आज उत्तर प्रदेश समेत पूरे देश की जनता महंगाई के संकट का सामना कर रही है। निरंतर बढ़ती महंगाई के कारण जहां आम आदमी की क्रय शक्ति घट रही है वही गरीबों की हालत बद से बदतर होती जा रही है।
देश के प्रधानमंत्री और उनकी सरकार के मंत्री महंगाई को समृद्धि का प्रतीक मानते है और यह दावा करते है कि भारत की जनता पहले से ज्यादा खाना खाने लगी है। इसलिए महंगाई बढ़ रही है। सच्चाई तो यह है कि आज आम आदमी के भोजन की थाली सिकुड़ती जा रही है। सरकारी संगठन NSSO की रिपोर्ट के अनुसार आम जनता ने पिछले कुछ समय से खाद्य सामग्रियों पर होने वाले व्यय में लगभग 10 फिसदी की कटौती की है।
केन्द्र की यूपीए सरकार को सपा और बसपा का समर्थन हासिल है इसलिए गरीबों और दलितों की हितैषी होने का दावा करने वाली इन दोनों पार्टियों को जवाब देना चाहिए कि प्रदेश में इतनी महंगाई होने के बावजूद उन्होंने केन्द्र सरकार को समर्थन क्यों जारी रखा है?
देश में महंगाई की दर पिछले कुछ समय से 10 फिसदी के रिकार्ड स्तर के आस-पास है जो हांलि में बढ़कर 12 फिसदी से ऊपर निकल गई हैै। ऐसे में पेट्रोलियम कम्पनियों को मनमाने तरीके से पेट्रोल की कीमत बढ़ाने की छूट देकर केन्द्र सरकार ने महंगाई की आग को और अधिक भड़काया है। जिससे यह साबित होता है कि इस देश में महंगाई पूरी तरह कृत्रिम और अप्राकृतिक है।
सरकार कह रही है देश की तेल कम्पनियों को प्रतिदिन 15 करोड़ रूपए का घाटा हो रहा है और इस घाटे की भरपाई के लिए मूल्य वृद्धि आवश्यक है।
तेल कम्पनियों ने पिछले 5 महीनों में 10 रूपए से अधिक की वृद्धि की है। और कल के समाचार पत्रों में पुनः 15 रू॰ प्रति लीटर पेट्रोल के दाम बढ़ाने की बात कही है। यूपीए सरकार ने तेल कम्पनियों की Balance sheet सुधारने के चक्कर में आम आदमी के घर का बजट बिगाड़ दिया है।
जिन तेल कम्पनियों के घाटे की चिंता केन्द्र सरकार को है उनमें से दो कम्पनियां तो Fortune 500 नामक दुनिया की सबसे बड़ी कम्पनियों में शामिल है। ये कम्पनियां अपने बलबूते पर लाभ और हानि अर्जित करती है। जब भारत की तेल कम्पनियां अगले कुछ वर्षों में देश में 5-6 हजार नए पेट्रोल पम्प खोलकर Expansion करने की बात कर रही है तो उनके द्वारा घाटे को Compensate करने के लिए आम आदमी पर दबाव क्यों डाला जा रहा है?
जब पेट्रोल के दाम अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कम होते है तो भारत में पेट्रोल के दाम कम नही किए जाते परन्तु अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मूल्य वृद्धि होते ही तत्काल आम आदमी पर बढ़े हुए दामों का बोझ डाल दिया जाता है। मुझे लगता है कि पेट्रोलियम कम्पनियों द्वारा अपने घाटे को बढ़ा चढ़ाकर प्रस्तुत किया जा रहा है। इसलिए इन कम्पनियों के Balance Sheet की जांच CAG यानि कैग द्वारा की जानी चाहिए।
कल प्रधानमंत्री डा॰ मनमोहन सिंह ने मालदीव में आयोजित सार्क सम्मेलन के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी को अमन पसंद व्यक्ति की संज्ञा दी जो कि बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। मैं प्रधानमंत्री के इस बयान की निंदा करता हूं क्योंकि जिस पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को वे अमन पसंद व्यक्ति बता रहे है उन्होंने पाकिस्तान की धरती से चल रहे आतंकवादी शिविरों को समाप्त करने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया है। ना ही उन्होंने मुंबई हमलों के जिम्मेदार लोगों और संगठनों के खिलाफ कोई ठोस कार्यवाही की है जो पाकिस्तान में खुलेआम घूम रहे है। और ना ही पाकिस्तान ने पाक अधिकृत कश्मीर में चीन की बढ़ती दखलांदाजी को रोकने का ही कोई गंभीर प्रयास किया है। कुछ साल पहले हवाना में पाकिस्तान को आतंकवाद से पीडि़त देश बताना और अब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को शांतिदूत कहना यह भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री और यूपीए सरकार की निहायत ही और निरन्तर गलत नीति का प्रमाण है।
एक अमेरिकी Tink Tank की रिपोर्ट के अनुसार लद्दाख से सटे गिलगिट बल्दिस्तान में पाकिस्तान की शह पर चीन लगातार अपना प्रभुत्व बढ़ा रहा है। वहां चीनी कम्पनियों को खनन का लाइसेंस दिया गया है और ये चीनी कम्पनियां स्थानीय लोगों को अपने ही संसाधन का इस्तेमाल करने से रोक रही है।
पाकिस्तान सरकार ने चीन को या अन्य भारत विरोधी शक्तियों को रोकने का कोई गंभीर प्रयास नही किया है। जिससे पता चलता है कि पाकिस्तान का भारत के प्रति रवैया शत्रुतापूर्ण है। इसमें किसी को संदेह नही कि पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध होने चाहिए। परन्तु पाकिस्तान के रवैए से ऐसा लगता है कि वो भारत के साथ दोहरा षड्यंत्र कर रहा है।
भारत को पाकिस्तान से सिर्फ Most Favoured Nation का दर्जा मिल जाए इस आतुरता में प्रधानमंत्री डा॰ मनमोहन सिंह को देश के कूटनीतिक हितों के साथ समझौता नहीं करना चाहिए। शायद देश की जनता को याद हो भारत ने पाकिस्तान को Most Favoured Nation द का दर्जा 1996 में दिया था। पाकिस्तान ने तो उसका जवाब देने में भी 15 साल लगा दिए। जो किसी भी दृष्टि से यह पाकिस्तान की ओर से किसी बहुत बड़े उदार दृष्टिकोण का परिचायक नहीं माना जा सकता।
भारत के प्रधानमंत्री का पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को शांति का दूत कहना हास्यास्पद है क्योंकि पाकिस्तान ने भारत के साथ शांति स्थापित करने की दिशा में गंभीर प्रयास नहीं किए हैं। प्रधानमंत्री का बयान नैतिक, रणनीतिक एवं कूटनीतिक सभी दृष्टियों से गलत है एवं दुर्भाग्यपूर्ण है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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