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अयोध्या मुद्दा - कांग्रेस पार्टी ने हिन्दू भावनाओं को चोट पहुंचाई, जानबूझकर उच्च न्यायालय के निर्णय की अवहेलना की; भाजपा इसके लिए माफी मांगने की मांग करती है

Posted on 02 February 2012 by admin

भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव, श्री अनंत कुमार द्वारा जारी प्रेस वक्तव्य

कांग्रेस पार्टी ने कल उŸार प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए अपना चुनाव घोषणापत्र जारी किया। इस घोषणापत्र के अनेक ऐसे पहलू हैं, जिनसे यह पता चलता है कि पार्टी के पास न तो कोई विज़न है और न ही कोई ध्येय। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि उŸार प्रदेश में सुशासन और उसके विकास की गम्भीर चुनौतियों का समाधान करने के लिए इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

तथापि, अल्पसंख्यक वोट बैंक को आकर्षित करने के अपने बौखलाहटपूर्ण प्रयास में कांग्रेस ‘अल्पसंख्यक तुष्टीकरण’ के निंदनीय स्तर पर उतर आई है। मैं कांग्रेस के घोषणापत्र की एक विशिष्ट बात की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा, जोकि अत्यंत आपŸिाजनक है। पृष्ठ 18 पर - ‘अल्पसंख्यक’ वर्ग के तहत - घोषणापत्र में कहा गया है कि कांग्रेस पार्टी “बाबरी मस्जिद विवाद का न्यायसंगत समाधान की पैरवी करेगी।“ इसमें आगे कहा गया है कि: “सभी पार्टियों को न्यायालय का निर्णय मानना चाहिए।“
भाजपा उपर्युक्त मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी की मूल विचारधारा को अत्यंत आपŸिाजनक और वास्तव में विकृत मानती है। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में राम जन्मभूमि का जानबूझकर उल्लेख नहीं करना उचित समझा। ऐसा करके कांग्रेस पार्टी ने यह संकेत दिया है कि अयोध्या में विवाद केवल ‘बाबरी मस्जिद’ के बारे में है। कांग्रेस का यह भी मानना है कि राम जन्मभूमि नाम की कोई चीज न तो पहले थी और न अब है।
अपने घोषणापत्र में केवल ‘बाबरी मस्जिद’ का उल्लेख करके कांग्रेस ने यह भी संकेत दिया है कि अयोध्या विवाद का समाधान ध्वस्त ‘बाबरी मस्जिद’ ढांचे का पुनर्निर्माण करने में ही निहित है। इस बात को इस तथ्य से और भी बल मिलता है कि अपने घोषणापत्र में अल्पसंख्यक वर्ग के तहत इस मुद्दे का उल्लेख किया गया है।
रामजन्मभूमि के बारे में कोई उल्लेख न करके कांग्रेस ने स्पष्टतः से न केवल उŸार प्रदेश अपितु पूरे भारत के हिन्दू समुदाय की भावनाओं और ‘सांस्कृतिक भारत’ को चोट पहुंचाई है। इसका मानना है कि बहुसंख्यक हिन्दू समुदाय का अयोध्या में विवादित स्थल पर कोई दावा नहीं है। इसी वजह से इसने अपने घोषणापत्र में अयोध्या मुद्दे को ‘अल्पसंख्यक’ वर्ग के तहत रखा है।
कांग्रेस पार्टी का रवैया न केवल पूर्णतया हिन्दू-विरोधी है, अपितु न्यायपालिका-विरोधी भी है। श्रीमती सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने सितम्बर, 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के स्पष्ट और ऐतिहासिक निर्णय को आसानी से भुला दिया है। माननीय उच्च न्यायालय ने स्पष्टरूप से तथा सर्वसम्मति से हिन्दुओं के दावे को स्वीकार किया है कि अयोध्या में विवादित स्थल, जहां पर राम लला की मूर्ति विद्यमान है, वास्तव में ‘राम जन्मभूमि’ है - अर्थात् भगवान राम की जन्मभूमि है। उच्च न्यायालय बहुसंख्यक समुदाय द्वारा प्रस्तुत किए गये हजारों पृष्ठों के ऐतिहासिक दस्तावेजों और पुरातत्व-सम्बन्धी साक्ष्यों की जांच करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचा था।
इस समय अयोध्या मुद्दा उच्चतम न्यायालय के समक्ष है। समूचा राष्ट्र उच्च न्यायालय के सर्वसम्मत निर्णय पर उच्चतम न्यायालय द्वारा शीघ्र एवं अंतिम मोहर लगाये जाने की प्रतीक्षा कर रहा है।
मेरे प्रश्न निम्न प्रकार हैं:
1.    क्या कांग्रेस नेतृत्व माननीय उच्च न्यायालय के सर्वसम्मत निर्णय को स्वीकार करता है या अस्वीकार ?
2.    यूपीए नई दिल्ली में गत 7 वर्षों से सŸाा में है। यदि कांग्रेस ईमानदारी से अयोध्या मुद्दे का न्यायसंगत और शांतिपूर्ण समाधान चाहती है, तो इसके नेताओं को यह स्पष्ट बताना चाहिए कि यूपीए सरकार ने इस दिशा में अब तक क्या कदम उठाए हैं ?

माननीय उच्चतम न्यायालय ने कल अपने महत्वपूर्ण निर्णय में किसी लोकसेवक पर भ्रष्टाचार के मामलों में मुकदमा चलाने के लिए किसी भी आम नागरिक द्वारा अनुमति मांगने के अधिकार को स्वीकार किया है। इसने इस प्रकार के मामले पर फैसला लेने हेतु सरकार के लिए 4 महीने की समयसीमा भी तय की है।
शीर्ष न्यायालय ने 2जी घोटाले में भ्रष्ट मंत्रियों पर मुकदमा चलाये जाने की अनुमति दिये जाने के डाॅ. सुब्रह्मण्यम स्वामी के तर्क को स्वीकार किया है। इसने स्वामी द्वारा प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह को भेजे गये आवेदन पर कोई कार्यवाही न करने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय को दोषी ठहराया है और कहा है कि यदि प्रधानमंत्री को सही ढंग से सलाह दी जाती, तो वे “एक वर्ष तक मामले को लटके रहने न दिया होता।“

इस सन्दर्भ में भाजपा प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह से निम्न प्रश्न पूछना चाहेगी:

1.    क्या प्रधानमंत्री के बिना प्रधानमंत्री कार्यालय हो सकता है ?
2.    क्या प्रधानमंत्री ने जानबूझकर अपने प्रधानमंत्री कार्यालय को डाॅ. स्वामी के आवेदन की एक वर्ष से अधिक की अवधि तक अनदेखी करने के लिए उन्हें गुमराह करने के लिए कहा था ?
3.    क्या प्रधानमंत्री ने अपने स्वयं के प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा गुमराह होना उचित समझा क्योंकि 2जी घोटाले में न केवल तत्कालीन विŸामंत्री श्री पी. चिदम्बरम, बल्कि स्वयं प्रधानमंत्री भी लिप्त हैं ?
4.    कांग्रेस-नीत यूपीए सरकार ने उस समय तक प्रतीक्षा क्यों की जब तक उच्चतम न्यायालय ने उसे भ्रष्ट मंत्रियों और अन्य लोकसेवकों पर मुकद्दमा चलाये जाने की अनुमति मांगने के आम आदमी के अधिकार के बारे में याद दिलाई ?

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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