Categorized | UP Elections

जातीय स्वाभिमान के सम्मान की लड़ाई का अखाड़ा बना चुनाव

Posted on 15 February 2012 by admin

यूपी विधानसभा का ये चुनाव दरअसल छोटी-छोटी जातियों की अस्मिता के सम्मान की लडा़ई में तब्दील हो चुका है. इस जमीनी हकीकत को अच्छी तरह से समझ लेने के बाद ही कांग्रेस और बीजेपी दोनों पिछड़ेे वर्ग के वोटों को साधने के लिए किसी भी हद तक चली गईं. कांग्रेस ने सैम पित्रोदा जैसे टेक्नोक्रेट को बढई परिवार में जन्मा बता दिया और चुनाव से ऐन पहले अल्पसंख्यक पिछड़ों को ४.५ फीसदी आरक्षण देने की घोषणा कर दी. कांग्रेस ने इस बहाने पिछड़ा और मुस्लिम कार्ड एक साथ खेला. हालांकि उसका पिछड़ा वर्ग लुभाओ अभियान रालोद के साथ चुनावी गठबंधन से ही शुरू हो गया था. इसके जवाब में बीजेपी ने मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और पिछड़ेे वर्ग की नेता उमा भारती को मैदान में उतार कर कांग्रेस को चुनौती दे दी . यही नहीं भ्रष्टाचार के आरोप में  बीएसपी से  निकाले  गए और एनआरएचएम में हजारों करोड़ के घोटाले में आरोपी बाबु सिंह कुशवाहा को राजनीतिक प्रश्रय देकर बीजेपी ने भी अपने लक्ष्य पर निगाहें गड़ा दी हैं.
लेकिन किसी ने अभी तक ये सवाल नहीं किया कि इन दोनों राष्ट्रीय पार्टियों को ऐसे फैसले लेने के लिए मजबूर क्यों होना पड़ा. वे कारण क्या हैं जिन्होंने कुशवाहा प्रकरण पर लखनऊ से लेकर दिल्ली तक बीजेपी ने फजीहत मोल ले ली. शालीन बातों में सिद्धहस्त कांग्रेस ने अपने स्टार प्रचारक और भविष्य के नेता राहुल गाँधी के मुंह से सैम पित्रोदा को पिछड़ा बताने में तनिक भी संकोच नहीं किया. दरअसल इन बड़ी पार्टियों को भी अब पता चल गया है कि यूपी में जातीय अस्मिता के लिए छोटी-छोटी जातियों ने अपने-अपने नेता तलाश लिए हैं. यही कारण है कि बटला हाउस फर्जी मुठभेड़ और लापता हो गए दर्जन भर से अधिक मुस्लिम नवयुवकों की लड़ाई को लड़ने जैसे संवेदनशील मुद्दे पर अस्तित्व में आई उलेमा काउन्सिल जातीय आधार के अभाव में राजनीतिक परिद्रश्य से गायब हो गई और पीस पार्टी पिछड़ेे मुसलमानों की प्रतिनिधि जमात बनकर उभर आई.
इस चुनाव में सबसे दिलचस्प मामला इसी पार्टी का है. पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान २००९ में वजूद में आई ये पार्टी पूर्वांचल, मध्य उत्तर प्रदेश और रूहेलखंड में जातीय अस्मिता के बल पर बड़े बड़ों के समीकरण बना बिगाड़ रही है. मुसलमानों में पिछड़ी जाति मोमिन अंसार प्रदेश की कुल मुस्लिम आबादी में ६० फीसदी से ज्यादा आंकी जाती है. पूर्वांचल से लेकर पश्चिमी यूपी तक ८५ विधानसभा सीटों पर इस बिरादरी के वोट प्रभावशाली हैं. करीब २५ सीटें ऐसी हैं जिन पर इसके वोट ९० हजार तक हैं. पीस पार्टी के अध्यक्ष डाक्टर अयूब मोमिन अंसार हैं. वह पूर्वांचल के विख्यात सर्जन और उद्योगपति हैं और खलीलाबाद से मैदान में हैं तो उनके बेटे इरफान इंजिनियर ने मुबारकपुर से चुनाव लड़ने के लिए ही अमेरिका में ३५ लाख रूपये सालाना की नौकरी छोड़ दी है. उन्होंने अमेरिका की यूनिवर्सिटी आफ म्युनिस्फोटा से इलेक्ट्रिकल में इंजीनियरिंग और वहीँ से एमबीए किया है. ये बात आसानी से समझी जा सकती है कि इन बाप-बेटे को पैसा कौड़ी की दरकार तो नहीं ही है. चुनाव में पिछड़े मुस्लिमों से ’अपनी पार्टी’ को वोट देने की अपील के साथ ये पार्टी सबसे ज्यादा समाजवादी पार्टी के लिए मुसीबत बनी हुई है. उसके आधार वोट ’यादव-मुस्लिम’ समीकरण को इसने बिगाड़ कर रख दिया है. कांग्रेस और बीएसपी इस बदले हुए समीकरण से काफी हद तक संतुष्ट दिख रही हैं क्योंकि सपा के सिमटने का लाभ कालांतर में कांग्रेस को और तात्कालिक लाभ बीएसपी को मिलने के आसार हैं.
पीस पार्टी जैसा उदहारण अपना दल का भी है. लेडी श्रीराम कालेज की पास आउट मनोविज्ञान में एमए अनुप्रिया पटेल अपने पिता सोने लाल पटेल की राजनीतिक विरासत को सहेजने के लिए वाराणसी की रोहनिया सीट से उम्मीदवार हैं. लगभग ५० सीटों पर कुर्मी जाति के वोटों को बूथ लेविल तक मजबूत कर चुकी हैं. प्रदेश के पिछड़ों की आबादी में करीब १.७५ हिस्सा रखने वाली कुर्मी बिरादरी भी इस बार अपनी अस्मिता की लड़ाई लड़ रही है.

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

Leave a Reply

You must be logged in to post a comment.

Advertise Here

Advertise Here

 

May 2024
M T W T F S S
« Sep    
 12345
6789101112
13141516171819
20212223242526
2728293031  
-->









 Type in