Categorized | लखनऊ.

उत्तर प्रदेश नगर योजना और विकास (संशोधन) विधेयक

Posted on 13 August 2011 by admin

भाजपा प्रदेश प्रवक्ता राजेन्द तिवारी ने बताया कि कल दिनांक 11 अगस्त को प्रदेश सरकार द्वारा ’’उत्तर प्रदेश नगर योजना और विकास (संशोधन) विधेयक, 2011 पूर्णतः अव्यवस्थित सदन में शोर शराबे के बीच बिना चर्चा के ध्वनि मत से पारित कराए जाने के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही के नेतृत्व में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कलराज मिश्र, प्रदेश उपाध्यक्ष वीरेन्द्र सिंह सिरोही, केदार नाथ सिंह और प्रदेश महामंत्री विनोद पाण्डेय सहित पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने आज सायं 05 बजे महामहिम राज्यपाल से मिलकर ज्ञापन दिया और  महामहिम राज्यपाल से सादर अनुरोध है कि ऐसे जनविरोधी तथा किसान विरोधी विधेयक को वह अपनी स्वीकृति प्रदान न करें।
प्रदेश अध्यक्ष के नेतृत्व में दिए गए ज्ञापन में अनुरोध किया गया है कि उक्त विधेयक ने उत्तर प्रदेश नगर योजना और विकास अधिनियम 1973 में संशोधन किया है। 1973 के उक्त अधिनियम के धारा इस प्रकार हैं-’’यदि राज्य सरकार की राय में कोई भूमि इस अधिनियम के अधीन विकास के प्रयोजन के लिए या किसी अन्य प्रयोजन के लिए अपेक्षित है तो राज्य सरकार ऐसी भूमि का भूमि अर्जन अधिनियम, 1994 के उपबन्धों के अधीन अर्जन कर सकेगी:
परन्तु कोई भी व्यक्ति जिससे कोई भूमि इस प्रकार अर्जित की गई हो, ऐसे अर्जन की तारीख से पांच वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात् राज्य सरकार से उस भूमि को उसको वापस दिये जाने के लिए इस आधार पर आवेदन कर सकेगा कि वह भूमि उस अवधि के दौरान उस प्रयोजन के लिए प्रयुक्त नहीं की गयी है जिसके लिए वह अर्जित की गई थी और यदि इस बावत् राज्य सरकार का समाधान हो जाय तो वह उन प्रभारों के, जो अर्जन के संबंध में उपगत किये गये थे, बारह प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज सहित तथा ऐसे विकास प्रभारों के, यदि कोई हो, जैसे अर्जन के पश्चात् उपगत किये गये हों, पुनः संदाय किये जाने पर उस भूमि को वापस देने का आदेश देगी।’’
वर्तमान सरकार ने उक्त अधिनियम की धारा-17 की उपधार (1) का ’’परन्तुक’’ निकाल दिया और उसे सदैव के लिए निकाला समझा जाय ऐसा जोड़ दिया है। इसका परिणाम यह होगा कि सरकार द्वारा किसी विशेष उद्देश्य के लिए जो भूमि

अर्जित की गयी थी भले ही उक्त उद्देश्य के हेतु उपयोग में न लिया गया हो और खाली पड़ी हो तो भी किसान को अपनी भूमि वापस लेने का अधिकार नहीं होगा। विभिन्न एजेंसियों द्वारा उत्तर प्रदेश के किसानों की हजारों एकड़ भूमि अर्जित की हुई है जो उद्योग या आवासीय योजनाओं के उद्देश्य से की गयी थी। परन्तु उक्त भूमि पर कोई कार्य नहीं हुआ और 20-20 साल से खाली पड़ी हुई है। उक्त भूमि के मौलिक मालिक तथा किसान इसी आधार पर न्यायालय में गये हुए हैं कि जब 5 वर्ष से अधिक समय से अर्जित भूमि का उपयोग नहीं हुआ तो भूमि किसानों को वापस की जाय। न्यायालयों ने जो टिप्पणियां की हैं वह सकारात्मक हैं और इस बात की पूर्ण उम्मीद है कि इस प्रकार की भूमि किसानों को वापस होंगी। केन्द्र सरकार ने जो भूमि अधिग्रहण का नया प्रस्ताव विधेयक के रूप में तैयार किया है। चर्चा है कि उसमें भी यह प्राविधान किया गया है कि अर्जित भूमि यदि अर्जन के उद्देश्य के अनुरूप उपयोग में नहीं लाई जाती और 5 साल तक उसका उपयोग नहीं होता है तो किसान उक्त भूमि को वापस लेने के हकदार होंगे तथा संबंधित सरकार को इस अवधि का ब्याज भी कृषकों को देना होगा।
भाजपा का मानना है कि ऐसे महत्वपूर्ण विधेयक जिसमें करोड़ों किसानों और उनके परिवार का हित निहित है विधान सभा में बिना चर्चा और बहस कराये पास कराया जाना पूर्णतः अलोकतांत्रिक है।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

Leave a Reply

You must be logged in to post a comment.

Advertise Here

Advertise Here

 

November 2024
M T W T F S S
« Sep    
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930  
-->









 Type in