़सिटी मोन्टेसरी स्कूल के इनोवेशन विंग द्वारा सी.एम.एस. कानपुर रोड आॅडिटोरियम में आयोजित ‘अन्तर्राष्ट्रीय प्री-प्राइमरी प्रधानाचार्य सम्मेलन’ का दूसरा दिन व अन्तिम दिन विचार-विमर्श का रहा। आज के सारगर्भित विचार-विमर्श में विश्व के 10 देशों बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, अमेरिका, इंग्लैण्ड, अर्जेन्टीना, फिनलैंड, सिंगापुर, नीदरलैण्ड व भारत के विभिन्न राज्यों से पधारे शिक्षाविदों, प्रधानाचार्यों व शिक्षकों ने इक्कीसवीं सदी में शिक्षा के नये रूप को विकसित करने की पद्धति, नवीन शैक्षिक तकनीकों, नवीन शैक्षिक उपकरणों एवं टीचिंग एड्स पर अपने विस्तृत अनुभव रखे और अपने बहुमूल्य विचारों से सम्मेलन की सार्थकता सिद्ध कर दी। लगभग सभी प्रतिभागी शिक्षाविदों का मानना था कि भविष्य के लिए हमें प्री-प्राइमरी शिक्षा की जड़े मजबूत करनी होगी। इसी में सम्पूर्ण मानव जाति की भलाई है। बच्चे यदि पर्याप्त मात्रा में विभिन्न गतिविधियों में हिस्सा नहीं लेंगे तो निश्चित रूप से उनकी छिपी शक्तियां उभरकर सामने नहीं आ पायेंगी।
शिक्षाविदों के इस अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन का दूसरा दिन सार्थक शिक्षा पर वार्ता से आरंभ हुआ जिसमें देश-विदेश से पधारे शिक्षाविदों ने सार्थक शिक्षा पर अपने तर्क प्रस्तुत किए। नीदरलैण्ड से पधारे इण्टरनेशनल माॅन्टेसरी एसोसिएशन के प्रेसीडेन्ट श्री आन्द्रे रोबरफ्राइड ने कहा कि शिक्षा किसी प्रकार की दौड़ नहीं है अपितु यह एक यात्रा है। हमें इस यात्रा को बच्चों के लिए मजेदार बनानी है। उन्होंने कहा कि शिक्षा द्वारा हम न केवल समाज को बदल सकते हैं बल्कि इतिहास की रचना कर सकते हैं। शिक्षक का सबसे बड़ा इनाम उसके छात्र की सफलता है। शिक्षा व शान्ति का समन्वय प्रस्तुत करते हुए श्री रोबरफोर्ड ने कहा कि ‘शान्ति’ युद्ध का अभाव नहीं है अपितु यह वह साहस है जिसके जरिये हम मतभेदों का सामना कर सकते हैं। इसके लिए जरूरी हैं हम नन्हें-मुन्हें बच्चों को इस अद्भुद संसार को देखने दें, अपने अन्दर की ताकत को महसूस करने दें और उसकी जिज्ञासाओं को समाधान दें, तभी वह आगे चलकर विश्व नागरिक बनेगा और विश्व एकता व विश्व शान्ति में अपना योगदान दे सकेगा।
माण्टेसरी विशेषज्ञ व ए.एम.आई. की ऐक्जीक्यूटिव डायरेक्टर सुश्री लिन लाॅरेन्स ने कहा कि माॅन्टेसरी प्रणाली द्वारा हम बालक, अध्यापक व अभिभावक तीनों को शिक्षित करते हैं। उन्होंने टीचर ट्रेनिंग पर विशेष जोर देते हुए कहा कि इसमें भी परिवर्तन की आवश्यकता है। अध्यापकों को पाठ्यक्रम तक सीमित न रहकर पढ़ाई को रोचक बनाना चाहिए व इसमें संगीत, खेल, बोलचाल, कहानी, चित्रकथा इत्यादि का प्रयोग करना चाहिए। सुश्री लाॅरेन्स ने अपने सम्बोधन के दौरान शिक्षकों के प्रश्नों के उत्तर भी दिये। इसी प्रकार ए.एम.आई. की ट्रेनर सुश्री सुनीता मदनानी ने माॅण्टेसरी प्रणाली द्वारा भाषा ज्ञान देने पर सारगर्भित प्रस्तुति की जिसका सभी शिक्षाविदों ने खूब प्रशंसा की। अपने सम्बोधन में सुश्री मदनानी ने कहा कि बच्चे के प्रथम छः वर्ष उसके व्यक्तित्व विकास के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।
आई.सी.पी.पी.पी.-2011 के दूसरे दिन आज सी.एम.एस. संस्थापिका व प्रख्यात शिक्षाविद् डा. (श्रीमती) भारती गाँधी ने भी देश-विदेश से पधारे शिक्षकों का खूब मार्गदर्शन किया। शान्ति शिक्षा का समाज पर पड़ने वाले प्रभाव पर अपने विचार रखते हुए डा. (श्रीमती) गाँधी ने कहा कि शिक्षकों के सामने आज सबसे बड़ी चुनौती है कि आने वाली पीढ़ियों को कैसे उच्च आदर्शों से परिपूर्ण नागरिक बनाएं। केवल भौतिक शिक्षा मनुष्य के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकती है और उसे गलत राह पर ले जा सकती है। इसलिए छात्रों के पाठ्यक्रमों में नैतिक, चारित्रिक व आध्यात्मिक शिक्षा को अनिवार्य बनाना आवश्यक हो गया है। उन्होंने उपस्थित शिक्षाविदों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यहां देश-विदेश के शिक्षाविदों की उपस्थिति में नये-नये विचार दुनिया को मिल रहे हैं जो इक्कीसवीं सदी की शिक्षापद्धति में क्रान्तिकारी बदलाव लायेंगे।
सी.एम.एस. के मुख्य जन-सम्पर्क अधिकारी श्री हरि ओम शर्मा ने बताया कि इस दो-दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन के अन्तर्गत देश-विदेश से पधारे शिक्षाविदों ने सारगर्भित परिचर्चा के अलावा आज सी0एम0एस0 कानपुर रोड पर प्रदर्शित नवीनतम शैक्षिक सामग्री व उपकरणों का अवलोकन किया जो पढ़ाई को और मजेदार और आसान बनते हैं। श्री शर्मा ने कहा कि यह दो-दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन हालांकि आज सम्पन्न हो गया परन्तु इसके माध्यम से देश-विदेश के शिक्षाविदों ने शिक्षा पद्धति के क्रान्तिकारी बदलाव का जो बिगुल फूँका है, उसकी प्रतिध्वनि सारे विश्व में सुनाई देगी।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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