बाल विकास परियोजना कार्यालय नगर क्षेत्र में बाल विकास परियोजनाधिकारी द्वारा सरकार की नीतियों का खुलेआम धज्जियाॅ उडा़ई जा रही हंै। पूरे नगर क्षेत्र में कोई भी केन्द्र सही ढंग से नहीं चल रहा है। कागजों में तो पूरे नगर क्षेत्र में 114 आॅगनवाड़ी केन्द्र संचालित हैं। परन्तु एक भी केन्द्र सही ढंग से संचालित नहीं हैं। किसी केन्द्र पर दो बच्चे मिलेंगे तो किसी पर तीन। अधिकांश केन्द्र तो बंद ही मिलेंगे। यदि जिला प्रशासन या जिला कार्यक्रम अधिकारी द्वारा केन्द्रों का निरीक्षण किया जाय तो बच्चे केन्द्रों पर ढूढ़े नहीं मिलेंगे। आॅगनबाड़ी केन्द्रों का संचालन सही ढंग हो इसके लिए नगर क्षेत्र में 5 मुख्यसेविकाएं कार्यरत हंै। परन्तु सीडीपीओ के द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा को चरम सीमा पर पहुॅचाने में इनका भी कम योगदान नहीं है। जानकारी करने पर पता चला है कि प्रत्येक मुख्य सेविकाओं को जो केन्द्र सीडीपीओ द्वारा आवंटित किए गये हैं उनमें भी पारदर्शिता नहीं बरती गयी है। जिन पाॅच मुख्यसेविकाओं को केन्द्र आवंटित किए गये हैं, उनमें किरन लता खरे को 20,लीलावती सिंह को 20,शशि प्रभा पाण्डेय को 18,कान्ती त्रिपाठी को 19 तथा अपने खास मुख्यसेविका बृज लता मिश्रा को 37 केन्द्र का दायित्व दिया गया है। सूत्र तो यहाॅ तक बताते हैं कि बृजलता मिश्रा को जो 37 केन्द्र आवंटित किया गया है उसमें से 20 केन्द्रों का सीधे सम्पर्क स्वयं सीडीपीओ का रहता है। कागजी कोरम को पूरा करने के लिए ही पूरे 37 केन्द्रांे का दायित्व बृज लता मिश्रा को दिखाया गया है। कारण स्पष्ट है के उन 20 केन्द्रों के द्वारा निर्धारित सुविधा शुल्क प्रति केन्द्र 5 सौ रूपया सीडीपीओ के पास आ जाता है। केन्द्र चले या न चले , केन्द्रो से बॅधी रकम का हिस्सा पाॅचो मुख्यसेविकाओं में तथा सीडीपीओं में बाॅट लिया जाता है। इसी तरह प्रत्येक केन्द्रों को कागजी कोरम को पूरा करने के हिसाब से 15 से 17 बोरी पुष्टाहार का वितरण किया जाता है। परन्तु तब केन्द्रों पर बच्चे हैं ही नही तो इतनी बोरियों का आबंटन क्यो ? कारण स्पष्ट है कि इन पुष्टाहार बोरियों को बेंच दिया जाता है। जिससे केन्द्रों से बॅधी रकम सीधे मुख्यसेविका व सीडीपीओ को मिल सके।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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