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नया कर गुजरने की लालसा

Posted on 14 March 2012 by admin

s1तुरही निगाड़ा होई शाह
अब राज मिलेगा होई शाह
ताज मिलेगा होई शाह
सरकार मिलेगी होई शाह
तुरही निगाड़ा होई शाह

हुब्बलवतनी के बोल की तरह समाजवादियों को अपनी सरकार के मिलने पर खुशी है। कैसी होगी सुबह और फिर कैसी होगी शाम की कल्पनाओं में डूबा सूबा इतिहास में दर्ज होते नये सूरज की पलक पावड़े बिछाकर स्वागत करने को आतुर है। पिछले 5 वर्र्षाे में यूपी के आवाम नेे जिस तरह सड़कों पर लहुलुहान होने का पुलसिया अवमानवीये कहर को भोगा है। उसके खत्म होने की अभिलाषा में तूफान से दिया टकराने जैसी घटना अंजाम तक एक नया इतिहास लिखकर पहुँची है। बिचारे भूखे किसान खाद और पानी के लिये जब गुहार लगाते थे तो सत्ता का बेलगाम चाबुक रिरयाता उनकी खाल खीचने के लिये पिल पड़ता था। गणेश प्रसाद गंभीर के शब्दों में कहा जाये तो ‘‘खून बिखरा है/खाल उधड़ी है/लोथड़े बिखरे। नहीं दिखता/किसी को यह मंज्जर/ हर एक आँख में ही/माड़ा है। हम जहाँ साँस ले रहे है/सुन! ये यकीनन/कसाईबाड़ा है। इस कसाईबाड़ा से मुक्ति के लिये यूपी की जनता ने समाजवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत से अधिक 225 सीटों का तोफा देकर अपनी चाहत जता दी है। अब जुम्मेदारी अखिलेश यादव के हाथों में है। वे अपनी जुम्मेदारी को कैसे निभाते है।
सबसे पहले तो यही सवाल है कि ये मूलभूत जरूरतें क्या हैं? हमारे प्रदेश में गरीब जनता की रोजी-रोटी कपड़ा और मकान जैसी आम और अहम जरूरतें तक पूर्ण नही हो पायी है। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बातों पर तो ध्यान ही किसी का नही गया है। शिक्षा माफियाओं के कब्जे में कैद होने के कारण आम आदमी के लिये दिवास्वप्न बनती जा रही है। किसानों के लिये खेती घाटे का सौदा बन गयी है। तो लघु उद्योगों की पूरी कमर टूट चुकी है। टूटते करघे बिखरते घर पूर्वी उत्तर प्रदेश की दर्दनाक तस्वीर पेश करती है। भूख से बेहाल और बदहाल बुन्देलखंड में पैकिज के नाम पर हुई लूट का खेल के साथ खनिज सम्पदा की लूट के अलावा जमीन अधिग्रहण जैसे मुद्दे महत्वपूर्ण है।

अखिलेश यादव के उभरने के पीछे जहां एक ओर अतीत के दृष्टांत हैं जिसमें सपा की पूर्ववर्ती सरकारों की अराजकता से उपजी विफलता है, वहीं दूसरी ओर चुनौतीपूर्ण भविष्य है। उनको अतीत से सबक सीखते हुए जनता की आशाओं को पूरा करने का दायित्व संभालना है। उत्तर प्रदेश की जनता उनसे काफी अपेक्षाएं रखती है। अब प्रदेश की जनता स्वप्न देख रही है कि जात-पांत और धर्म की सीमाओं से निकलकर वे सिर्फ विकास के ही एजेंडे को आगे बढ़ाएंगे।

पिता की राजनैतिक विरासत को मुस्तैदी से संभालने का दायित्व अखिलेश ने बखूबी निभाया है। उत्तर प्रदेश के चुनाव प्रचार में उनकी भूमिका इस बात की तस्दीक करती है कि वे राजनीति का ककहरा सीख चुके है। आखिर उ.प्र. की नब्ज पहचानने का हुनर उन्हें आ ही गया है।
अखिलेश को अभी बहुत कुछ कर दिखाना है, उत्तर प्रदेश के हालिया चुनावी परिदृश्य में अखिलेश का जादू जन के मन पर जिस तरह असर दिखाने में कामयाब रहा है। उसी असर को सरकार नीति और रीति को लागू करके दिखाने का मौका उनके हाथों में आ रहा है। नए नेता राजनीति में कदम जमाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे है। अब कुछ कर दिखाने का समय है। युग तेजी से बदल रहा है और जीने के नए मापदंड बन रहे है। राजनीति भी नए आयाम गढ़े जाने के लिए तत्पर है जिसमें आडंबर और बेईमानी से बात नहीं बनेगी। जनता की पैनी नजर नेताओं के कारनामों पर जमी है सो, नौटंकीबाज नेताओं की दाल नहीं गलने वाली।
भारतीय लोकतंत्र और चुनावों को दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक कवायद माना जाता है।

