तहसील मुख्यालय पर अधिकतम सरकारी कार्यालय किराये के भवन में चल रहे हैं। जबकि खास बात यह है कि उन किरायों के दफ्तरों का अपना-अपना आरक्षित भूमि भी है, लेकिन जनप्रतिनिधियों की उदासीनाता के चलते सरकारी कार्यालय एक भवन के लिये तरस रहा है।
जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलो की दूरी पर स्थित लम्भुआ तहसील की स्थापना 2 अक्टूबर 1997 को मुख्यमंत्री सुश्री मायावती के घोषणा के बाद स्थापित हुई थी। लेकिन तब से यह स्वास्थ्य विभाग की पी0एच0सी0 के निष्प्रयोजित भवन में संचालित है। तहसील प्रशासन ने इस सम्बन्ध में कई बार ‘‘बोर्ड आॅफ रेविन्यू’’ में पत्राचार किया, लेकिन नतीजा सिफर ही रहा। स्थानीय चांदा विधानसभा (लम्भुआ विधानसभा) के विधायक एवं प्रदेश सरकार के पयर्टन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) विनोद सिंह का क्षेत्र होने के बावजूद इस सम्बन्ध में गम्भीर प्रयास नहीं किये गये। नतीजन लेखपालों व अमीनों के बैठने के लिये तहसील परिसर में जगह न होने की वजह से किसान, मजदूर, छात्र सभी आय, जाति, निवास तथा तमाम तरह की रिपोर्ट लिखवाने के लिये इधर-उधर भटकते रहते हंैं। कभी इस चाय की दूकान पर तो कभी उस चाय की दूकान पर बैठे रहते है। जिससे स्थानीय नागरिकों को काफी असुविधांए होती है।
इसी तरह डाकखाना की अपनी जमीन थाना कोतवाली के सामने 2 बिस्वा आरक्षित होने के बावजूद किराये के भवन में चल रही है। बरसात के मौसम में कम्प्यूटर तथा कागजात रखने के लिये काफी दिक्कत होती है। तहसील मुख्यालय पर अग्निशमन वाहन खड़ा करने तथा कार्यालय के लिये भी जमीन मौजूद है। लेकिन मुख्यालय पर एक भी दमकल नहीं रहता है। जिसकी वजह से गर्मी में आगजनी की घटनाओं में लाखों की सम्पति का नुकसान होता है। आगजनी की घटनाओं में जिला मुख्यालय से दमकल बुलाये जाते है, तब तक किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ जाता है।
यहां तक कि वन विभाग भी इससे अछूता न रहा, वो भी किराये के मकान में अपना कार्य करना मुनासिब समझ रहा है। इस सम्बन्ध में उपजिलाधिकारी बाबूलाल सरोज ने बताया कि तहसील कार्यालय के लिये पी0एच0सी0 की जमीन को राजस्व विभाग के नाम कार्यवाही करने के लिये लिखा-पढ़ी की गई है। शीघ्र ही शासन से स्वीकृति मिलते ही तहसील कार्यालय का निर्माण शुरू कराया जायेगा।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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