महिला वर्ष मनाया जाय चाहें महिलाओं को आगे लाओ के नारे दिये जाय परन्तु हरदोई विधानसभा क्षेत्र में यह कहना बेईमानी है क्योंकि यहाँ पर सदर सीट का चुनाव 16बार हो चुका है और उसमें महिला वर्ग के खाते में यह मौका केवल तीन बार ही नेतृत्व करने का सौभाग्य यहाँ की महिलाओं को प्राप्त हुआ है। शायद पुरूष प्रधान समाज में कोई पार्टी महिलाओं को इस सीट से उपयुक्त नहीं मानती तभी तो इस बार भी किसी पार्टी ने किसी महिला को प्रत्याशी बनाकर नहीं उतारा है। अभी तक आजादी के बाद से 1952 के चुनावी संग्राम में लक्ष्मी देवी प्रथम महिला कांग्रेसी विधायिका बनी फिर 1957 और 1962 के चुनाव में महेश सिंह विधायक चुने गये।1967 का चुनाव निर्दलीय रूप में धर्मगज सिंह विधायक बने इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी को पराजय का मुँह देखना पड़ा तदन्तर आशा सिंह 1969 के चुनाव में जीती जो दूसरी बार महिला विधायक का खिताब हासिल किया।1974 मं कांग्रेस से श्रीशचन्द्र अग्रवाल और 1977 में धर्मगज सिंह पुनः विधायक बने।1980 का चुनाव नरेश अग्रवाल ने कांग्रेस पार्टी को विजयश्री दिलाई परन्तु 1985 का चुनाव कांग्रेस पार्टी से उमा त्रिपाठी को चुनाव लड़ाया गया और वह विजयी रहीं 1989 में पार्टी ने दुबारा उन्हें लड़ाया परन्तु निर्दलीय प्रत्याशी नरेश अग्रवाल से चुनाव हार गयी। नरेश के बढ़ते जनाधार पर कांग्रेस ने उन्हें पार्टी में शामिल करके 1991, 1993, 1996 में लगातार विजय हासिल की और अपना कद बढ़ाया इस प्रकार नरेश अग्रवाल कांग्रेस की स्थिति गड़बड देखकर भाजपा, सपा और बसपा के बाद फिर सपा पार्टी में शामिल हो गये हैं और जनपद विधान सभा चुनाव संग्राम में 16 में से तीन बार महिलाओं को यह मौका राजनीति पार्टियों ने अभी तक दिया है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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