- कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली केन्द्र की यू0पी0ए0 सरकार ने मानसून सत्र में भूमि अधिग्रहण बिल पेश न करके देश के करोड़ों किसानों व खेतिहर मजदूरों के साथ धोखा किया
- बी0एस0पी0 की माननीया राष्ट्रीय अध्यक्ष सुश्री मायावती जी ने यू0पी0ए0 सरकार को पहले ही बता दिया था कि राष्ट्रीय भूमि अधिग्रहण नीति पर मानसून सत्र में केन्द्र सरकार यदि विधेयक पेश नहीं करती है तो बी0एस0पी0 संसद नहीं चलने देगी
- उत्तर प्रदेश में भ्रमण के दौरान कांग्रेस के जिम्मेदार नेताओं ने नया बिल लाने का झूठा प्रचार कर किसानों को गुमराह करके अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने का प्रयास किया
- यू0पी0ए0 सरकार ने प्रस्तावित भू-अधिग्रहण बिल में बी0एस0पी0 सरकार की नीति का समावेश किया होता, तो किसानों का भला होता
बी0एस0पी0 के सांसदों ने आज राज्य सभा में नई भूमि अधिग्रहण बिल को संसद में न पेश किये जाने पर जोरदार हंगामा करते हुए प्रश्नकाल स्थगित करा दिया। सांसदों ने राज्य सभा में कहा कि यू0पी0ए0 सरकार ने मानसून सत्र में भूमि अधिग्रहण बिल पेश न करके देश के करोड़ों किसानों व खेतिहर मजदूरों के साथ धोखा किया है। सांसदों ने कहा कि यदि यू0पी0ए0 सरकार के प्रस्तावित बिल में बी0एस0पी0 सरकार द्वारा लागू की गयी नीति का यदि समावेश किया गया होता, तो पूरे देशभर के किसानों का भला होता।
सांसदों का यह भी कहना था कि बी0एस0पी0 की माननीया राष्ट्रीय अध्यक्ष सुश्री मायावती जी ने यू0पी0ए0 सरकार को पहले ही आगाह कर दिया था कि यदि केन्द्र सरकार भूमि अधिग्रहण पर एक समान राष्ट्रीय नीति बनाने के लिए वर्तमान सत्र में विधेयक पेश नहीं करती है तो बी0एस0पी0 संसद नहीं चलने देगी और यदि यू0पी0ए0 सरकार मानसून सत्र में नया विधेयक लाने की पहल करती है तो बी0एस0पी0 पूरा सहयोग प्रदान करेगी। माननीया मुख्यमंत्री जी ने यह भी कहा था कि यदि केन्द्र सरकार को नई राष्ट्रीय नीति बनाने में कोई कठिनाई आ रही है तो उसे उत्तर प्रदेश की बी0एस0पी0 सरकार द्वारा लागू की गई भूमि अधिग्रहण नीति की समावेश करते हुए इसकी तर्ज पर अपनी नया बिल लाना चाहिए।
बी0एस0पी0 के सांसदों ने बिल पेश करने की मांग करते हुए कहा कि कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार ने आम जनता से संसद के इसी सत्र में नया भूमि अधिग्रहण विधेयक पेश करने का वायदा किया था, और कांग्रेस के नेता नया बिल लाने के नाम पर पूरे देश में घूम-घूम कर किसानों को आश्वासन भी दे रहे थे। उन्होंने कहा कि संसद सत्र शुरू होने पर अपनी बात से पलटते हुए केन्द्र सरकार द्वारा नये बिल का मसौदा वेबसाइट पर डालकर 31 अगस्त, 2011 तक सुझाव आमंत्रित किये गये हैं, जबकि संसद का मौजूदा सत्र सितम्बर के प्रथम सप्ताह तक ही चलने की सम्भावना है। सांसदों ने कहा कि इससे पूरी तरह से स्पष्ट है कि यू0पी0ए0 सरकार की मंशा नया बिल लाने की नहीं है, बल्कि इस मुद्दे को गर्म करके अपनी राजनीतिक रोटी संेकना चाहती हैं।
बी0एस0पी0 सांसदों ने राज्य सभा में यह भी कहा कि यू0पी0ए0 सरकार द्वारा जिस नये भूमि अधिग्रहण बिल लाने को लेकर जोर-शोर से प्रचार-प्रसार करके वाह-वाही लूटने का प्रयास किया जा रहा है, अभी वह सिर्फ कागजी कार्यवाही मात्र ही है। यू0पी0ए0 सरकार सिर्फ किसानों की सहानुभूति अर्जित करने के लिए उन्हें सब्जबाग दिखा रही है। अगर उसकी मंशा साफ होती और किसानों के हितों के प्रति संवेदनशील होती तो वह संसद के इसी सत्र में यह बिल पेश करती।
सांसदों ने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा प्रस्तावित नये बिल में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा घोषित नई भूमि अधिग्रहण नीति के प्राविधानों को पूरी तरह समावेश नहीं किया गया है, जिससे उत्तर प्रदेश के किसानों को काफी निराशा हुई है। इस प्रकार यू0पी0ए0 सरकार के प्रस्तावित विधेयक के प्राविधानों से स्पष्ट है कि इस अधिनियम से किसानों का भला होने वाला नहीं है। इस प्रकार यू0पी0ए0 सरकार नई भूमि अधिग्रहण बिल लाने के नाम पर किसानों को गुमराह कर रही है।
