उप्र विभाजन के मायाबती के सियासी दांव को काग्रेस ने उलटने के तहत राह मे रोढे अटकाने का मन बना लिया है केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश के 4 भागों में विभाजन के मायावती सरकार के प्रस्ताव को बैरंग वापस लौटा दिया है। राज्य के विभाजन के प्रस्ताव पर तभी विचार किया जा सकता है, जब वह 8 मुद्दों को साफ कर दें। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि राज्य सरकार के प्रस्ताव में नए राज्यों की सीमाओं का जिक्र तक नहीं है, जो किसी नए राज्य को बनाने के लिए पहली जरूरत है। यह भी नहीं बताया गया कि प्रस्तावित राज्यों में कौन-कौन से जिले शामिल होंगे और उन राज्यों की राजधानी कहां होगी। सबसे बड़ा सवाल यह है कि नए राज्य बनाने का खर्च कहां से आएगा और इसे कौन वहन करेगा। गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार से पूछा है कि प्रस्ताव भेजने से पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने नए राज्यों के औचित्य का कोई अध्ययन कराया था या नहीं। आखिर राज्य सरकार के विभाजन के प्रस्ताव का आधार क्या है। इसके साथ ही गृह मंत्रालय यह भी जानना चाहता है कि यूपी के ऊपर मौजूदा कर्जो और राजस्व का नए राज्यों के बीच बंटवारा कैसे किया जाएगा। गृह मंत्रालय यह भी जानना चाहता है कि राज्य में अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों (आइएएस व आइपीएस) का नए राज्यों के बीच बांटे जाने का फार्मूला क्या होगा। के जबाब मे मायाबती ने काग्रेस पर उलट बार करते हुऐ कहा है कि प्रदेश के पुनर्गठन के सम्बन्ध में केन्द्र सरकार द्वारा प्रेषित पत्र राज्यों के पुनर्गठन के विषय में संविधान द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के उल्लंघन में है, जिसका समुचित उत्तर राज्य सरकार द्वारा प्रेषित किया जायेगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि कल व आज समाचारों में जो उल्लिखित किया गया है कि ‘केन्द्र सरकार ने राज्य के विभाजन का प्रस्ताव लौटा दिया यह सही नहीं है। वास्तव में राज्य के पुनर्गठन सम्बन्धी प्रस्ताव को लेकर भारत सरकार द्वारा कतिपय मुद्दों पर जानकारी उपलब्ध कराने की अपेक्षा प्रदेश सरकार से की गयी है। जिससे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इस मामले में कार्रवाई करने के बजाय वह इसे लम्बित रखना चाह रही है।
किसी भी राज्य के पुनर्गठन अथवा विभाजन के लिये संविधान में वर्णित प्रक्रिया का उल्लेख करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि इस सम्बन्ध में विधेयक या कानून संसद द्वारा ही पारित किया जाता है तथा राज्य सरकार की इसमें कोई संवैधानिक भूमिका नहीं होती। संविधान के अनुच्छेद-3 के अन्तर्गत संसद में राज्य के पुनर्गठन का विधेयक प्रस्तुत करने से पूर्व उसके विषय में महामहिम राष्ट्रपति जी की अनुज्ञा प्राप्त किया जाना अपेक्षित है तथा राष्ट्रपति ऐसी अनुज्ञा देने से पहले सम्बन्धित राज्य के विधान मण्डल से अनिवार्य रूप से अभिमत प्राप्त करेंगे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तर प्रदेश के पुनर्गठन के विषय में विधान मण्डल द्वारा दिनांक 21 नवम्बर, 2011 को पारित किये गये प्रस्ताव को राज्य सरकार द्वारा भारत सरकार को भेज दिया गया, जिसमें कि उत्तर प्रदेश विधान मण्डल की मंशा व्यक्त की गयी है। इस सम्बन्ध में यदि केन्द्र सरकार संवैधानिक योजना के अन्तर्गत प्रस्तावित विधेयक के विषय में अभिमत चाहती है तो उसे महामहिम राष्ट्रपति जी के माध्यम से राज्य के विधान मण्डल से संवाद करना चाहिये। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार विधान मण्डल के अभिमत के विषय में कोई टिप्पणी अथवा स्पष्टीकरण देने हेतु संवैधानिक रूप से सक्षम नहीं है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यदि पुर्नगठन विधेयक निर्मित करने के लिए केन्द्र सरकार की ओर से कोई जानकारी चाही जाती है तो राज्य सरकार प्रशासनिक स्तर पर उसमें निश्चित रूप से सहयोग करेगी। परन्तु केन्द्र सरकार ने ऐसा कुछ नहीं कहा है कि उसको विधेयक बनाने के लिए सूचना अथवा जानकारी चाहिये। केन्द्र सरकार ने पत्र में यह कहा कि वह पत्र का उत्तर प्राप्त होने के पश्चात इस पर विचार करेंगी। इसका मतलब विधान मण्डल के प्रस्ताव का कोई महत्व केन्द्र सरकार के लिए नहीं है, जबकि केन्द्र सरकार को जन-आकांक्षाओं के अनुरूप भेजे गये विधान मण्डल के प्रस्ताव पर संवैधानिक रूप से कार्यवाही करनी चाहिये। उन्होंने कहा कि इस प्रकार केन्द्र सरकार द्वारा प्रेषित किया गया उक्त पत्र महामहिम राष्ट्रपति जी एवं उत्तर प्रदेश राज्य के विधान मण्डल के अधिकारों के अनुरूप प्रतीत नहीं होता है। उप्र विभाजन के पक्षधर बुन्देलखण्ड काग्रेस के राजा बुन्देला के साथ ही लोकमंच के अमर सिह भी माया के सुर मे सुर मिला रहे है। जन-आकांक्षाओं के अनुरूप उत्तर प्रदेश राज्य का विभाजन मे देर करने पर काग्रेस को कटघरे मे खडा करने की मुहिम पूर्वांचल, बुन्देलखण्ड,मे चलायेगे। राज्य का विभाजन के ेनाम पर बाजी मारने को आतुर बसपा भी पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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