प्रदेश में लोगों के अधिकारों के लिए काम करने वाले कार्यकताओं पर हमले बढ़ रहे हैं। गांव की जमीन छीनी जा रही है। गांव और गरीब के लिए आवाज उठाने वालों पर हमला हो रहा है। इन कार्यकर्ताओ पर होने वाले हमलों को कैसे रोका जाय। उत्तर प्रदेश में मानवाधिकार कार्यकताओं के संरक्षण हेतु मिलकर क्या काम किया जा सकता है।
इन सभी सवालों को लेकर लखनउ में आज एक महत्वपूर्ण बैठक का अयोजन किया गया। बैठक में सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश व दिल्ली से आए वकीलों सामाजिक कार्यकर्ताओं व मानवधिकार कार्यकर्ताओं ने बड़ी संख्या में भाग लिया। बैठक में मानवाधिकार कार्यकताओं पर बढ़ते हमलों मजदूरों, किसनों, दलितों और वंचित वर्गों के समान संवैधानिक अधिकारों की लड़ाई की जरुरत के महत्तव पर चर्चा हुई तथा इन सभी अधिकारों के लिए लड़ने वाले मानवाधिकार कार्यकताओं को हमलों से कैसे बचाया जाय इस विषय पर दो सत्रों में चर्चा हुयी।
चर्चा से निकलकर कर आया कि मानवाधिकार कार्यकताओं पर समानता का विरोध करने वाली दबंग जातियां, भू माफिया, भ्रष्ट पुलिस तंत्र, भ्रष्ट राजनीतिज्ञ मिलकर हमला करते हैं। अक्सर मानवाधिकार कार्यकताओं को फर्जी मुकदमें बनाकर डराया जाता है, जेलों में डाल दिया जाता है तथा कई बार मानवाधिकार कार्यकताओं की हत्या भी कर दी जाती है। ऐसी खतरनाक माहौल में मानवाधिकार कार्यकताओं का सरंक्षण एक महत्वपूर्ण प्रश्न है, क्यों कि मानवाधिकार कार्यकर्ता का कार्य देश के लोकतंत्र की सेहत को बचाने के लिए जरुरी है। गांव और गरीब को बचाने के लिए जरुरी है और पूरे देश को बचाने के लिए जरुरी है।
आज की बैठक में मानवाधिकार कार्यकताओं के सुरक्षा हेतु विभिन्न रणनीतियां तय की गई जिससे आने वाले दौर में मानवाधिकार कार्यकर्ता अधिक निर्भीक होकर कार्य कर सकें। इस बैठक का आयोजन ह्यूमन राइट ला नेटवर्क दिल्ली, पीयूसीएल उत्तर प्रदेश, खालरा सेंटर फाॅर ह्यूमन राइट डिफेन्डर्स दिल्ली, सी एच आर डी दिल्ली ने लखनउ विश्वविद्यालय के विधि संकाय के सहयोग से किया। मोहम्मद शुएब एडवोकेट, हर्ष डोभाल, हिमांशु कुमार, केके राय, राजीव यादव, शाहनवाज आलम, रवि शेखर, एकता सिंह, विष्णु तिवारी, मसीहुद्दीन संजरी, तारिक शफीक ने अपने विचार व्यक्त किए। संचालन नम्रता तिवारी ने किया।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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