इस फिल्म से रोटी कपड़ा और कमान की याद ताजा हो जाएगी - चन्द्रपाल

Posted on 06 May 2012 by admin

charapal-singhआजमगढ़ में जन्मे और वही पर पढ़ लिख कर बड़े हुए चंद्रपाल सिंह ने कभी यह सोचा भी नही होगा कि एक दिन वह अपनी ही फिल्म की शूटिंग अपने ही प्रांत मंें यानी की यूपी के गोरखपुर जिले मंें करेंगे। बचपन में फिल्म देखने का शौक इंसान को इस कदर दीवाना और पागल कर देता है कि एक दिन वही इंसान फिल्म बनाने का जुनून पाल बैठता है। चंद्रपाल सिंह का यही जुनून उन्हें अपने ही यूपी के गोरखपुर जिले के बनकाटा गांव में ले गया जहां उन्होंने 49 दिन का शूटिंग शेड्यूल आयोजित किया था। इस फिल्म का नाम है- प्रलय (एक अंत की शुरुआत)।वही पढ़ाई पूरी की और पूर्वाचंल मेरी रग रग में बसा हुआ है। मैंने कभी बचपन में सोचा भी नहीं था कि मै एक दिन फिल्म निर्माता बनूंगा और उसकी शूटिंग अपने ही पूर्वाचंल में करूंगा। भगवान ने मेरा यह सपना पूरा  कर दिया। मैं आजमगढ़ से मुंबई गया, मैनें वहां पर कैमरा इक्वुमेंट सप्लाई शुरु की और मुझे इस व्यवसाय में दस पंद्रह वर्ष हो चुके है। आज हर धारावाहिक, रियालिटी और अन्य कार्यक्रमों मेरे ही कैमने शूटिंग के लिए जाते है। आज मेरे पास दौ सौ कैमरे है। शूटिंग देख-देख कर एक दिन मुझे ख्याल आया कि मै खुद ही फिल्म निर्माण क्योें न करू, और एक दिन मेरा यह सपना सच भी हो गया। मेरी पहली फिल्म लकीर के फकीर बन कर तैयार है जो जल्द ही प्रदर्शित होने वाली है। यह फिल्म मेरी दूसरी फिल्म है। इस फिल्म में मैने फिल्म इंडस्ट्री के कई जाने-माने कलाकारों को लिया है और उसकी शूटिंग मैं यहां कर रहा हूॅ। मेरे फिल्म की 90 फीसदी शूटिंग यहां पूरी हो चुकी है। कुछ पैच वर्क और एक आइटम साॅग में मुंबई में पिक्चराइज करने वाला हूं। मेरी फिल्म की कहानी एक ऐसे औरत के आजू-बाजू मंें घूम रही है जो एक पचपन साल के आदमी से शादी कर चुकी है। और इस गांव मंे आकर उसके साथ रहता है।
producer-chandrapal-singh-aaditya-pancholiमाशा पौर ने अपने किरदार के बारे मंें जानकारी देते हुए बताया, गरीबी और मजबूरी की वजह से मेरी शादी गांव की एक पचपन साल के बुढ़े रघुवीर यादव से कर दी जाती है। उसे टीबी की बीमारी है। जब शादी होकर मैं गांव आती हूं तब मेरी खूबसूरती और जवानी मेरी दुश्मन बन जाती है। गांव के कुछ लोग मेरी जवानी के पीछे और मुझे पाने के लिए षडयंत्र रचने लगते है। गांव केा बनिया मनोज जोशी, गांव का डाक्टर शक्ती कपूर, गांव का पुजारी सीताराम पंचाल, गांव का जमीदार मोहन जोशी और ईट भट्टों पर  मैं काम करती हूं उसका मालिक मुकेश तिवारी भी मेरी जवानी से खेलना चाहता है। लेकिन में शुक्रगुजार हूं गांव की एक चाची से जिसका किरदार कुनिका लाल कर रही है। वह हर पल मुझे इनसे बचाने की कोशिश करती है। पर किस्मत को पता नही क्या मंजूर है कहते है ना कि प्रकृति से और नारी से छेड़छाड़ करोगे तो एक दिन प्रलय आ ही जाएगा। यही कहानी इस फिल्म प्रलय की। कहानी में भगवान का दूत बन कर आता है आदित्य पंचोली जब आता है तब कहानी बदल जाती है।
कहते है हिदुस्तान आज भी गावों में बसता है, गांव के किसान दिन रात मजदूरी करके खेती बाड़ी करते है। दिन रात मेहनत करके उनको दो जून की सुख की रोटी भी नसीब नहीं होती । आज भी छोटे गांवों के करोड़ों हिंदुस्तानी रोटी, कपड़ा और मकान जैसी सुविधा से वंचित है।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com

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