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नये विधायकों के लिए आयोजित दो-दिवसीय प्रबोधन

Posted on 21 May 2012 by admin

कार्यक्रम आज सम्पन्न
लखनऊः 20 मई, 2012

सोलहवीं विधान सभा के नवनिर्वाचित सदस्यों के लिए आयोजित प्रबोधन कार्यक्रम के दूसरे दिन आज विधान परिषद के सभापति श्री गणेश शंकर पाण्डेय ने अपने सम्बोधन में कहा कि सन 1937 से आज तक उत्तर प्रदेश विधान सभा की एक गौरवमयी परम्परा रही है। नये सदस्यों का यह दायित्व है कि वे इस परम्परा को बनाये रखें। उन्होंने कहा कि नये सदस्य संसदीय नियमावली व संसदीय साहित्य को अवश्य पढ़ें तथा जनहित से जुड़े सवालों को नियमों की परिधि में ही उठायें।
राजस्व मंत्री श्री अम्बिका चैधरी ने सदस्यों को नियम 301 के विषय में जानकारी दी कि इस नियम के तहत लोक महत्व के प्रश्न कैसे उठाये जाते हैं। उन्होंने कहा कि इस नियम के तहत केवल लोक महत्व के प्रश्न ही उठाये जाते हैं। यह ध्यान रखा जाय कि प्रश्न लोक महत्व के साथ-साथ तथ्यात्मक हो तथा 200 शब्दों से अधिक न हो। इसकी सूचना 9 से 10 बजे के बीच दे दी जानी चाहिए तथा सदस्य को प्रश्नकाल के तत्काल बाद शून्य प्रहर में अनिवार्य रूप से तब तक उपस्थित रहना चाहिए, जब तक विधान सभा अध्यक्ष द्वारा सूचना प्राप्त होने की जानकारी न दे दी जाय। नियमों को मानकर चलने वाले सदस्य की एक अलग ही पहचान होती है। अध्यक्ष पीठ की गरिमा पर प्रकाश डालते हुए श्री चैधरी ने सदस्यों से कहा कि अध्यक्ष पीठ की गरिमा बढ़ाने का कार्य करंे तथा पीठ को पीठ न दिखायें। कहने का तात्पर्य यह है कि सदस्यों को अपनी बात, अध्यक्ष को सम्बोधित करते हुए रखनी चाहिए। उन्होंने सदस्यों को आगाह किया कि वे हर समय अपना परिचय पत्र साथ रखें, कूपन व लेटरहेड किसी अन्य व्यक्ति को न दें तथा अपने निवास स्थान पर पैनी निगाह रखें क्योंकि असावधानी बरतने पर इसका दुरुपयोग हो सकता है। उन्होंने सदस्यों से आग्रह किया कि वे कार्य सूची को अवश्य पढ़कर सदन में आयें, जिससे उन्हें सदन में उस दिन होने वाले कार्यों के विषय में जानकारी रहे।
पूर्व विधान सभा अध्यक्ष श्री सुखदेव राजभर ने अपने सम्बोधन में नेता सदन व नेता प्रतिपक्ष के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सदस्यों को हर समय यह ध्यान रखना चाहिए कि सदन में जब भी नेता सदन या नेता प्रतिपक्ष बोलने के लिए खड़े हो तो यदि उस समय कोई सदस्य बोल भी रहा हो तो उसे बैठ जाना चाहिए और ध्यानपूर्वक उनकी बात को सुनना चाहिए तथा बीच में टोका-टाकी नहीं करनी चाहिए। यही संसदीय लोकतन्त्र की परम्परा है। उन्होंने कहा कि अध्यक्ष पीठ की अवहेलना नहीं करनी चाहिए। उन्होंने सदस्यों से आग्रह किया कि वे सदन शुरू होने से लेकर सदन की कार्यवाही समाप्त होने तक सदन में मौजूद रहें, क्योंकि इससे न केवल उनका संसदीय ज्ञान बढ़ेगा, बल्कि सदन में बोलने के अधिक अवसर मिलने की सम्भावना भी बनी रहेगी। उन्होंने कहा कि सदन की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने के लिए विभिन्न समितियां बनी हुई हैं। इन समितियों में नामित सदस्यों को इसकी होने वाली प्रत्येक बैठक में हिस्सा लेना चाहिए तथा इसमें अपनी बात पुरजोर ढंग से रखनी चाहिए। यह मिनी सदन होता है।
