Û केन्द्र और प्रदेश सरकार पूर्णतया किसान विरोधी है। गेहूॅ, गन्ना और आलू किसानों को लागत भर भी मूल्य न देकर उन्हें कर्ज और मंहगाई की मार से जूझने या फिर आत्महत्या कर लेने को विवश कर दिया है। अब धान किसानों को भी बदहाल करने की तैयारी है। बिचैलिए व्यापारी खाद्य विभाग के अफसरों से साठगांठ कर किसानों को ठग रहे हैं और अपनी तथा मुख्यमंत्री की तिजोरी भर रहे हैं क्योंकि बिना उनका हिस्सा लगाये कोई भ्रष्टाचार नहीं कर सकता है।
Û बसपा सरकार के पिछले साढ़े चार वर्ष के कार्यकाल में गेहूॅ और धान की खरीद में प्रतिवर्ष लगभग 2 हजार करोड़ रूपए का घोटाला हुआ है। इस प्रकार से बसपा सरकार अब तक आठ हजार करोड़ रूपयो से ज्यादा का घोटाला कर चुकी है। इन सब घोटालों की जांच सीबीआई से होनी चाहिए। सरकार धान खरीद के बारे में किसानों के नाम सार्वजनिक करें।घोटाले में मुख्यमंत्री, मंत्री तथा अधिकारी सभी फंसेगें। समाजवादी पार्टी की सरकार बनते ही संबंधित अधिकारियों को निलम्बित कर घोटालों की जांच होगी। मंत्री और मुख्यमंत्री भी सजा से नहीं बचेगें।
Û केन्द्र सरकार ने धान का समर्थन मूल्य 1080 रूपए रखा है जबकि कृषि लागत एवं मूल्य आयोग ने धान के मूल्य में 160 रूपए बढ़ोत्तरी की सिफारिश की थी। उत्तर प्रदेश सरकार के कृषि फार्मो में प्रति कुंतल धान उत्पादन की लागत लगभग 1400 से 1500 रू0 आती है। सरकार ने केवल 80 रूपए की बढ़ोत्तरी की। कांग्रेस अपनी ही बनाई हुई स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट भी लागू नहीं करना चाहती जो किसानों को लाभकारी मूल्य देने की सिफारिश कर चुकी है। समाजवादी पार्टी की मांग है कि डीजल, खाद, बिजली, बीज, पानी की मंहगाई से 1600 रूपए कुंतल से कम धान की खरीद नहीं होनी चाहिए।
धान के क्रय केन्द्रों पर सीधे किसानों से खरीद नहीं की गई। बिचैलियों के माध्यम से धान की फर्जी खरीद दिखाई गई है। बिचैलियों ने मात्र 700-800 रूपए प्रति कुंतल में खरीद की है। सरकार खरीद में फर्जीवाड़े की पोल इसी से खुलती है कि जहाॅ वर्ष 2010-11 में धान की खरीद 15717 मीट्रिक टन दिखाई गई थी। जबकि इस वर्ष 69155 मी0 टन खरीद दिखाई गई है। एकदम इतनी ऊॅची छलांग का कोई औचित्य नहीं हैं स्मरणीय है, प्रति कुंतल लगभग 200 रू0 की सब्सिडी केन्द्र से मिलती है। सरकार ने फर्जी खरीद की छलंाग इसलिए लगाई है ताकि केन्द्र से ज्यादा सब्सिडी मिल सके।
नियमतः धान खरीद सीधे किसानों से क्रय केन्द्रों पर होती है। इससे चावल मिलों में भेजकर कुटाई की जाती है कुटाई से प्राप्त चावल सरकारी गोदामों में दिया जाता है। इस वर्श चावल मिलों ने सीधे ब्लैक में राशन वितरण वाला चावल खरीद कर सप्लाई कर दिया है। चावल मिलों के कुटाई रजिस्टर, बिजली,डीजल खपत का रिकार्ड चेक किया जाए तो पता चलेगा कि मिलंे चली ही नही,ं पर सरकारी गोदामों में रिसाइकिल चावल सप्लाई हो गयां।
सरकार आंकड़ों पर ही विश्वास करें तो सरकार को 34039 मीट्रिक टन धान राइस मिलों से लेवी उठानी थी जबकि कुल 9431 मीट्रिक टन लेवी उठाई गई है। सरकार लेवी न उठाने के कारण राइस मिलर्स किसानों को बकाया भुगतान नहीं कर पा रहे हैं। इससे किसान परेशान है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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