जिले मंे बाल पुष्टाहार योजना अपनी पटरी से उतर चुकी है। नौनिहाल बच्चांे, गर्भवती धात्री पुष्टाहार, पशु आहार बनकर खुलेआम बाजारों, गांवों के गली-कूचों में बेचा जा रहा है। अधिकांश केन्द्रों पर ताले लटक रहे है।
कार्यकत्री सुपरवाइजर समेत कार्यक्रम अधिकार नौनिहाल बच्चों के हकों पर डाका डालने की जुगत में लगे हुए है। नौनिहाल बच्चांे को संक्रामक रोगांे से बचाने हेतु सर्व शिक्षा अभियान में जोड़ने हेतु सरकार द्वारा बाल विकास परियोजना के तहत करोडों रुपये पानी की तरह बहाया जा रहा है, किन्तु जिला कार्यक्रम के अधिकारी लचर कार्यप्रणाली के चलते योजनाओं का सही क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है।
गांवों के केन्द्र तक ले जाने हेतु बच्चों को केन्द्र सरकार द्वारा कार्यकत्रियों, सहायिकाओं की तैनाती की गई है तथा केन्द्रों को चेक करने की जिम्मेदारी सुपरवाइजरो को सौंपी गई है।
साथ ही सभी केन्द्र सी०डी०पी०ओ० के निगरानी में संचालित होती है किन्तु यह अधिकारी धन उगाही में अधिक रुचि दिखा रहे है। नौनिहाल बच्चों गर्भवती धात्री महिलाओं को मिलने वाली वीडिंग फूड खुलेआम बाजारों में बेंचकर धन का बंदरबाट किया जा रहा है। सभी केन्द्रांे के लिए प्रतिमाह कागजों मे बीडिंग फूड खारिज किया जाता है।
परन्तु यहां वितरित न होकर पशुओं का आहार बना लिया जाता है। जिसे दूधिये 150 से 250 रुपये प्रतिबोरी की तक खरीदकर पशुओं को खिला रहे है। मिड-डे-मील की तर्ज पर विगत सरकारों ने आंगनबाडी केन्द्रों पर आने वाले बच्चों को गरमा-गरम भोजन देने की योजना बनायी थी, किन्तु वह योजना पूर्णतया ध्वस्त है। बाल विकास परियोजना द्वारा संचालित योजनाएं मात्र कागजों में दिखाई पडती है।
धरातल पर इसका कोई स्वरुप नहीं है। सी०डी०पी०ओ० से लेकर कार्यकत्री तक सभी लोग इस योजना का धराशायी करने मे जुटे हुए है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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