उत्तर प्रदेश इस समय संकट के दौर से गुजर रहा है जो प्रदेश आजादी के समय देश के अग्रणी राज्यों में गिना जाता था। वो आज बदहाली का शिकार हो गया है। वर्ष 1951 में उत्तर प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत के लगभग बराबर थी। परन्तु आज प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय 26051 रू॰ प्रतिवर्ष है जो कि प्रति व्यक्ति आय की राष्ट्रीय औसत 54835 रू॰ प्रतिवर्ष के लगभग आधी है। यानि आजादी के बाद उत्तर प्रदेश भारत के अन्य प्रांतों की तुलना में लगातार पिछड़ता चला गया है।
यहां तक कि बिहार जैसा प्रदेश जो आजादी के समय सबसे पिछड़ा राज्य माना जाता था वो भी कुछ वर्षों से काफी तेजी से प्रगति कर रहा है। आज बिहार के आर्थिक विकास की गति 11 फीसदी से भी अधिक है जबकि उत्तर प्रदेश में विकास की दर महज 6 फीसदी के आसपास सिमट गई है।
केन्द्र सरकार द्वारा गठित तेंदुलकर कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में 20 करोड़ आबादी में से लगभग 8 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे है। गरीबी और बदहाली का सर्वाधिक असर इस प्रदेश के ग्रामीण अंचलों में दिखाई दे रहा है। योजना आयोग के आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश के गरीबों का 80 फीसदी हिस्सा गांवों में बसता है। प्रदेश के गांवों में फैली गरीबी और रोजगार के अवसरों में कमी के कारण यहां की गरीब जनता दिल्ली, पंजाब, महाराष्ट्र और अन्य प्रांतों में रोजगार तलाशने को मजबूर है।
उत्तर प्रदेश ही नही पूरे देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को ध्वस्त करने का काम आखिर किसने किया है? कांग्रेस एवं उसके सहयोगी दलों ने इस देश की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था की सर्वथा उपेक्षा की है। जबकि इस देश का 55 फीसदी रोजगार ग्रामीण अंचलों से आता है। आज उत्तर प्रदेश में कृषि रसातल में चली गई है। गांवों में सड़क, पानी, बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। इसके बावजूद इस प्रदेश के गांवों की स्थिति को सुधारने के लिए प्रदेश या केन्द्र सरकार ने कोई गंभीर प्रयास नही किया है।
भारत का आर्थिक नियोजन उसके प्रकृति एवं चरित्र के अनुरूप किया जाना चाहिए। योजना आयोग की रिपोर्ट के अनुसार केन्द्र द्वारा उत्तर प्रदेश को 11वीं पंचवर्षीय योजना (2007-12) के दौरान ग्रामीण विकास के लिए जो बजट आबंटित किया गया है वह उत्तर प्रदेश को मिलने वाले कुल बजट का महज 4.2 फीसदी ही है। जबकि पहले की पंचवर्षीय योजनाओं में ग्रामीण विकास के लिए औसतन 10 फीसदी बजट का आबंटन होता था।
यदि कांग्रेस पार्टी को उत्तर प्रदेश की गरीबी और पलायन की चिंता होती तो ग्रामीण विकास के लिए उत्तर प्रदेश को मिलने वाले बजट प्रतिशत में कमी नही आई होती।
उत्तर प्रदेश की उपेक्षा करने वाली केन्द्र की यूपीए सरकार को बसपा और सपा दोनों का समर्थन हासिल है। इससे यह स्पष्ट होता है कि उत्तर प्रदेश की बदहाली के लिए सपा, बसपा एवं कांग्रेस तीनों जिम्मेदार है।
आजादी के बाद इस देश में सबसे लम्बे समय तक कांग्रेस पार्टी का शासन रहा है। भारत मेें गरीबी और बेरोजगारी बढ़ने का सबसे बड़ा कारण कांग्रेस पार्टी द्वारा गांधी जी के आर्थिक दर्शन को छोड़ना रहा है। चाहे गांधी दर्शन का स्वदेशी का विचार रहा हो, ग्राम स्वराज्य रहा हो, कुटिर उद्योग रहे हो अथवा रामराज्य अवधारणा रही हो, इन सबके साथ-साथ गांधी जी की इन समस्त नीतियों को तिलांजलि देकर कांग्रेस पार्टी ने सिर्फ गांधी का नाम अपनाया हुआ है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि गांधी जी की हत्या भले ही नाथूराम गोडसे ने की हो मगर गांधीवाद की हत्या कांग्रेस पार्टी ने की है। कांग्रेस पार्टी को जवाब देना होगा कि आखिर क्यों उसने गांधी जी को पूरी तरह छोड़ दिया है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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