मध्य प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष श्री ईश्वरदास रोहानी ने संसदीय शिष्टाचार एवं व्यवस्था के प्रश्न पर प्रकाश डालते हुए सदस्यों से कहा कि अध्यक्ष पीठ का सदैव सम्मान करें तथा अध्यक्ष से निकटता बनाये रखें यह सबके लिए अच्छा रहेगा। विधायिका की विश्वसनीयता को कायम रखना आज सबसे बड़ी चुनौती है। नये सदस्यों की वजह से ही सदन का कोरम चल रहा है। संसदीय मर्यादा में रहकर सदन को चलाने में सहयोग प्रदान करें। लक्ष्मण रेखा को पार नहीं करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि व्यवस्था का प्रश्न उठाना सदस्यों का सशक्त अधिकार है लेकिन इसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। विधान सभा चल रही हो तो बहस के बीच में प्रश्नकाल को छोड़कर किसी भी समय व्यवस्था का प्रश्न उठाया जा सकता है तथा अध्यक्ष को सदस्य की बात सुनकर अपनी व्यवस्था देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि व्यवस्था का प्रश्न उठाते समय दृष्टिकोण सकरात्मक होनी चाहिए तथा सत्ता पक्ष को उसे धैर्य पूर्वक सुनना चाहिए।
विधान सभा के वरिष्ठ सदस्य डाॅ0 राधामोहन दास अग्रवाल ने संसदीय प्रश्न पर प्रकाश डालते हुए अपने उद्बोधन में कहा कि विधान सभा में सबसे महत्वपूर्ण काल, प्रश्न काल होता है तथा यह काल नये व पुराने सदस्यों में भेद नहीं करता है। नये सदस्यों को प्रश्न काल में सबसे अधिक भाग लेना चाहिए क्योंकि अन्य काल में वरिष्ठ सदस्यों को ज्यादा मौका मिलता है। उन्होंने कहा कि प्रश्नकाल सदन का सबसे कीमती काल होता है अतः सदस्यों को इसकी महत्ता समझते हुए महत्वपूर्ण प्रश्न तथा केवल प्रदेश सरकार से सम्बन्धित प्रश्न ही पूछने चाहिए क्योंकि इस पर सरकार का बहुत खर्च आता है। उन्होंने कहा कि निजी प्रश्न तथा दूसरे को क्षति पहुंचाने वाले प्रश्न नहीं पूछने चाहिए। उन्होंने बताया कि सदन में तीन तरह के प्रश्न पूछे जाते हैं- अतारांकित, तारांकित तथा अल्पसूचित। अतारांकित तथा तारांकित प्रश्न की सूचना 20 दिन पहले देनी चाहिए तथा अल्पसूचित प्रश्न की सूचना 3 दिन पहले देनी चाहिए। अतारांकित प्रश्न के उत्तर पर कोई अनुपूरक प्रश्न नहीं होता है। तारांकित प्रश्न में सैद्धान्तिक व नीतिगत विषय पर राज्य स्तरीय प्रश्न पूछने चाहिए। इसमें पूरक प्रश्न भी पूछे जा सकते हैं। अल्पसूचित प्रश्न में अविलम्बनीय तथा लोक महत्व के प्रश्न पूछे जाते हैं।
उन्होंने कहा कि सदस्यों को एक दिन में 5 प्रश्न से अधिक तथा 150 शब्दों से अधिक लम्बे प्रश्न नहीं पूछने चाहिए। उन्होंने कहा कि जहाँ तक सत्ता पक्ष के लोगों द्वारा प्रश्न पूछने का सवाल है, तो उन्हें जहां तक हो सके अतारांकित प्रश्न ही पूछने चाहिए क्योंकि इसमें कोई पूरक प्रश्न नहीं किया जाता है। यदि तारांकित प्रश्न पूछते हैं तो प्रतिपक्ष को उस पर पूरक प्रश्न उठाने का अधिकार मिल जाएगा जो सत्ता पक्ष के लिए परेशानी का कारण भी बन सकता है।
उत्तर प्रदेश विधान सभा के लिये प्रथम बार निर्वाचित सदस्यों के लिये आयोजित दो दिवसीय प्रबोधन कार्यक्रम का समापन करते हुए राज्य सभा के सदस्य श्री मोहन सिंह ने कहा कि उत्तर प्रदेश की विधान सभा का एक समृद्ध इतिहास है और देश को एक श्रेष्ठ राजनैतिक नेतृत्व प्रदान करने में इस विधान सभा की सर्वाधिक भूमिका रही है। इस सदन की गरिमा व पवित्रता को अक्षुण्ण बनाये रखना होगा। उन्होंने कहा कि सदन की पवित्रता को बनाये रखने के लिये ज़रूरी है कि इसके सदस्य न केवल सदन में बल्कि सदन के बाहर मर्यादित आचरण और व्यवहार करें। सदन की कार्यवाही के दौरान हल्ला-गुल्ला कर व्यवधान न उत्पन्न करें और कार्यवाही को शाँतिपूर्ण ढंग से चलने दें। उन्होंने कहा कि व्यवधान उत्पन्न होने से महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रभावी चर्चा नहीं हो पाती है और साथ ही सदन की सत्र अवधि भी कम हो जाती है। इस प्रकार जन समस्याओं व लोकहित के महत्वपूर्ण प्रकरण दब जाते हैं।
