ऽ वर्तमान सरकार के एजेन्डे से खेती, किसान गायब है। पूरे प्रदेश में खाद का संकट गहरा गया है इसके लिए केन्द्र व प्रदेश सरकार की नीतियां पूरी तौर पर जिम्मेंदार हैं। सरकारी गोदामों में अभी भी प्रति बोरी 542.70 रूपये की दर से खाद है। उन्हीं गोदामों में 605 रूपये प्रति बोरी की खाद भी पड़ी है। मौजूदा समय में डी0ए0पी0 960 रूपये से 1200 रूपये तक पहुंच चुकी है। आसानी से मिल भी नहीं रही है। यह सीधे-सीधे जमा खोरी और काला बाजारियों को बढ़ावा देने की नीति के तहत भ्रष्टाचार का यह खेल खेला जा रहा हैे।
ऽ भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ ;एन0सी0यू0वाई0द्ध ने खुद माना है कि जमाखोरों की मनमानी वसूली के कारण 550 रूपये की खाद 1200 रूपये से 1500 रूपये के बीच बिक रही है।
ऽ पिछले वर्ष केन्द्र सरकार ने अप्रैल में बढ़ते सब्सिडी के बोझ को कम करने के लिए यूरिया को छोड़कर सभी उर्वरकों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर दिया है। जिसके परिणाम स्वरूप खाद के दाम लगातार आसमान छू रहे हैं। इसकी पुनर्समीक्षा होनी चाहिए। आखिर सब्सिडी कम करने के पीछे कारण क्या है।
ऽ सरकारी अकर्मणता, लाल फीताशाही के कारण सहकारी समितियां दिवालिया हो गई हैं। लगभग 50 सहकारी समिति में से 35 दिवालिया होकर करोड़़ांे का चूना आमजनों को लगा चुकी हैं। उ0प्र0 के बाहर ये सहकारी समितियां जहां किसानों के लिए वरदान साबित हो रही हैं। वहीं प्रदेश में कष्टकारी बन गई हैं। गुजरात में अमूल सहकारी क्षेत्र का ही उपक्रम है। उ0प्र0 में आखिर यह संकट क्यों। राजनीतिक इच्छा शक्ति, दूर दृष्टि के कारण राज्य का सहकारिता आन्दोलन मृत प्राय हो गया है।
ऽ सरकार की गलत नीतियों के कारण धान उत्पादक किसान संकट में है। बिचैलिये सरकारी संरक्षण में हावी हैे। बाजार में अबतक साढे़ पांच लाख टन धान की आवक हो चुकी है। सरकार मात्र 70 हजार टन ही खरीद पायी वह भी ज्यादातर बिचैलियों के माध्यम से। जबकि लक्ष्य 25 लाख टन खरीदने का है। इसके लिए जहां प्रदेश सरकार की बिचैलियों को लाभ पहुंचाने का नीति है वहीं केन्द्र सरकार का उपेक्षा पूर्ण रवैया भी एक महत्वपूर्ण कारण बन रहा हैे। पी0सी0एफ0 कर्मचारी पिछले एक माह से हड़ताल पर हैं जबकि इन कर्मचारियों की भी धान खरीद और भण्डारण में महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
ऽ किसान की सबसे बड़ी नगदी फसल गन्ना पर संकट उत्पन्न हो गया है। गन्ने पर नया विवाद पैदा हो गया है। मुख्यमंत्री द्वारा गन्ने का नया मूल्य निर्धारित होने केे कारण मिल मालिक कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं। पिछले वर्ष भी किसान मिल मालिक और न्यायालय के बीच जूझता रहा। गन्ने का मूल्य बकाया है, पर मुख्यमंत्री कहती हैं कि शतप्रतिशत भुगतान किया जा चुका है। सरकार इस पर श्वेत पर जारी करे।
ऽ भाजपा का स्पष्ट मानना है कि गन्ने का मूल्य 300 रूपये प्रति कुन्टल किया जाना चाहिए उसका समय से भी भुगतान होना चाहिए। समय पर भुगतान न होने पर इसके लिए 15ः की दर से ब्याज दिया जाना चाहिए।
ऽ ग्रामीण रोजगार सृजन के लिए चलाई जा रही मनरेगा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है। पूरे प्रदेश में मनरेगा को लेकर शिकायतें हैं। सोनभद्र जैसे कई जनपदों मे पिछले 06-08 महीनों से कोई काम ही नहीं हुआ।
ऽ मनरेगा का भ्रष्टाचार यू0पी0ए0 सरकार और बसपा सरकार का संयुक्त उपक्रम हैे। इनके बीच नूरा-कुश्ती का खेल चल रहा हैे। सरकार का काम गड़बड़ी पकडे़ जाने पर दोषी को दण्डित करना है। जबकि दोनों सरकारें केवल बयान बाजी कर रही हैं।
ऽ इटावा, आगरा, फर्रूखाबाद, मैनपुरी आलू उत्पादन का सबसे बड़ा केन्द्र है। किन्तु पर्याप्त मात्रा में भण्डारण वितरण की व्यवस्था न होने के कारण किसान को उसकी उपज का सही मूल्य नहीं मिल पाता। कई बार तो उसको आलू फेंकना पड़ता है। हमें इस बार अवसर मिलता है तो इस क्षेत्र को आलू उत्पादक जोन घोषित किया जायेगा। उसके लिए भण्डारण, वितरण की सरकार व्यवस्था करेगी। आलू का निर्यात कराया जायेगा। उस पर आधारित उद्योग को कर मुक्त करके यहां उद्योग स्थापित करने हेतु प्रोत्साहित किया जायेगा।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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