अखिलेश यादव के सामने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के साथ सभी के सामने बिना भेदभाव के सर्वव्यापी, सर्वग्राही और सर्वस्वीकारी, सर्वहितकारी बनने की चुनौती है। ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में लगातार कुछ नया करने की माँग प्रत्योक क्षेत्र से आयेगी। आज का युग उपभोक्तावाद आधुनिकता औद्योगिकीकरण व्यवसाय -वाणिज्यकरण जैसी आक्रामक स्थतियों से कसमाकस कर रहा है। इस तनाव और अपाधावी भरे माहौल में कुछ सर्वथा नया कर गुजरने की लालसा सहजता सपाट ब्यानी, क्षेत्रीय रंगत, लोकतंत्र तथा जातीऐ स्मृति त्तवों के बीच समय की चुनौतियों को समझ परख कर करना होगा। जो सपने उन्होंने चुनाव के पूर्व अपनी पार्टी की ओर से हर मंच पर जाकर दिखाये थे उनको पूरा करने का नैतिककता पूर्ण दबाव सदैव रहेगा। स्थतियों के सही आकलन चुनौती का सही सामना करके अति विशिष्ट और अति समान और वस्तुनिष्ट बनाकर दुधारी मार के बीच लोगों के दिलों दिमाग पर मरहम लगानी होगी? जातियों के खाने में बट चुकी नौकरशाही को अपने रास्ते पर लाने के लिये काबिले गौर कौन सी तकनीक लगानी होगी। जिससे समता और ममता की बात सब तक पहुँच जाये। सिर्फ सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाये के थोथे नारे से उपजा आक्रोश को बारिश की ठंडी बूदों से सिचित करके संवेदनापूर्ण सुशासन लाने के लिए कदम-कदम पर जागरूक होना पड़ेगा। घोर लापरवाहा नौकरशाही ने पिछले एक हफ्ते में जिस तरह सत्ता परिवर्तन के बाद भी अपने आप को अतीत की छाया से बिलग नही किया। उसके कारण चुनौतियाँ अधिक है। बेरोजगारी भत्ते के लिये सरकारी कार्यालयों में पंजीयन के लिये आने वाले लोगों के साथ पुलसिया बरताव निश्चय ही आक्रोश बड़ाता है। अपने ही वादों को पूरे करने के लिये अपने ही लोग जब आते है। तो उनके साथ हमदर्दी के बदले लाठियों का स्वागत पुलसिया सगल बन गया है।
मानवाधिकारी के उल्लंघन के मामले में देश में सबसे अधिक बदनाम यूपी पुलिस को पटरी पर लाना जितना कठिन है उतना ही कठिन भ्रष्टाचार रूपी दीमक पर रोक लगाना। उद्योगीकरण के राह में रोड़ा बनी अराजकता को भी रोकना पहली प्राथमिकता होगी। हालाकि जिस तरह से अखिलेश यादव के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत मिलने के साथ ही जो कड़े फैसले लिये गये है। उन फैसलों ने आने वाले अच्छे दिनों का आगाज किया है। चैराहों पर बड़े-बड़े हार्डिग लगाकर सत्ता के नजदीक होने की घोषणा करने वालों से लेकर बड़ी-बड़ी गाडि़यों में सत्तारूड़ पार्टियों का झण्डा लगाकर बेलगाम होने के रास्ते को रोकने के जो कदम उठाये है। वह इस दिशा में एक अच्छी पहल है। इस पहल से समाजवादी पार्टी का चाल चरित्र चेहरा ही नही। एक इक्कीसवीं सदी का नया रूप भी सामने आया है। जो सिर्फ लखनऊ तक ही सीमित नहीं रहना चाहता है। अखिलेश का विनम्र चेहरा संयत शब्द मजबूत संदेश ने जिस तरह सत्ता जनित विरोध को सपा के लाभ में बदल दिया। उसे उसी विनम्रता के साथ सत्ता के संचालन में समाजवादी संस्कार में संचालित करना होगा तभी उम्मीद की साईकिल सभी घरों में मुस्कराहट की वायस बनेगी। विकास का विजन जो उन्होंने देखा है। उस विजन को पूरा करने के लिये पूरा बहुमत पास है। इस लिये बदलाव नई सोच … नये जोश के साथ करने के लिये जिस बुलन्द इरादे से मुलायम सिंह यादव की विरासत को अखिलेश यादव ने सम्भाला है। उसे अपनी मेहनत और लगन से साकार करने की जुम्मेदारी है। अखिलेश यादव की सफलता की कुंजी मेहनत और लगन में निहित है।

-सुरेन्द्र अग्निहोत्री
राजसदन 120/132
बेलदारी लेन, लालबाग, लखनऊ
मो0ः 9415508695

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