उन्होने कहा कि सत्र के दौरान प्रत्येक शुक्रवार को गै़र-सरकारी बिल पेश होते है। इन बिलों पर विधायकों को बहस करनी चाहिये, इससे भी उन्हें अच्छे अनुभव मिलेंगे। साथ ही, सत्ता पक्ष को सदन में उठाये जाने वाले प्रश्नों से भागना नहीं चाहिये और ग़लतियों को छिपाना नहीं चाहिये। यदि कोई अधिकारी किसी प्रकरण में दोषी पाया जाता है तो उसके विरुद्ध कार्रवाई की जानी चाहिये। इससे न केवल जनता के बीच एक अच्छा संदेश जायेगा बल्कि सत्ता पक्ष व प्रतिपक्ष दोनों की अच्छी छवि बनेगी। उन्होंने कहा कि विधायकों के प्रश्न सरकार की आँख खोलते हैं, इसलिये ज़रूरी है कि विधायक जन समस्याओं व जन हित के मुद्दों पर सदन में अपने प्रश्न रखें। उन्होंने विधायकों से आग्रह किया कि सदन में अच्छे विषय को अच्छे ढंग से रखें, सत्र में पूरी तैयारी करके आयें, अध्ययन करें और विधान सभा की प्रतिष्ठा बढ़ायें।
श्री मोहन सिंह ने विधायकों को आगाह किया कि वे विधायक निधि का सोच समझकर उपयोग करें ताकि उन पर किसी तरह की आँच न आये और विकास कार्य भी सही ढंग से हांे। उन्होंने उत्तर प्रदेश विधान सभा अध्यक्ष से अनुरोध किया कि जिस तरह से संसद द्वारा सांसद निधि की निगरानी के लिये एक कमेटी बनायी गयी है, उसी तरह की एक कमेटी उ0प्र0 विधान सभा द्वारा विधायक निधि के लिये बनायी जाय।
इससे पूर्व समापन कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुये प्रदेश के संसदीय कार्य मंत्री श्री मोहम्मद आज़म खाँ ने कहा कि पहली बार चुनकर आने वाले विधायकों में बहुत सी ऐसी खूबियाँ होती हैं जो पुराने विधायकों में नहीं होती हैं। इसका कारण यह है कि नये विधायक कठिन परिश्रम कर पहली बार विधान सभा में आते हैं। वे ऊर्जा से ओत-प्रोत होते हैं और विधायक के रूप में अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत रहते हुये जन आकांक्षाओं पर खरे उतरने का प्रयास करते हैं। उन्होंने कहा कि हमारा संविधान धर्म-निरपेक्ष है और यही इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। जब भी संविधान के इस धर्म निरपेक्ष चरित्र पर कोई चोट लगती है तो इससे सभी को आघात पहुँचता है। संविधान के इस चरित्र को हर हाल में सशक्त बनाये रखना है।
संसदीय कार्य मंत्री ने विधायकों से कहा कि सदन में जो भी बात रखी जाये वह सच्चाई पर आधारित हो। ऐसा कुछ भी न कहा जाये, जिससे लोगों को भावनात्मक तकलीफ़ पहँुचे और राजनैतिक दिल आज़ारी हो। उन्होंने कहा कि सत्ता पक्ष व प्रतिपक्ष दोनों को ही सदन की कार्यवाही के सुचारू व शाँतिपूर्ण संचालन में पूरा सहयोग करना चाहिये। उन्होंने कहा कि विधायकों के सकारात्मक सहयोग से ही विधान सभा की गरिमा व प्रतिष्ठा को बनाये रखा जा सकता है।
कार्यक्रम में प्रदेश के पूर्व मंत्री श्री शतरुद्र प्रकाश ने ‘‘औचित्य के प्रश्न’’ पर प्रकाश डालते हुए सदस्यों से आग्रह किया कि चूंकि औचित्य के प्रश्न पर विचार करते समय सदन के अन्य सभी कार्य स्वतः स्थगित हो जाते हैं, ऐसी स्थिति में सदस्यों को गहरी समझ के साथ गम्भीर प्रश्नों को ही उठाना चाहिए। उन्होंने कहा कि कोई भी सदस्य अध्यक्ष विधान सभा का ध्यान औचित्य के प्रश्न के माध्यम से उस कार्य की ओर आकर्षित कर सकता है, जिसके द्वारा प्रक्रिया नियमावली या संविधान से सम्बन्धित प्राविधानों का उल्लंघन हुआ हो या सम्भावित हो। पूर्वमंत्री श्री अशोक बाजपेई ने विधान मण्डल की वित्तीय समितियों की कार्य प्रणाली एवं उनकी विशेषताओं पर प्रकाश डाला।
अन्त में विधान सभा के अध्यक्ष श्री माता प्रसाद पाण्डेय ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com

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