व्यवस्था का भ्रष्टाचार इतना क्रूर होता है कि वह व्यक्ति को भ्रष्ट आचरण के लिए मजबूर कर देता है: स्वामी चिन्मयानन्द

Posted on 20 August 2011 by admin

spn-04व्यवस्था का भ्रष्टाचार इतना क्रूर प्रभाव वाला होता है वह व्यक्ति को भ्रष्ट आचरण करने के लिए मजबूर कर देता है। ऐसे में लोक जीवन भ्रष्टाचार निरन्तर गहरी जगह बनाता चला जा रहा है। व्यक्ति मजबूरन इस खाई में गिरता है और इससे सहजता से निकल नहीं पाता। इस व्यवस्था के भ्रष्टाचार में आज आम आदमी को इतना व्यथित कर दिया है कि व्यक्ति इसके खिलाफ उठ खड़ा हुआ है। यह विचार पूर्व केन्द्रिय गृह राज्य मन्त्री स्वामी चिन्मयानन्द सरस्वती ने व्यक्त किए। स्वामी चिन्मयानन्द एस.एस. कालेज में आयोजित लोकपाल विधेयक और अन्ना हजारे विषयक परिचर्चा के अध्यक्ष के रूप में उपस्थित लोगों को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी गयी स्वाधीनता की लड़ाई उतना गुलामी के विरूद्ध नहीं थी जितनी कि उस क्रूर भ्रष्टाचार के विरूद्ध थी जिससे कि देष व्यथित हो गया था। ऐसे में गांधी जी ने व्यवस्था परिवर्तन की जो आवाज उठायी वह जन-जन की आवाज बन गयी। यही स्थिति एक बार पुनः देष में निर्मित हो गयी। आज हमें लगता हो कि देष स्वाधीन हुआ है परन्तु वह व्यवस्था की गुलामी से आजाद नहीं हुआ है। यह शोषक खून चूसने वाली व्यवस्था जब तक रहेगी तब तक कुुछ सुधार नहीं होगा। इसी कारण अन्ना ने जब व्यवस्था बदले के बात की तो जनान्दोलन खड़ा हो गया। उन्होंने कहा कि सभी राजनैतिक दल भ्रष्टाचार के खिलाफ उंगली उठाने की हिम्मत नहीं जुटा सके तभी अन्ना ने इतना बड़ा सामाजिक आन्दोलन उद्वेलित कर दिया। यदि विपक्ष ने इस मुद्दे को उठाया होता तो अन्ना को अनषन करने की आवष्यकता नहीं पड़ती।
उन्होंने कहा कि सरकार कहती है कि जनलोकपाल बिल चुने हुए लोगों द्वारा नहीं बनाया गया परन्तु सरकार यह कहकर झूठ बोल रही है। सरकार ने जिस संगठित साम्प्रदायिक हिंसा बिल को संसद में प्रस्तुत किया है वह भी 21 गैर राजनैतिक लोगों द्वारा बनाया गया है। सरकार जब उस बिल को संसद में प्रस्तुत कर सकती है तो फिर जन लोकपाल बिल को क्यों नहीं? उन्होंने कहा कि जब तक शासक अमीर होते रहेंगे और जनता गरीब होती रहेगी तब तक ऐसे आन्दोलन तो जन्म लेते ही रहेंगे। ऐसे आन्दोलनों की जिम्मेदारी सरकारी की है जनता की नहीं। विनोबा सेवा आश्रम के संस्थापक रमेष भइया ने कहा कि स्वतन्त्रता से पहले जो हमारी गर्दन पर चलती थी वह विदेषी थी परन्तु वह छुरी देषी हो गयी है। परन्तु उसने गर्दन पर चलना नहीं छोंड़ा। हमें भ्रष्टाचार के खिलाफ नहीं वरन् सदाचार के समर्थन में खड़े होना होगा। आज पैसे का महत्व बढ़ा है जिसके चलते भ्रष्टचार को बढ़ावा मिला है। यही नहीं आज आर्थिक विषमताएं बढ़ी हैं जिसके कारण ज्यादा नुकसान हो रहा है। गरीबी उतनी भयानक नहीं है जितनी की आर्थिक विषमता। कृषि वैज्ञानिक डाॅ. सुरेष मिश्र ने कहा कि जो प्रकाष की किरण अन्ना ने दी है सब उसी में अपना रास्ता तलाष रहे हैं। अन्ना ने कृष्ण की भांति गोवर्धन पर्वत उठा लिया है हम सब भ्रष्टाचार की अतिवृष्टि से बचने के लिए उसके नीचे आ जाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि