बहुजन समाज पार्टी की सरकार आगामी विधानसभा चुनावों में अपनी पराजय निश्चित जानकर रोज नये राजनीतिक हथकण्डे अपना रही है। आज उ0प्र0 के बंटवारे के प्रस्ताव की घोषणा भी उसी का एक हिस्सा है। यदि सुश्री मायावती राज्य के बंटवारे के लिए इतना ही गंभीर थीं तो उन्होने पिछले साढ़े चार वर्षों के शासनकाल में बंटवारे से संबंधित प्रस्ताव विधानसभा में पेश क्यों नहीं किया।
कंाग्रेस विधानमंडल दल ने विधानसभा में बुंदेलखण्ड और पूर्वांचल के गठन पर संकल्प प्रस्तुत किया था। इसी प्रकार राष्ट्रीय लोकदल ने भी हरित प्रदेश का प्रस्ताव प्रस्तुत किया था। इसलिए सुश्री मायावती को यह जवाब देना होगा कि उनकी सरकार ने इन प्रस्तावों पर राज्य विधानसभा में मतदान कराकर पारित क्यों नहीं कराया। विधानसभा में जब भी छोटे राज्यों की चर्चा हुई अथवा इनसे सम्बन्धित कोई प्रस्ताव आया, बसपा ने हमेशा ही उसका विरोध किया। विधानसभा की कार्यवाही इसकी गवाह है।
कांग्रेस छोटे राज्यों के गठन के पक्ष में हमेशा रही है और यह कांग्रेस पार्टी ही थी जिसने छोटे राज्येां का गठन पहले भी किया है। छोटे राज्यों का गठन केवल भौगोलिक सीमाओं के बंटवारे से नहीं होता बल्कि उसमें आर्थिक, सामाजिक एवं अन्य संसाधनों के बंटवारे पर भी ध्यान देना होता है। इसलिए उ0प्र0 कंाग्रेस कमेटी इस बात की मांग करती है कि द्वितीय राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन होना चाहिए जो लोगों की आकांक्षाओं के अनुरूप छोटे राज्यों के गठन के बारे में व्यापक विचार-विमर्श के बाद अपनी संस्तुति दे एवं तद्नुसार नये राज्यों का गठन का मार्ग प्रशस्त हो सके।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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