उत्तर प्रदेश मातृ-नवजात शिशु स्वास्थ्य एवं पोषण मंच की कार्यशाला में उठा मुद्दा
लड़कियों के जीवन संरक्षण, कम उम्र में विवाह एवं पोषण के मुद्दों पर आज छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय के पी.एच.आई. भवन में गहन चर्चा हुई। उत्तर प्रदेश मातृ-नवजात शिशु स्वास्थ्य एवं पोषण मंच की पहल पर आयोजित कार्यशाला में ख्यातिलब्ध विषय विशेषज्ञ, सरकारी अधिकारी सामाजिक प्रतिनिधि एवं मीडिया के प्रमुख सदस्यों ने लैंगिक समानता एवं महिला सशक्तिकरण पर अपने विचार व्यक्त किये।
कार्यशाला का शुभारम्भ लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति प्रो. रूपरेखा वर्मा, महानिदेशक परिवार कल्याण डा. रामजी लाल, लड़कियों के जीवन संरक्षण विषय के प्रतिष्ठित विशेषज्ञ डाॅ. साबू जाॅर्ज, यूनीसेफ की राज्य प्रमुख सुश्री एडेेल खुद्र के अतिरिक्त डा0 अरूणा नारायन, डा0 मधु शर्मा, जाॅर्ज फिलिप ने दीप प्रज्जवलन किया। डा. नीलम सिंह ने लड़कियों के जीवन संरक्षण विषय को प्रस्तुत किया।यूनीसेफ की डा. गायत्री सिंह ने लड़कियों के पोषण के मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त किये। सुश्री सोन्वी कपूर ने कम उम्र में बालिकाओं के विवाह पर विस्तृत चर्चा करी।
प्रतिष्ठित विशेषज्ञ डाॅ. साबू जाॅर्ज में अपने सम्बोधन में कहा कन्या भू्रण हत्या तथा गर्भस्थ शिशु की हत्या के विरूद्ध आवाज उठाना समय की मांग है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही प्रोफेसर रूप रेखा वर्मा ने कहा कि सामाजिक और लैंगिक भेदभाव के साथ-साथ महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के लिए गहन विचार विमर्श कर समाजिक बाधाओं को भी समझना होगा। सामाजिकरण की प्रक्रिया पर बोलते हुए प्रोफेसर वर्मा ने कहा कि लैंगिक भेदभाव सदियों से चली आ रही सभ्यता का परिचायक है इसके लिए महिला या पुरूष किसी एक को दोष देना उचित नही है। प्रो0 वर्मा ने कहा कि अब समय है कि महिला को एक नागरिक के रूप में स्थापित करना चाहिए न कि पुत्री, पत्नी या माँ के रूप में। भविष्य के कार्यक्रमों के बारे में चर्चा करते हुये यूनीसेफ की राज्य प्रतिनिधि एडेल खुद्र ने कहा यद्यपि बहुत से मामलों में आंकड़ेे स्वतः ही स्थिति को बयान करते हैं लेकिन सहयोगी संस्थाओं को चाहिए कि वो गुणात्मक एवं संख्यात्मक डाटा को प्रस्तुत करें ताकि वास्तिविकता के आधार पर चर्चा को बढ़ाया जा सके। सुश्री खुद्र ने कहा कि केवल सरकारी तंत्र को सुदृढ़ करने से काम नही चलेगा इसके लिए नागर समाज एवं समुदाय की प्रतिक्रिया भी आवश्यक होगी। सुश्री खुद्र ने लड़कियों के साथ हो रहे भेदभाव को खत्म करने के लिए आवश्यक पैरवी के लिए नागर समाज एवं मीडिया की प्रमुख भूमिका पर चर्चा की।
वक्ताओं ने कहा कि प्रदेश में पिछले कई वर्षों से लगातार लड़कियों की घटती संख्या गंभीर चिंता का विषय है। 1991 के आंकड़ों के अनुसार लिंग अनुपात (प्रत्येक 1000 पुरुषों के अनुपात में महिलाओं की संख्या) 927 से घटकर 2011 में 899 हो गया। लड़कियों का कम उम्र में विवाह होना (प्रदेश में केवल 33.1 प्रतिशत महिलाओं का विवाह 18 वर्ष के बाद होता है), गर्भावस्था व प्रसव के दौरान उचित देखभाल न होना मातृ एवं शिशु मृत्यु दर का एक मुख्य कारण है। लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण को वास्तिवकता बनाना विश्व के लिए एक चुनौती है। यह चुनौती विशेषकर भारत जैसे अन्य विकासशील देशों के कारण है जो कि मुख्य रूप से पितृसत्तात्मक समाज द्वारा संचालित हैं व पुत्र की चाहत में व्यापक तौर पर लैंगिक भेदभाव है।
लैंगिक समानता एवं महिला सशक्तीकरण, संयुक्त राष्ट्र के मिलेनियम डेवेलपमेंट गोल्स 2015 में से एक है जो कि मानवता के स्वास्थ्य व कल्याण के लिए महत्वपूर्ण है। इसी दृष्टि से उत्तर प्रदेश का मातृ, नवजात शिशु स्वास्थ्य एवं पोषण मंच अपने सहयोगियों के साथ मिलकर उपरोक्त मुद्दों पर समाजिक परिवर्तन के लिए प्रतिबद्ध है। इस मंच की सभी सहयोगी संस्थाएँ लड़कियों के विकास के लिए प्रयासरत रहेंगे ताकि उन्हें कामयाब होने के बेहतर अवसर मिल सकें।
कार्यशाला के अन्त में लड़कियों के जीवन संरक्षण, कम उम्र में विवाह एवं पोषण सम्बन्धी मुद्दों पर आम सहमति बनाकर कार्य करने की प्रतिबद्धता दर्शायी गयी। सुश्री रागिनी पसरीचा ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यशाला में ख्याति प्राप्त सरकारी अधिकारी, नगर समाज के प्रतिनिधि, विषय विशेषज्ञ तथा मीडिया के प्रमुख सदस्य उपस्थित रहे।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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