प्रदेश में दो दशक के अंदर सहकारिता आंदोलन की कमर टूट गई, अधिकांश सहकारी बैंकों और समितियों को घोटालों का ग्रहण लग गया है।घोटाला उन्हीं लोगों ने किया, जिनके ऊपर इन संस्थाओं को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी थी।घोटालेा की भेट चढे बैंको में फतेहपुर जिला सहकारी बैंक की खागा, किशुनपुर और खखरेडू शाखा है यहाॅ 81 करोड़ का घपला है, जिसे प्रबंधकों और कर्मचारियों ने ही अंजाम दिया। जिला सहकारी बैंक, जौनपुर में एक अरब 74 करोड़ रुपये का गबन सामने आया। अब तो घोटाले के छोटे-बड़े मामले खुलते रहते हैं। प्रदेश में विशेष अनुसंधान शाखा (सहकारिता) का गठन हुआ है, तबसे इस शाखा के पास घोटाले के 13000 प्रकरण विवेचना के लिए आए। विवेचना अधिकारियों ने 11304 मामलों में आरोप पत्र दाखिल किए और 746 घोटालेबाजों को गिरफ्तार कर जेल भी भेजा। इस हालात पर सूबे के सहकारिता आंदोलन कोऑपरेटिव सेक्टर बदनाम हो गया। सहकारिता की सभी संस्थाएं स्वायत्तशासी हैं और जो भी घपले होते हैं, उसके लिए संचालक मंडल और प्रबंध निदेशक ही जवाबदेह हैं। अर्बन कोऑपरेटिव बैंक बहराइच का करोड़ों का घोटाला, शाहजहांपुर जिले के साधन सहकारी समिति सण्डा और हमीरपुर के कोहला सहकारी सभा का राशन घोटाला काफी है। ये यह भी बताने के लिए पर्याप्त है कि सहकारिता से संबंधित कोई संगठन घोटाले से अछूता नहीं है। सूबे में जिला सहकारी बैंक, केंद्रीय उपभोक्ता भंडार, पैक्स, प्राइमरी उपभोक्ता समितियां और सहकारी संघ आदि मिलाकर कुल 17599 समितियां हैं। विभाग के एक सहायक रजिस्ट्रार कहते हैं कि कुछ गिनी चुनी समितियों को छोड़ दें तो शायद ही कोई ऐसी समिति हों जहां घोटाले की जांच न चल रही हो।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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