कुपोषण जैसी बिमारियों ने पसारे पैर, स्वास्थ्य विभाग मौन
जिले में मिलावटी व क्रीम रहित दूध का धंधा अब थमने के बजाये कुटीर उद्योग का रूप ले चुका है वहीं मिलावटी दूध से नैनिहालों में कुपोषण जैसी काफी हद तक बीमारियां पनप रही हैं। स्वास्थ्य विभाग यह सब जानकर भी चुप्पी साधे हुए है।
जनपद की समस्त तहसील क्षेत्रों मंे क्रीम रहित दूध की बिक्री धड़ल्ले से जारी है वहीं खाद्य विभाग व स्वास्थ्य विभाग मौन बने हुए है। दूध में किये जाने वाली मिलावट से शिशुओं मंे कुपोषण जैसी गम्भीर बीमारी फैलाने की आशंका बनी रहती है। वहीं मिलावटी दूध की बिक्री रोकने के सिलसिले में शासन व प्रशासन तथा विभाग को कई बार अवगत कराया परन्तु विभागीय अधिकारी अपने निहित स्वार्थपूर्ति के चलते इस ओर देख कर भी अनदेखा कर रहे हैं। ग्रामीण इलाको को छोड़कर शहर की ही बात करें, तो फार्मों पर दूध से क्रीम निकालकर बेचने का धंधा एक कुटीर उद्योग का रूप ले चुकी है। आश्चर्य की बात यह है कि स्वास्थ्य व खाद्य विभाग सब कुछ जानकर भी चुप है। वहीं विभाग की उदासीनता के चलते यह धंधा काफी जोरों पर है। यही नहीं सार्वजनिक जानकारी होने पर भी इस अवैधानिक व्यवसाय को रोकने की दशा में जिला प्रशासन द्वारा कोई कारगर कदम नहीं उठाया गया। परिणाम स्वरूप क्षेत्र मंे मिलावटी दूध तथा क्रीम रहित दूध की बिक्री बड़े पैमाने पर की जा रही है। इस धंधे से जुड़े कुछ लोगों का कहना है कि जनपद में करीब-करीब सभी स्थानों पर स्थापित मशीनों द्वारा दूध से क्रीम निकाल कर बेचा जाता है। बताते चलें कि एक लीटर दूध से करीब 100 ग्राम तक क्रीम निकलती है तथा मार्केट में यह क्रीम 80 से 90 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकती है। इस क्रीम से अधिकांश देशी घी बनाया जाता है। यही नहीं इस क्रीम को मशीन मालिक स्वयं खरीद लेते हैं। शेष दूध को यह दूधिया 15-18 की रेट में होटल आदि जगहों पर बेच देते हैं। वहीं दूधिया क्रीम रहित दूध में किसी भी प्रकार का रासायनिक मिश्रण मिलाने से इंकार कर रहे हैं वहीं दूध में मिलावट का धंधा काफी अर्से से चल रहा है।
स्वास्थ्य विभाग के अपने स्वार्थ के खातिर इस धंधे की ओर अनदेखा करने की वजह से यही मिलावटी दूधस जिला अस्पताल मंे भी मरीजों के लिए पहुंच गया था। सीएमएस इसके बाद भी इस ओर कोई भी ध्यान नहीं दे रहे थे, लेकिन जब सबूतों के साथ अखबारों में प्रकाशित किया गया तब कहीं जाकर अस्पताल में मिलावटी दूध खुलेआम बन्द हो गया है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों मंे चर्चा है कि क्रीम व मिश्रण दूध की बिक्री पर रोक नहीं लगायी जा सकती है। इसका मुख्य कारण सम्बन्धित खाद्य निरीक्षक प्रति माह दूध विक्रेताओं से हजारों में मोटी रकम लेते हैं। जिसकी वजह से कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाती है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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