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’’माया मनमोहन तो जरूर जायेंगे’’ - नरेन्द्र सिंह राणा

Posted on 06 March 2012 by admin

6 मार्च को उ0प्र0 के चुनावी नतीजे चाहे जैसे आएं मुख्यमंत्री मायावती व देश के प्रधानमंत्री मनमोहन ंिसंह का जाना अवश्यमभावी है। सवाल यह है कि उ0प्र0 चुनाव में भाजपा, माया और मुलायम तो चुनावी दंगल में लड़े हैं परन्तु मनमोहन सिंह को अपना पद किस खता के लिए गवाना पडे़गा यह रोचक एवं रहस्यमयी प्रश्न है।  जगत में नेताओं, अधिकारियों व अति प्रभावशाली धन्ना सेठों की हुकुमत किस पर नहीं चलती यह जानना जरूरी हो गया है जिसके परिणामस्वरूप वो ना चाहते हुए भी विदा होते हैं चाहे यह विदाई पद की हो, प्रतिष्ठा की हो अथवा शरीर शांत होने के रूप में हो। जी हाॅं बीमारी और मौसम पर इनकी हुकुमत नहीं चलती। किसी शायर ने खूब कहा है कि- गनीमत है कि मौसम व बीमारी पर इनकी हुकुमत नहीं चलती वरना यह सारे बादल अपने खेत में ही बरसा लेते। इन चुनावों में मौसम ने भी लगभग खूब साथ दिया और बिमारी से भी सब दूर रहे। उल्लेखनीय है कि पंजाब, उत्तराखंड और गोवा के चुनाव तो तय समय पर हुए परन्तु उ0प्र0 के चुनाव अपै्रल मई की जगह जनवरी, फरवरी में क्यों कराए गए ? कहीं जल्दी चुनाव कराया जाना मनमोहन ंिसह की विदाई का कारण तो नहीं है।  सवाल उठता है कि न तो केन्द्र की कांगे्रस सरकार के पक्ष में लहर थी जिसका लाभ वो उ0प्र0 के चुनाव में लेते और न ही उ0प्र0 में उनको मणी-माणिक्य जैसी कोई बड़ी उपलब्धि भी रही हो ऐसा भी नहीं है, फिर क्या कारण है कि उ0प्र0 का चुनाव निरन्तर हो रही फजीहतों के बीच में ही तय समय से पूर्व कांगे्रस ने कराया। मुख्यमंत्री मायावती ने भी विधानसभा भंग कर चुनाव की सिफारिश नहीं की थी। अन्य दल भी कमोवेश समय से ही चुनाव होगा मानकर चल रहे थे। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार उ0प्र0 का चुनाव तो महज बहाना है। इसकी आड़ में बड़ा गुल कांगे्रस को खिलाना है। राहुल गांधी को चुनाव बाद प्रधानमंत्री बनाना है। यह कांगे्रस के विदेशी व देशी रणनीतिकारों की सोची समझी बाजी है। जिसमें सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। बिल्ली के भाग्य से छिंका भी टूट जाए। चुनाव में कुछ अच्छा हुआ तो राहुल गांधी का करिश्मा वरना राहुल की कड़ी मेहनत के बाद भी केन्द्र सरकार के खराब प्रदर्शन के कारण हार का स्वाद चखना पड़ेगा। हार को पचाना कांगे्रस के बूते की बात कभी नहीं रही वो हर हार में दूसरे के सर ठींकरा फोड़ने में माहिर हैं अब रस्म अदायगी के लिए हार व जीत की समीक्षा हेतु कांगे्रस कोर गु्रप की बैठक होगी राहुल के नाम पर खुद प्रधानमंत्री मोहर लगाएंगे, सर्वानुमति बनेगी और राहुल गांधी अपै्रल मई में भारत के प्रधानमंत्री बन जाऐंगे। कांगे्रस नेतृत्व में न्याय की नाममात्र भी भावना नहीं रह गई स्पष्ट है कि वह नैतिकता, मूल्यों और आचार नियमों का बुरी तरह तिरस्कार करती है। सत्ता की दुर्दम्य चाह में कांगे्रस नेतृत्व किसी भी स्तर तक नीचे गिरने और कोई भी साधन अपनाने को तैयार है। यह पार्टी सदा से लोकतंत्र के मुकाबले खानदानी तंत्र को बढ़ावा देती है। वह लोगों की दुर्दशा से मुंह मोड़ने के अलावा कर भी क्या सकती है। जैसा की वह समय-समय पर करती आई है। वैसे भी मनमोहन सिंह जी को हटाने से देश में कोई बड़ी प्रतिक्रिया नहीं होगी क्योंकि उन्होंने कभी भूलकर भी कोई तथाकथित बड़ा काम देश के लिए किया होगा तो उसका भी श्रेय उन्होंने श्रीमती सोनिया गांधी व राहुल गांधी को ही दिया है। यानि देश के लिए कम और खानदान के लिए ज्यादा पद को अब तक संभाला है।
एक बार भारत की आजादी के 10 वर्ष बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री ने एक कार्यरत मजदूर से पूछा कि क्यों काम कर रहे हो किसके लिए काम कर रहे हो तो मजदूर ने उत्तर दिया पेट के लिए साहब। प्रधानमंत्री जी सुनकर हैरान यह आजादी के 10 वर्ष बाद भी कहता है काम पेट के लिए देश के लिए नहीं। आज कुछ ऐसा ही हाल वर्तमान प्रधानमंत्री जी के बारे में भी लोग कहते मिलते हैं कि वे देश के लिए कम और गांधी परिवार के लिए अधिक काम करने वाले हैं।
