ने 186.68 करोड़ रूपये की स्वीकृति दे दी है और अभी तक 70.23 करोड़ रूपये की राशि रिलीज की है। यह बड़ी खेदजनक बात है कि केन्द्र ने पहली बार ही 116.45 करोड़ रूपये की शेष राशि रिलीज नहीं की है।
सूखा इतना भंयकर है कि केन्द्र की सहायता के बिना अकेला राज्य इस अप्रत्याशित स्थिति से नहीं निपट सकता। राज्य सरकार ने 1500 करोड़ रूपये की अन्तरिम राहत की मांग की थी, जो अभी तक नहीं दी गई है। राज्य ने गरीबी रेखा के नीचे के कार्डधारियों को अनाज बांटने के लिये 3,00,000 मीटरी टन चावल और 57,000 मीटरी टन गेहूँ का अतिरिक्त आवंटन करने की भी मांग की है।
केन्द्रीय टीम अब राज्य का दौरा करने जा रही है जबकि मानसून तेजी से आ रहा है। इससे केन्द्र के कठोर रवैये का पता चलता है।
आन्ध्र प्रदेश
समूचा आन्ध्र प्रदेश राज्य सूखे से प्रभावित है। 22 जिलों में 876 मण्डल सूखाग्रस्त घोषित किये गये हैं। 34.24 लाख हेक्टेयर क्षेत्र (छोटे और सीमांत किसानों का 29.75 लाख हेक्टेयर और अन्य किसानों का 4.49 लाख हेक्टेयर) बर्बाद हो गया है। 49,31,701 छोटे और सीमांत किसान और 3,06,259 अन्य किसान प्रभावित हुए हैं।
30,98,560 मीटरिक टन कृषि उत्पाद नष्ट हुए हैं। इसका अनुमानित मूल्य 5747 करोड़ रूपये हैं। फसल ऋणों का पुनः निर्धारण नहीं किया गया है। किसान प्रति एकड़ इन्पुट सब्सिडी के रूप में 10,000 की मांग कर रहे हैं। यहां तक कि प्रभावित क्षेत्रों में वृद्वावस्था पैंशन भी उचित तरीके से नहीं दी जा रही है।
एन.डी.आर.एफ. से केन्द्रीय सहायता के रूप में 3,006 करोड़ रूपये की कुल राशि केन्द्र सरकार से मांगी गई थी। भारत सरकार ने 706.15 करोड़ रूपये की केन्द्रीय सहायता की स्वीकृति प्रदान की है जिसमें 385.78 करोड़ रूपये की राशि रिलीज की गई और शेष राशि का राज्य के एस.डी.आर.एफ. खाते में समायोजन किया गया है।
आन्ध्र प्रदेश सरकार ने दिसम्बर 2011 में 1860 करोड़ रूपये की इन्पुट सब्सिडी देने का वादा किया था। अभी तक वह राशि रिलीज नहीं की गई। जिन किसानों को 2010-11 के रवी मौसम में हानि हुई थी, उन्हें अभी तक मुआवजा नहीं मिला है। यहां तक कि रबी की फसल में भी 10ः की कमी आई है।
भाजपा इस बात पर गहरी चिन्ता व्यक्त करती है कि सूखे की गम्भीर समस्या के प्रति केन्द्र सरकार का रवैया बहुत ही गैर-संजीदा और कठोर है। विभिन्न राज्यों में प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने के लिये केन्द्रीय टीमों को भेजने में असाधारण विलम्ब हुआ है। यही नहीं, सरकार टीमों की सिफारिशों पर समय से कार्यवाही नहीं करती। देश के अनेक भागों में बारिश का मौसम शुरू होने वाला है और टीमों को बहुत देरी से भेजने का कोई लाभ नहीं है। इससे लोगों के दुःख- तकलीफो के प्रति केन्द्र सरकार की उपेक्षापूर्ण और असंवेदनशील रवैये का पता चलता है। इस प्रस्ताव को भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री एम. वेकैया नायडू ने प्रस्तावित किया तथा महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश तथा कर्नाटक के प्रदेश अध्यक्षों ने इस प्रस्ताव का अनुमोदन किया है।
भाजपा मांग करती है कि -
ऽ केन्द्र सरकार को देश में विशेष रूप से तीन राज्यों- महाराष्ट्र, कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश- में सूखे की स्थिति का जायजा लेने के लिये तुरन्त मंत्रियों का एक ग्रुप गठित करना चाहिये और स्थिति से निपटने के लिये नीति सम्बन्धी उचित निर्णय तेजी से लेने चाहिये।
ऽ इन राज्यों में से प्रत्येक को 1500 करोड़ रूपये की अन्तरिम सहायता और 500 करोड़ की सहायता उत्तर-प्रदेश-मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के लिए यथाशीघ्र प्रदान की जानी चाहिये। इसके अलावा केन्द्र को इन राज्यों में से प्रत्येक के लिये 5 लाख मीटिक टन अनाज निःशुल्क रिलीज करना चाहिये ताकि वह अनाज प्रभावित लोगों को बांटा जा सके। ऐसा बिना किसी कठिनाई के किया जा सकता है क्योंकि केन्द्र के पास सरप्लस स्टाक उपलब्ध है और उसके भण्डारण के लिये जगह भी नहीं है।
ऽ सीमेंट चैक बांधों, मिट्टी वाले बांधों और माइक्रों जल संचयन ढांचों पर कार्य आरंभ करने के लिये प्रभावित राज्यों को विशेष पैकेज दिया जाना चाहिये जिन्हें इस ग्रीष्म ऋतु में ही पूरा किया जाये। इससे जल स्तर को गिरने से रोकने और पीने के पानी की कमी को दूर करने में सहायता मिलेगी और आगामी खरीफ फसल के लिये सुरक्षित सिंचाई सुविधा उपलब्ध हो सकेगी।
ऽ चारा बैंक स्थापित किये जाये और निशुल्क रेल परिवहन सुविधा देकर युद्ध स्तर पर पड़ौसी राज्यों से इन राज्यों को चारा उपलब्ध कराया जाये ताकि पशुधन में हो रही कमी को रोका जा सके।
ऽ छत पर जल संचयन (रू़फ टाॅप वाटर हारवेस्टिंगं) अनिवार्य बनाया जाना चाहिये। बोर कुओं, ट्यूबवेलों का कायाकल्प अनिवार्य बनाया जाय और फार्म तालाबों के निर्माण पर भी जोर दिया जाना चाहिये।
ऽ सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत बनाया जाना चाहिये।
ऽ फसल संबंधी ऋणों का ब्याज माफ करके पुनः निर्धारण किया जाना चाहिये।
ऽ बर्बाद हो गई फसल के लिये प्रति एकड़ 6000 रुपए की इनपुट सब्सिडी तुरन्त रिलीज की जानी चाहिये।
ऽ मनरेगा योजना को सूखाग्रस्त राज्योंके कृषक मजदूरों के लिए भी लागू किया जाना चाहिए।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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