चंबल के कुख्यात डकैतों के जीवन पर आधारित यथार्थवादी फिल्मों की श्रंृखला में हाल ही चर्चित फिल्म की परम्परा में एक और मील का पत्थर साबित होने वाली फिल्म रक्तबीज षीघ्र रिलीज होने वाली है। 30 वर्शो तक चंबल में कुख्यात रहे ढाई लाख के ईनामी काडू निर्भय सिंह गुजर के जीवन की सच्चाई और वास्तविक पहलुओं को उजागर करने वाली फिल्म के निर्देषक अनिल बलानी ने अनेकों टी.वी सीरियलों तथा टी.वी. षो किये अनुभवी निर्देषक है। फिल्म रक्तबीज षोशणकारी सामाजिक व्यवस्था, भ्रश्ट सरकारी तंत्र, पुलिस, राजनीतिज्ञों और अपराधियों के गठजोड़ पर आधारित है। फिल्म में डाकुओं के जीवन के सच्चाई उनके आपराधिक हथकंडों को बड़ी बारीकी से फिल्माया गया है। रक्तबीज फिल्म की कहानी, घटनायें व आपराधिक तरीके निर्भय गुजर के तौर-तरीकों और उसके जीवन से मेल खाती है। फिल्म में चंबल की दस्यु सुंदरी रही सीमा परिहार से हुये निर्भय गुजर के अंतरंग संबन्धों को भी फिल्मांकन किया गया है।
देषकाल की परिस्थितियों के अनुसार कहानी के पात्रों के नाम काल्पनिक है। रक्तबीज समाज के विभिन्न वर्गो में उत्पन्न हुये दो पात्रों अभय और अजय की जिन्दगी की कहानी हे। जो समाज के दो अलग-अलग क्षेत्रों में षांत व सुखी जीवन जी रहे थे, किन्तु सामजिक अत्याचार, भ्रश्ट पुलिस और सरकारी अव्यवस्था के षिकार होकर दुखत अन्त की ओर बढ़ जाती है।
अभय अत्याचार का षिकार होकर दुर्दान्त डकैत बन जाता है। चुनाव में नेता माया सिंह (टीनू आन्नद) चुनाव जीतकर अभय की पीठ में छुरा भोंक देता है। दूसरी ओर अजय जो एक सफल व्यपारी और उधोगपति है वह व्ययपारिक षत्रुता का षिकार होता है। दोनों का रोमांटिक जीवन प्रेम त्रिकोंणीय से गुजरता है। फिल्म की कहानी के अनुसार राखी सावंत का एक आइटम षांग भी है। रक्तबीज की संवाद प्रभावी व कहानी में रोचकता है। सभी पात्रों के साथ ही निर्देषक अनिल बलानी ने मेहनत की। संगीतकार सतीष-अजय भी मनोरंजन कराने का प्रयास किया। हिन्दी फिल्म रक्तबीज मनोरंजन के साथ ही सामाजिक संदेष भी देगी और कुछ दृष्य दर्षकों को सोचने के लिये मजबूर करेगी।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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