समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राजेन्द्र चैधरी ने कहा है कि मुख्यमंत्री मायावती ने किसानों को गन्ने का नया मूल्य घोषित करते हुए झूठ का पुलिंदा भी पेश कर दिया है। यह चुनावी वर्ष में किसानों को भरमाने और बरगलाने का एक भोंडा प्रयास है। मुख्यमंत्री ने 240-250 रूपए का राज्य परामर्शी मूल्य घोषित कर किसानों पर कोई उपकार नहीं किया है क्योंकि 260 से 290 रूपए कुंतल तक के दाम तो वर्ष 2009-10 में चीनी मिलें किसानों को दे चुकी है। जितने दाम चीनी मिलें पहले दे चुकी है उससे कम देकर मुख्यमंत्री का किसानों को बड़ा तोहफा देने का प्रचार उनकी झूठ और लूट की राजनीति को ही दर्शाता है। यदि उन्हें सचमुच किसानों की हित चिन्ता है तो उन्हें समाजवादी पार्टी की मांग मानकर 350 रूपए प्रति कुंतल गन्ने के दाम की घोषणा करनी चाहिए।
समाजवादी पार्टी और बसपा राज के तुलनात्मक विवेचन से स्पष्ट है कि जहां समाजवादी पार्टी की सरकार में गन्ना किसानों को तत्कालीन परिस्थतियों में ज्यादा लाभकारी मूल्य मिला, नई चीनी मिलें स्थापित हुई और चीनी उत्पादन भी बढ़ा वहीं बसपा राज में चीनी मिलें बेची गई, इनकी मशीनरी के साथ पूरी संपत्ति भी औने-पौने दाम चन्द चहेते पूंजीघरानों को बेच दी गई। मुख्यमंत्री द्वारा इसमें मोटा कमीशन वसूला गया। गन्ने का बुवाई क्षेत्र घटा है। और किसानों का बकाया भी वर्श 2007-08 का 160 करोड़ रूपए पड़ा हुआ है। यह धनराशि और कोई नहीं सरकारी चीनी मिलें ही दबाई बैठी है।
मुख्यमंत्री ने चतुराई से मिल मालिकों का संरक्षण करते हुए उनके द्वारा शीरें, खोई तथा गन्ना के अन्य सह उत्पादों से होनेवाली आय को गोल कर दिया है। किसान के गन्ने पर ही मालिकों का मुनाफा बढ़ रहा है, उसे नजरंदाज क्यों किया जा रहा रहा है। हर बार गन्ना किसान पर ही मिल मालिकों के घाटे की गुहार की तलवार क्यों गिरती है? चूॅकि मुख्यमंत्री ने अपना कमीशन पक्का कर रखा है इसलिए मिल प्रबंधन पर सरकारी गैर सरकारी कोई असर नहीं पड रहा है।
यह सर्वविदित है कि किसानों की लागत इधर काफी बढ़ी है। खाद, बीज, बिजली, सिंचाई सभी के दामों में 50 प्रतिशत वृद्धि हुई है। डीजल के दाम बढ़े हैं। किसान को उत्पादन लागत में ज्यादा धन खर्च करना पड रहा है। चीनी मिलें चीनी के दाम बढ़ाती गई है और बसपा सरकार गन्ने के दामों में वाजिब वृद्धि करने से कतराती रही है। गन्ना उपज की लागत 35 प्रतिशत बढ़ी है जबकि मूल्य 17-18 प्रतिशत ही बढ़ा है। सरकार का किसानों के साथ यह विश्वासघात है जिसकी जितनी निन्दा की जाए कम है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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