गद्दी नसीन लोगों को आदमकद आईनों के सामने खुदको खड़ा कर देखना चाहिए। नहीं तो नौजवान उन्हें पकड़कर आईनों के सामने खड़ा कर देंगे। सत्ता में बैठे लोग जनाक्रोष को देख कर आज बदहवास हैं। सत्ता के पास कोई नहीं है जो देष के समक्ष आकर स्पष्टीकरण दे सके। यही स्थिति रही तो गोमुख पर बैठे लोगों की गर्दन इस देष का युवा मरोड़ देगा। युवाओं का यह अथाह सागर जिस दिन अपनी सीमाएं तोड़ देगा भ्रष्टाचार समूल बह जाएगा।
व्यापारी नेता कुलदीप सिंह दुआ ने कहा कि देष में जो भी भ्रष्टचारी है उसे जेल तो जाना ही चाहिए परन्तु जेल जाना ही पर्याप्त नहीं है उससे देष का पैसा वसूला जाना चाहिए और वह उस आदमी तक जाना चाहिए जिसका कि वह हक है। हमें सबसे पहले स्वयं ईमानदार बनना होगा। अन्ना की आवाज इसी लिए ललकार बन पायी क्योंकि वह सच्चे व ईमानदार हैं।
डाॅ. रवि मोहन ने कहा कि लोगों का विष्वास संसद से उठ रहा है संसद को सुप्रीम कोर्ट निर्देष देता है कि उसे अनाज का वितरण किस प्रकार करना चाहिए। यह बहुत ही शर्म की बात है। हम मानते हैं कि हम अपने प्रतिनिधि के रूप में पांच साल के लिए एक सचेत और जाग्रत को चुनकर भेजते हैं पर वह संसद में जाकर सो जाता है। तब अन्ना हजारे जैसे लोग आते हैं और उन्हें झकझोर कर जगा देते हैं।
विषय का प्रवर्तन करते हुए प्राचार्य डाॅ. ए.के. मिश्र ने कहा कि नेताओं को संसदीय मर्यादाओं का पालन करना होगा। तभी भ्रष्टाचार समाप्त होगा। गांधी दर्षन विषय के मूल में भारतीय सनातन परम्परा है उसे जीवन में उतारना होगा तभी व्यक्ति के परिवर्तन की प्रक्रिया प्रारम्भ हो सकेगी और यही प्रक्रिया एक अच्छे समाज के निर्माण का आधार बनेगी।
परिचर्चा में इसके अतिरिक्त सुरेष सिंघल, डाॅ. हेमेन्द्र वर्मा, रोटेरियन अजय शर्मा, कीर्तिमान प्रकाष च्यवन, आषीष अर्जुन, संतोष पाण्डेय तथा इंजीनियर आर.के. अग्रवाल आदि ने भी विचार प्रकट किए। इससे पूर्व अतिथियों ने शुकदेवान्नद जी तथा धर्मानन्द जी के चित्र पर पुष्पांजलि अप्रित कर कार्यक्रम का आरम्भ किया। इस अवसर पर एस.एस. कालेज की छात्राओं ने वन्देमातरम तथा राष्ट्रगान गाया। लाॅ कालेज की छात्रा कु. रीतिका श्रीवास्तव ने अन्ना हजारे की अपील पढ़ी।
परिचर्चा के समापन पर आभार लाॅ कालेज के प्राचार्य डाॅ. संजय वरनवाल ने व्यक्त किया जबकि संचालन छात्र आदित्य श्रीवास्तव ने किया। इसके उपरान्त उपस्थित गणमान्य नागरिकों तथा विद्यार्थियों द्वारा एक कैण्डिल मार्च निकाला गया जिसमें वे भ्रष्टाचार के विरूद्ध और अन्ना हजारे के समर्थन मे नारे लगाते हुए चल रहे थे। कार्यक्रम में मुख्य रूप से डाॅ. अवधेषमणि त्रिपाठी, ओंकार मनीषी, डाॅ. के.के. शुक्ला, विभा अग्रवाल, अनिल मालवीय, प्रमोद गुप्ता, श्रीमती पूनम टंडन, मो. नाजिम, पंकज आचार्य, केषव चन्द्र मिश्र, गोपी वल्लभ सक्सेना, निर्मल कटियार, सुधीर टंडन, डी.सी. पाण्डेय, राजेष सिंह चैहान, डाॅ. एस.पी. अग्निहोत्री, हरिष्चन्द्र श्रीवास्तव, डाॅ. अनुराग अग्रवाल, डाॅ. प्रभात शुक्ल, डाॅ. मीना शर्मा, डाॅ. आदर्ष पाण्डेय सहित तमाम गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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