बाहुबलियों व पंूजीपतियों को नकार जनता ने बैठाया सिर आंखों पर
इसौली विधानसभा
हजारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पर रोती है, बड़ी मुश्किल से पैदा होता है चमन में दीदवर। इकबाल की यह पंक्तियां इसौली विधानसभा के समाजवादी पार्टी प्रत्याशी अबरार पर सटीक बठती है। भले ही उनके संघर्ष, ईमानदारी भरे जीवन की दुश्वारियां और फटे हाल रहने की मुश्किलें पर उनका जज्बा समाजसेवा से कतई नहीं हटा। आर्थिक तंगी के बावजूद इसके जुझारूपन जरूरतमंदों की मदद बदौलत पूंजीपतियों व बाहुबलियों को नकारकर जनता ने इन्हें चुना। चाहे जो भी चुनाव हो इनके व्यक्तित्व ने हमेशा जीत का सेहरा बांधा है।
इसौली विधानसभा के नव निर्वाचित विधायक अबरार अहमद का राजनैतिक कैरियर भी काफी पुराना है। अझुई गांव के किसान रफात उल्ला के घर मां जमीदुलनिशा की कोख से आठ नवम्बर 1950 को ऐसे बालक ने जन्म लिया। जो गांव का ही नहीं पूरे जिले का नाम रोशन किया। जिसका नाम अबरार है। वैसे तो अबरार तीन भाई हैं। जो उनसे अलग हैं। माली हालत के चलते कक्षा आठ तक की ही पढ़ाई कर सके हैं। उच्च शिक्षा के लिए महौल अच्छा नहीं मिला, तो वंचित रह गए। पर परिवार बहुत नेक है। गांव में जामिनदारी का रूतबा था। रूतबेदार लोग मजदूरों का शोषण करते थे। सो अबरार को अच्छा नहीं लगा। 1976 में मजदूरों के हक की लड़ाई लड़नी शुरू की। चार आना मजदूरी से दो रूपये करवाया। जो गंवई लोगों को नागवार लगा। विरोध करना शुय कर दिया। इसी दौरान गांव की प्रधानी में यह जानते हुए कूद पड़े कि उन्हें पराजय मिलेगी। चुनाव हारने के बाद घर से डंड कमंडल लेकर गांव छोड़कर निकल पड़े, और इस्लामगंज में आकर डेरा डाल लिया। यहीं से गरीबों के लिए संघर्ष करना शुरू कर दिया। खुद बयां करते हैं कि कई दिनों तक भूखे तड़पते रहे। गांव वालों को उनका दर्द छलका, सो खाने पीने की व्यवस्था शुरू कर दी। यहीं से इनका राजनैतिक सफर शुरू हुआ। 27 अगस्त 1977 को रंकेडीह गोलीकांड हुआ। कइयों की जाने गईं। विरोध किया, पुलिस के कोपभाजन का शिकार हुए, लेकिन अपने मिशन को नहीं रोका। इसी दौरान सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य बने। रामसुमिरन को चुनाव लड़ाया। फिर मकबूल के साथ रहकर उनकी मदद की। विधायक मंत्री बने। बाद में मुईद अहमद का साथ दिया। 83-84 के दरमियान मुलायम सिंह यादव का क्रान्ति रथ निकला। इस्लामगंज में स्वागत किया। फिर उनके साथ लोकदल व सपा में हो लिए। यह अबरार का ऐसा दौर रहा जो चुनौतियों से भरा था, लेकिन मिशन को कमजोर नहीं होने दिया। इस्लामगंज वासियों की झुग्गी झोपड़ी वालों की लड़ाई लड़ी। उनको उनका हक दिलाया, तो उनके रहनुमा बन गए। यही लोग उनके खाने पीने की व्यवस्था में निरन्तर लगे हैं। चार बार जिला पंचायत सदस्य बने। इसी बीच उनकी पत्नी भी जिला पंचायत सदस्य रहीं। एक दो बार विधानसभा चुनाव लड़े, लेकिल किस्मत ने साथ नहीं दिया। गरीबों की लड़ाई का सिला भी इन्हें अपना हाथ-पैर तुड़वाकर मिला। 2006 में विरोधियों ने हमले ऐसे किए कि इनके हाथ पैर कई जगह टूट गए। आजम खां ने इनके इलाज की व्यवस्था की। ठीक होने के बाद फिर पुरानी धारा में लौट आए। आजम खा के पार्टी छोड़ने पर उनके साथ हुए। पुनः आजम के सपा में वापस आने पर पार्टी से जुड़ गए। पहले सुलतानपुर फिर इसौली विधानसभा से टिकट पाने में कामयाब रहे। ईमानदारी संघर्ष के बल पर चुनाव जीता। जिसका श्रेय अबरार जनता को देते हैं। जो अदने से आदमी को विधानसभा पहुंचाया। कहते हैं कि विधायक का मतलब जन सेवक होता है। जनता की सेवा करना उन्हें खूब आता है। उनका टूटा-फूटा खपरैल मकान, क्षतिग्रस्त बैठका गिरने के कगार पर है। घर के अंदर देशी चूल्हा, पत्तियों के सहारे खाने बनाने की व्यवस्था इनकी ईमानदारी को बयां कर रही थी। बावजूद इसके उनके चेहरे पर मुस्कान व स्वाभिमान साफ झलक रहा था। अपना कुछ नहीं खाने नाश्ते की व्यवस्था गांव वाले ही कर रहे थे। खातिरदारी के लिए भी जनता लड्डू, चीनी, पेठा खुद लेकर पहुंच रही है, पर सिगरेट की कश लगाने को नहीं भूलते। अपनी स्टाइल में दूसरों से ही मांग कर पीना शुरू कर देते हैं। इस पर एक बात सटीक बैठती है। जिसका कोई नहीं उसका खुदा यारों। साधारण परिवार, साधारण सा रहन-सहन, संघर्ष, ईमानदारी अबरार की पूंजी है। जो जनता के चहेते बन गए हैं। जिनके दम पर फटेहाल अबरार ने चुनाव लड़ा और असम्भव को सम्भव कर इतिहास रचकर विधानसभा पहुंच गए।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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