सांसदों ने सदन में यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा घोषित नई नीति में भू-स्वामियों एवं अर्जन निकायों के मध्य आपसी समझौते के आधार पर सीधे भूमि क्रय करने की व्यवस्था की गई है। जबकि यू0पी0ए0 सरकार द्वारा प्रस्तावित बिल में इस तरह की कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं की गई है। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश द्वारा जारी नीति में अधिग्रहीत भूमि के प्रतिकर का निर्धारण आपसी सहमति से किये जाने का प्राविधान किया गया है, जबकि केन्द्र द्वारा तैयार किये गये बिल के मसौदे में शहरी क्षेत्र में बाजार मूल्य के दोगुना तथा ग्रामीण क्षेत्र में बाजार मूल्य का छः गुना दिये जाने की व्यवस्था प्रस्तावित है।
सांसदों ने उत्तर प्रदेश सरकार तथा केन्द्र सरकार की भूमि अधिग्रहण सम्बन्धी नीतियों की तुलना करते हुए आगे कहा कि उत्तर प्रदेश की नीति में यदि कोई भू-स्वामी वार्षिकी नहीं लेना चाहता है तो उसे 2.76 लाख रूपये प्रति एकड़ की दर से पुनर्वास अनुदान दिया जायेगा, जबकि केन्द्र की प्रस्तावित बिल में इस प्रकार का कोई प्राविधान नहीं है। इसी प्रकार प्रत्येक परियोजना प्रभावित परिवार जिसकी प्रभावित क्षेत्र में कृषि भूमि हो, और ऐसे परिवार की यदि पूरी भूमि अर्जित की गई हो तो उसको आजीविका की क्षतिपूर्ति के लिए 05 वर्षों की न्यूनतम कृषि मजदूरी के बराबर एकमुश्त धनराधि वित्तीय सहायता के रूप में देने की व्यवस्था की गई है। इस तरह केन्द्र सरकार की नई भूमि अधिग्रहण के लिए प्रस्तावित बिल किसान हितैषी नहीं है और किसानों के साथ छल करने का पूरा प्रयास किया गया है।
सांसदों ने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किसानों को उनकी अधिग्रहीत भूमि का मुआवजा केन्द्र सरकार की योजनाओं से ज्यादा दिया जा रहा है। इसके अलावा बी0एस0पी0 सरकार की पुनर्वास व पुनसर््थापन नीति कांग्रेस शासित हरियाणा व अन्य प्रदेशों से कहीं बेहतर है। इस तरह बी0एस0पी0 सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण को लेकर बनायी गई नीति देश की सबसे प्रगतिशील व किसान हितैषी नीति है।
इसके अलावा सांसदों ने यह भी मुद्दा उठाया कि बी0एस0पी0 सरकार द्वारा जारी नीति में अंतरित की गयी भूमि के कुल क्षेत्रफल का 16 प्रतिशत विकसित करके दी जाने वाली भूमि में से प्रभावित भूस्वामी अपनी स्वेच्छानुसार पारस्परिक समझौते के अनुसार कुछ प्रतिशत विकसित भूमि प्राप्त कर सकेगा। इस प्रकर राज्य सरकार ने विकास में किसानों की पूरी भागीदारी सुनिश्चित की है, जबकि केन्द्र सरकार प्रस्तावित विधेयक में कोई स्पष्ट प्राविधान नहीं किया गया है। इसके अतिरिक्त मुआवजे के रूप में भू-स्वामियों को दी जाने वाली विकसित भूमि के रजिस्ट्रेशन पर देय स्टैम्प ड्यूटी तथा रजिस्ट्रेशन शुल्क से उन्हें छूट प्रदान करने की भी व्यवस्था की गयी है, जबकि यू0पी0ए0 के प्रस्तावित मसौदे में कोई स्पष्ट प्राविधान नहीं है।
बी0एस0पी0 के राज्य सभा सांसदों ने सदन में यह भी आवाज उठायी कि केन्द्र सरकार की गलत आर्थिक नीतियों के कारण देश में गरीबी, बेरोजगारी एवं महंगाई लगातार बढ़ रही है। लम्बे समय तक केन्द एवं राज्यों की सत्ता में रही कांग्रेस पार्टी ने हमेशा धन्नासेठों तथा पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के हिसाब से अपनी आर्थिक नीतियां तैयार की। कांग्रेस पार्टी आज भी इसी रास्ते पर चल रही है जिससे आम आदमी का जीवन दूभर हो गया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी की किसान विरोधी नीतियों के कारण ही कांग्रेस शासित राज्यों में किसान बड़े पैमाने पर आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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