उत्तर प्रदेश के आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर और उनकी पत्नी सामाजिक
कार्यकर्ता डॉ नूतन ठाकुर द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट, लखनऊ बेंच में बोर्ड ऑफ
क्रिकेट कण्ट्रोल इन इंडिया (बीसीसीआई) के विरुद्ध दायर पीआईएल में खेल विभाग एवं
बीसीसीआई को नोटिस जारी करके पूछा है कि बिना नेशनल स्पोर्ट्स फेडरेशन हुए
बीसीसीआई को कैसे सारे लाभ मिल रहे हैं. साथ ही जस्टिस उमानाथ सिंह एवं जस्टिस
वी के दीक्षित की बेंच ने यह भी पूछा है कि भारत सरकार क्रिकेट, हॉकी एवं अन्य
खेलों पर कितना खर्च कर रही है. अगली सुनवाई 17 मई को होगी. याचीकर्ता की ओर
से नूतन ने पक्ष प्रस्तुत किया जबकि भारत सरकार की ओर से अशोक निगम, अतिरिक्त
सोलिसिटर जनरल ने बहस की.
**
याचीकर्ता द्वारा कोर्ट में यह कहा गया कि खेल विभाग, युवा और खेल मंत्रालय कई
सारे नेशनल स्पोर्ट्स फेडरेशन (एनएसएफ) को मान्यता देता है. इन एनएसएफ को
सम्बंधित खेल के विकास की प्राथमिक जिम्मेदारी दी जाती है. खेल विभाग द्वारा
प्रत्येक खेल में एक एनएसएफ को मान्यता प्रदान की जाती है. वर्ष *2011* के लिए
*43* खेलों को मान्यता प्रदान की गयी. क्रिकेट का खेल इस सूची में नहीं है और
न ही बीसीसीआई एक मान्यताप्राप्त एनएसएफ है. **
बीसीसीआई हमेशा इस बात का दावा करता है कि वह एक निजी संस्था है जिस पर किसी
भी प्रकार का सरकारी नियंत्रण या सरकारी सारोकार नहीं है. उसका यह भी कहना
रहता है कि उसने कभी भी एनएसएफ बनने के लिए आवेदन तक नहीं किया है. **
इसके बावजूद बीसीसीआई व्यवहार के एक एनएसएफ की तरह आचरण करता है और एनएसएफ की
पूरी सुविधाएँ और लाभ उठाता है. वह द्रोणाचार्य अवार्ड, अर्जुन अवार्ड जैसे
विभिन्न सरकारी खेल पुरस्कारों के लिए नाम भेजता है जबकि नियम यह है कि मात्र
मान्यताप्राप्त एनएसएफ ही इन पुरस्कारों के लिए नाम भेज सकते हैं और उनका
पुनरीक्षण कर सकते हैं. बीसीसीआई अपने नाम के अंत में इंडिया शब्द लगाता है जो
उसे भारत सरकार द्वारा मान्यता दिये जाने का भ्रम पैदा करता है जबकि अभिलेखों
के अनुसार सरकार ने उसे ऐसी मान्यता कभी नहीं दी. यह एम्ब्लेम एंड नेम
(प्रिवेंशन ऑफ इम्प्रोपर यूज) एक्ट *1950* की धारा *3* का स्पष्ट उल्लंघन है.
इसी तरह से बीसीसीआई की नियमावली के नियम *9* में उसे पूरे देश में क्रिकेट के
लिए नियम बनाने का अधिकार है जबकि उसे इस तरह से क़ानून बनाने का अधिकार किसी
ने नहीं दिया. बीसीसीआई अपने द्वारा चयनित टीम को टीम इंडिया कहता है जबकि एक
गैरमान्यताप्राप्त निजी संस्था की टीम टीम इंडिया नहीं कही जा सकती. इसी तरह
से बीसीसीआई आरटीआई एक्ट की परिधि में आने से इनकार करता है जबकि ज्यादातर
एनएसएफ आरटीआई एक्ट की परिधि में हैं. **
याचीकर्ता का कहना है कि बीसीसीआई सभी प्रकार की सरकारी सुविधाओं को उठा रहा
है और तमाम नियम भी तोड़ रहा है. साथ ही सरकार अथवा जनता के प्रति किसी प्रकार
के विधिक उत्तरदायित्व और जिम्मेदारी को भी दरकिनार कर रहा है. यह स्थिति
बीसीसीआई को देश के क़ानून से ऊपर दिखाती है. **
अतः अमिताभ और नूतन ने कोर्ट में यह प्रार्थना की कि वह बीसीसीआई को
नियमानुसार एनएसएफ के रूप में मान्यता प्राप्त करने को कहे और यदि बीसीसीआई
इसके लिए सहमत नहीं होता है तो किसी अन्य क्रिकेट एसोशियेशन को नियमानुसार
एनएसएफ के रूप में मान्यता दे कर इस विरोधाभाष की स्थिति को दूर करे. **
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
agnihotri1966@gmail.com
sa@upnewslive.com