जमींदारी प्रथा समाप्त हुए भले ही छह दशक से ज्यादा का समय बीत चुका हो लेकिन आज भी बहुत से इलाके ऐसे हैं जहां सैंकड़ों बीघे जमीन एक ही खानदान की मिल्कियत में दर्ज हैं। शासन ने ऐसी संपत्तियों को चिह्नित कर इन पर चल रहे विवादों का निपटारा करते हुए एक पक्ष को कब्जा सौंपने के निर्देश दिए हैं। इस कार्य के लिए प्रशासन को 15 दिन का समय दिया गया है।
आजादी के बाद 1950 में जमींदारी प्रथा समाप्त कर दी गई थी। जमींदारी विनाश अधिनियम-1950 (जेड-ए) के तहत कृषि योग्य भूमि पर जमींदारी प्रथा समाप्त कर दी गई थी लेकिन नगरीय क्षेत्र के आबादी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित आवासीय जमीन पर नॉन-जेड-ए के तहत कोई कार्रवाई नहीं हुई थी। शासन ने पिछले दिनों नगरीय व ग्रामीण क्षेत्र में स्थित ऐसी जमीनों पर जमींदारी विनाश अधिनियम लागू कर मालिक व कब्जेदार के बीच विवाद समाप्त कर किसी एक को कब्जा देने के निर्देश दिए थे लेकिन प्रशासन ने कोई रिपोर्ट तक नहीं भेजी गई। इस लापरवाही पर सहायक भूमि विशेष आयुक्त विशाल भारद्वाज ने सम्बन्धित अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई थी। उन्होंने अधिकारियों से 15 दिन के भीतर नगरीय व ग्रामीण क्षेत्र में ऐसी भूमि को चिह्नित कर रिपोर्ट मांगी है। भूलेख विभाग में ऐसे भूखंडों की रिपोर्ट तैयार करने का काम शुरु हो गया है जहां कब्जेदार व मालिक के बीच रार चल रही हो तथा उसे नॉन-जेड-ए का लाभ मिला हो। रिपोर्ट के मुताबिक चारों तहसीलों के नगरीय क्षेत्रों में 50 एकड़ तथा ग्रामीण क्षेत्रों में नहर व सड़कें शामिल हैं। इनमें से नगरीय क्षेत्र की जमीन पर कब्जेदार या फिर उनके मालिक में से किसी एक को कब्जा दिया जाएगा।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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