जब स्थलों/स्मारकों/पार्कों आदि के निर्माण पर 40 हजार करोड़ रूपये खर्च ही नही हुये तो इतनी रकम के घोटाले का सवाल ही कहाँ उठता है: बी.एस.पी. प्रवक्ता
बी.एस.पी. प्रवक्ता ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव के इस बयान पर कि देश में दलित एवं अन्य पिछड़े वर्गों में जन्में महान सन्तों, गुरूओं व महापुरूषों के नाम पर यहाँ उनके आदर-सम्मान में बनाये गये स्थलों, स्मारकों व पार्कों आदि के निर्माण में 40 हजार करोड़ रूपये के घोटाले हुये है इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये कहाकि ’’उ.प्र. के मुख्यमंत्री ने उस कहावत को चरित्रार्थ किया है कि जो कुछ नही करते, वे कमाल करते है।’’
सपा द्वारा कुछ इस तरह की बयानबाजी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव अभियान के दौरान भी की गयी थी और यही प्रक्रिया अब भी जारी है, जबकि अब सरकार में होने के कारण सपा नेताओं को इन स्थलों के खर्च के बारे में व अन्य हकीकत के सम्बन्ध में सही-सही जानकारी अवश्य हो जानी चाहिये थी। परन्तु मंत्री तो मंत्री माननीय मुख्यमंत्री भी इस सम्बन्ध में गलत व अनर्गल बयानबाजी में अपनी शान समझ रहे है।
बी.एस.पी. प्रवक्ता ने कहाकि माननीय मुख्यमंत्री के हवाले से अखबारों में यह खबर छापी गयी है, कि यहाँ स्मारकों व पार्कों आदि के निर्माण में 40 हजार करोड़ रूपयों का घोटाला हुआ है। लेकिन यहाँ सवाल यह उठता है कि जब इन स्थलों/स्मारकों/पार्कों आदि के निर्माण पर बतायी गयी धनराशि से काफी कम बजट खर्च करके निर्माण कराया गया है तो अब 40 हजार करोड़ रूपयों के घोटाले का सपना माननीय मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने सपने में तो कहीं नहीं देख लिया है। इसके साथ ही उन्हे अपनी जिम्मेदारी का एहसास भी होना चाहिये कि इन स्थलों/स्मारकों आदि के निर्माण पर उत्तर प्रदेश के कुल बजट का ’’लगभग (एक) प्रतिशत’’ के करीब ही धन खर्च किया गया है और इसकी स्वीकृत वैधानिक तरीके से बजट प्राविधान करके एवं विधानमण्डल से परित कराकर की गयी है, जिसकी पूरी जानकारी सपा सरकार को अवश्य ही होनी चाहिये क्योंकि पिछले पाँच वर्षों तक वे प्रतिपक्ष की भूमिका में रहे हैं, और विधानमण्डल की कार्यवाही इस बात की गवाह है।
बी.एस.पी. प्रवक्ता ने कहाकि सपा सरकार द्वारा इसी प्रकार की बेतुकी व गलत बयानबाजी पहले यह भी की गयी थी कि इन स्थलों/स्मारकों/पार्कों आदि की ’’हजारों एकड़ की खाली’’ पड़ी जमीन का इस्तेमाल करके यहाँ अस्पताल व स्कूल आदि बनाये जायेगें। इस संबन्ध में भी लोगों को काफी गुमराह किया गया और अब अन्ततः लोगों की समझ में यह बात आ गयी है कि जब इन स्थलों/स्मारकों/पार्कों आदि का निर्माण कुल मिलाकर 500 (पाँच सौ) एकड़ में ही हुआ है, तो हजारों एकड़ जमीन इनमें खाली पड़े रहने का सवाल ही कहाँ से उठता है? इस प्रकार की बातों को सिवाय राजनीतिक ’’फितूर’’ के और क्या कहा जा सकता है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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