‘‘अनुसूचित जाति के आरक्षण के लाभ के लिए विशेष आरक्षण की व्यवस्था की मांग’’
राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव चै0 लौटन राम निषाद ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के वर्तमान प्रयासों के लिए धन्यवाद देते हुये कहा कि अतिपिछड़ों को अनुसूचित जाति में शामिल कराने के लिए
संवैधानिक व विधि सम्मत तरीके से प्रयास होना चाहिए। उन्होंने कहा कि किसी भी जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करने का अधिकार भारतीय संसद व राष्ट्रपति को होता है, अनुसूचित जाति/जन जाति की सूची में परिवर्तन का अधिकार राज्य सरकार को नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि राज्य सरकार ने सस्ती लोक प्रियता के लिए निषाद, मल्लाह, केवट, मांझी, बिन्द, धीवर, धीमर, कश्यप, कहार, तुरहा, गोडि़या, मछुवा, रायकवार, नोनिया, चैहान, राजभर, कुम्हार, प्रजापति आदि को अनुसूचित जाति में शामिल करने की अधिसूचना जारी किया तो यह नियम विरूद्ध कार्य होगा और इन 17 अतिपिछड़ी जातियों के साथ सामाजिक अन्याय व धोखा होगा। उन्होंने प्रदेश सरकार से 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिए केन्द्र सरकार को विधिसम्मत प्रस्ताव भेजकर व दबाव बनाकर आरक्षण का लाभ दिलाये जाने की मांग किया साथ ही राज्य सरकार से इन जातियों को शिक्षा, सेवायोजन, आर्थिक विकास आदि में अन्य पिछड़े वर्ग में इनकी जनसंख्या के अनुपात में कोटा व अनुसूचित जाति की समतुल्य आरक्षण की व्यवस्था की मांग की।
श्री निषाद ने कहा कि जो 17 या 19 अतिपिछड़ी जातियों की बात की जा रही है, वे मात्र 7 हैं, अन्य उनकी उपजातियां हैं जिनका नाम उछाल कर हौवा खड़ा किया जाना उचित नहीं है। निषाद, केवट, मल्लाह, सिर्फ एक जातीय है जो क्रमांक 5 पर अंकित है, तथा चाई, तीयर, गोडि़या, बाथम इनकी उप जातियां है जो किसी भी सूची में नहीं है। उन्होंने बताया कि अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिए प्रस्तावित जातियांे की सामाजिक न्याय समिति-2001 के अनुसार 17.63 प्रतिशत आबादी है। इनमें से वे जातियां जो सन् 1959 से विमुक्त जाति के रूप में चिन्हित है उनकी जनसंख्या 11.89 प्रतिशत है। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार को राज्य सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान लखनऊ द्वारा 2010-11 में तैयार नृजातीय सर्वेक्षण रिपोर्ट के साथ विधिसम्मत प्रस्ताव भेजने की मांग की।
श्री निषाद ने कहा कि शासनादेश संख्या-899 (ए)/26-700(5)-1959 दिनंाक 12 मई 1961 के तहत उत्तर प्रदेश में मल्लाह, केवट, कहार, लोध, भर, बंजारा, गन्डिला, घोसी, मेवाती, औधियां, तगाभाट विमुक्त जाति तथा खुरपल्टा, मोंगिया, मदारी, सिंगीवाला, औघड़, वैद्य, भांट, चमरमंगता, जोगी, जोगा, किंगिरिया, महावत (लुगी पठान), भण्डारी, सपेरा, कुरभंगिया, बेलदार, गोसाई आदि विमुक्त घूमन्तु, जाति के रूप में शामिल है। जिन्हें शिक्षा में (सेवा योजन को छोड़कर) अन्य सभी सुविधायें जो अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए अनुमन्य है, देने का शासनादेश है। महाराष्ट्र में इस तरह की विमुक्त घूमन्तु जनजातियों को शिक्षा , सेवायोजन, पदोन्नति, आर्थिक विकास, बजट प्रोवीजन आदि में 11 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था राज्य सरकार द्वारा की गयी है। उन्होंने कहा कि विमुक्त जाति सर्वाधिक पिछड़ी या अत्यन्त पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने का राज्य सरकार को विधिक अधिकार है। उन्होंने कहा कि यदि राज्य सरकार अत्यन्त पिछड़ी जातियों को सामाजिक न्याय व अनुसूचित जाति के समान आरक्षण देने के लिए ईमानदार व गम्भीर है तो जब तक केन्द्र सरकार अनुसूचित जाति में शामिल करने की प्रक्रिया को पूरा नहीं करती है, तब तक उक्त विमुक्त व विमुक्त घूमन्तु जातियांे के साथ अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिए संस्तुत नोनिया, लोनिया, चैहान, कुम्हार, प्रजापति को जोड़कर महाराष्ट्र सरकार के पैटर्न पर जनसंख्या के अनुपात मंे कोटा निर्धारित कर अनुसूचित जाति/जनजाति के समतुल्य शिक्षा, सेवायोजन, पदोन्नति, आर्थिक विकास, बजट प्रोवीजन, स्थानीय निवार्चन आदि में आरक्षण दिये जाने की मांग किया है। उन्होंने राज्य सरकार से शीघ्र अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति मंे शामिल करने हेतु विधिसम्मत प्रस्ताव भेजने व तत्काल विमुक्त व घूमन्तु जनजातियों को महाराष्ट्र पैटर्न पर आरक्षण की व्यवस्था कर सामाजिक न्याय देने की मांग की है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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