पितृयोनी पूर्वज को प्रसन्न व उनकी आत्म तृप्ति कराने की परंपरा इसी में है। कि ब्राहम्ण का आदर क साथ भोजन कराके उनका पूर्ण संतुष्ट करना चाहिए। क्योंकि ब्राहम्ण के संतुष्ट होने पर ब्रह्म संतुष्ट होता है ब्रह्म के सतुष्ट होने पर समस्त जीव, समस्त देवता, समस्त ऋषि और यमदेवता के साथ साथ परिवार के पिता पितामह पर पितामह दादा दादी नाना नानी अन्नय जन्मों के बंध बांधव पितर सभी प्रसन्न होते है इनके प्रसन्न होने पर परिवार में सुख शांति धन और वैभव के साथ संतान सुख की अद्भुत, अवर्णनीय अलौकिक सुख रस की प्राप्ति होती है इसलिए हमारे सनातन धर्म में पितृ पक्ष का बहुत ही बड़ा महत्व है। क्योंकि इसमंे ब्राह्म्ण को ही भोजन नहीं अपितु सारे संसार के सभी जीव वह किसी भी मंे क्यों न हो उन्हें श्रद्धा से श्राद्ध करना चाहिए। क्योंकि सीय राम मय सब जग जानी, करहुं प्रमाण जोर जुग पाणि।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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