6 मार्च की मतगणना के बाद जो सियासी सूरज उगेगा उसकी तपन बहुतों को महसूस होगी। उस तपन से मायावती व मनमोहन सिंह का जाना तो तय हो गया है। मायावती जी को तो मतगणना के द्वारा अपना फरमान भेजकर जनता जनार्दन विदा करेगी। परन्तु मनमोहन ंिसंह जी को किसी बीमारी और लाचारी का सामना अपने पद गंवाने की कड़ी में करना ही होगा। वैसे चुनाव से पूर्व कांगे्रस कुछ बेहतर करे इसके लिए उन्होंने आनन-फानन में अजीत सिंह को मंत्री पद देकर रालोद से समझौता किया। पद पैसे के लिए प्रतिष्ठा को पूर्व की भांति तार-तार किया गया। रालोद लोकसभा चुनाव भाजपा से मिलकर लड़ा लेकिन साथ दिया कांगे्रस का। लोकसभा में गठबंधन भाजपा से था, विधानसभा में गठबंधन कांगे्रस से आगे राम जाने क्या हेागा। प्रबल तृष्णाओं (पदेष्णा, पुत्रेष्णा, वित्तेष्णा) का अगर एक उदाहरण दिया जाए तो कांगे्रस-सपा-बसपा और लोकदल है। लोकसभा में मथुरा से बेटे की जीत का छींका भाजपा के भाग्य से टूटा। अब उसको एमएलए का चुनाव लड़वा रहे हैं क्योंकि मुख्यमंत्री का दावा लोकदल से और किसी के खाते में न चला जाए यानि बेटा नेता भी, सांसद भी और विधायक भी। वाह रे तृष्णा, वह भी उस भारतभूमि में जहां बुद्ध, महावीर, राणा प्रताप ने सत्ता को पद, पैसा और प्रतिष्ठा को जो उनको माॅं के गर्भ से ही प्राप्त हो गई थी राष्ट्र अराधना, राष्ट्र पे्रम व मातृभूमि की रक्षा के कारण न केवल ठोकर मार दी बल्कि अपने जीवन के अन्तिम समय तक उसको पास भी नहीं फटकने दिया। उस देश में जहां सभी संतोें ने शरीर को संस्कार कहा है, वेदों ने भोग की भूमि नहीं योग की भूमि बताया है। उस देश में सत्ता के लिए क्या-क्या हो रहा है। राम के इस देश में आज के दौऱ में चाम और लगाम बादाम से मंहगे नहीं है बेशक अब राजा किसी रानी की कोख से पैदा नहीं होता, लोकतंत्र में जनता जनार्दन निर्णय करती है कि उसका नेता कैसा हो। परिवार और पद के अहंकार में अपने को बड़े से बड़ा शूरमा समझने वालों को भी जनता चुरमा बना देती है। भारत ने भ्रष्टाचार के विरूद्ध अंगड़ाई ले ली है उसका उदाहरण बढ़ा हुआ मतदान है, मा0 सर्वाेच्च न्यायालय की भ्रष्टाचारियों को जेल भेजने की कार्यवाही हो जिसमें ए0राजा, कलमाड़ी और अन्य मंत्री, मुख्यमंत्री, 121 कंपनियों के लाइसेन्सों को निरस्त करना आदि जेैसे उल्लेखनीय उदाहरण हैं। शर्म का मर्म जनता तो जानती है लेकिन जनता की सेवा करने वाले अधिकारी व नेताओं ने बेच खाई है और अधिकत्तर लोकतंत्र को लूटतंत्र व लोभतंत्र का नाम देने के गुनाहगार हैं।
राहुल गांधी का मार्च, अपै्रल में प्रधानमंत्री बनना और उसके साल भर बाद प्रियंका गांधी का कांगे्रस की अध्यक्ष बनना लगभग 10 माह पूर्व ही तय हो चुका था जब श्रीमती सोनिया गांधी अपनी बीमारी के इलाज के लिए विदेश गई, उसके बाद भारत लौटी उसी समय अपने बच्चों को प्रमुख पदों पर बैठाने की योजना बन गई। इसी कारण पिछले साल भर से राहुल गांधी उ0प्र0 में अकेले कांगे्रस के लिए प्रचार-प्रसार में जुटे रहे और अन्य नेताओं जैसे स्वयं प्रधानमंत्री कांगे्रस के अति वरिष्ठ नेता प्रणव दा, पी0 चिदम्बरम आदि का चुनाव में आना न के बराबर रहा। चुनाव के बहाने राहुल गांधी को मेहनती, हमदर्द दिखाने की कोशिश अधिक रही। हार जीत का होना आम बात है। जनमत अपना निर्णय देशहित में देता है उसको हम सभी को सर माथे पर रखना चाहिए। इस शेर के साथ इस लेख की बात यही खत्म-
हाले गम सुनाते जाइए-लेकिन इतनी हमारी शर्त है मुस्कुराकर जाइए
जनमत का जो भी निर्णय है, उसको सर झुकाकर जाइए।

लेखक- उ0प्र0 भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी हैं
मो0 9415013300
—————————–
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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