ड्रग एंड काॅस्मेटिक्स रूल्स 1945 में संशोधन के लिए भारत सरकार का हाल का कदम और एंटीबायोटिक्स के दुरूप्रयोग से संबंधित अनुसूची 0 को शामिल किया जाना, किसी उद्देश्य की पूर्ति करने के बजाय 65 फीसदी ग्रामीण और शहरी जनसंख्या के लिए एंटीबायोटिक दवाओं की उपलब्धता को गंभीर प्रभावित करेगा।
एंटीबायोटिक और दूसरी दवाओं का दुरूपयोग रोकने के लिए सरकार के कदम और पहल का एआईओसीडी में हम स्वागत करते हैं। चूंकि हम भारत के कोने-कोने में दवाओं के वितरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, इसलिए अनुसूची भ्ग्, को लागू करने और क्रियान्वयन को लेकर हम अत्यधिक सरोकार रखते हैं।
अनुसूची भ्ग्, ‘सुपर बग’ की खबरों के आलोक में एंटीबायोटिक्स के दुरूपयोग को रोकने के लिए बनाई गई है। सरकार ने मुख्य कारक को किनारे करते हुए आसान शिकार के रूप में ‘केमिस्ट’ को दायरे में लिया है।
भारत में केमिस्टों की अखिल भारतीय संस्था आॅल इंडिया आॅर्गनाइजेशन आॅफ केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट (एआईओसीडी) ने इस मसले को भारत सरकार के समक्ष उठाया और भारत के माननीय राष्ट्रपति, भारत के माननीय प्रधानमंत्री, माननीय स्वास्थ्य मंत्री श्री गुलाम नबी आजाद, भारत के औषधि महानिरीक्षक, सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों और अन्य संबंधित पक्षो को ज्ञापन सौंपा है।
अनुसूची के दो भाग हैंः भाग ए में 16 एंटीबायोटिक दवाएं शामिल की गई हैं। ये दवाएं, दवा निर्माताओं द्वारा सीधे क्षेत्रीय परिचर्या अस्पतालों को सीधे बेची जानी चाहिए। भाग बी में 74 दवाएं और फार्मूले हैं जो रजिस्टर्ड मेडिकल प्रेक्टिशनर के नुस्खे (प्रतिलिपि सहित) पर केमिस्ट द्वारा बेची जा सकती हैं और नुस्खे की एक प्रति केमिस्ट को आगामी 2 वर्षों तक अपने पास रखनी होगी।
एआईओसीडी का मानना है कि इस अधिसूचना को बनाते समय सरकार ने अनेक वास्तविक मसलोें को दरकिनार कर दिया है, जैसे कि ग्रामीण और सूक्ष्म ग्रामीण क्षेत्रों में रजिस्टर्ड मेडिकल प्रेक्टिशनर्स की उपलब्धता, निर्धन जनता की वित्तीय स्थितियां, अनुसूची के का व्यापक उल्लंघन, सरकारी अस्पतालों में दवाओं की नियमित उपलब्धता और अपेक्षाएं पूरी करने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता से जुड़े मसले, इत्यादि। साथ ही, अधिसूचना पर विचार करने से पूर्व दिशानिर्देशों को निर्दिष्ट किया जाना, शिक्षा और जनजागरूकता इत्यादि कदम नहीं उठाए गए हैं जो कि सबसे महत्त्वपूर्ण कारक हैं।
भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, भारत की माननीय राष्ट्रपति जी ने भी मेडिकल काउंसिल आॅफ इंडिया के समक्ष अपने भाषण में कहा कि हमारे देश में डाॅक्टरों की संख्या अपर्याप्त है और ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य के लिए डाॅक्टर तैयार नहीं हैं, और ऐसी ही समस्याओं का अवलोकन माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा शुभासाक्षी मामले में किया गया।
देश में मौजूद स्वास्थ्य सेवाओं के वर्तमान परिदृश्य के व्यावहारिक पहलुओं पर विचार करते हुए, हम अनुभव करते हैं कि नई अनुसूची भ्ग्, को लागू किया जाना, स्वास्थ्य सेवाओं को और विशेषकर देश के ग्रामीण व सूक्ष्म दूरस्थ
इलाकों में प्रभावित करेगा। यह आम जनता के क्षेत्रों में रजिस्टर्ड मेडिकल प्रेक्टिशनर्स (एमबीबीएस/एमडी/एमएस/इत्यादि) की अनुपलब्धता के नाते उनका जीवन संकट में डाल सकता है और हर बार उनकी सामान्य स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान के लिए दौड़कर नगर आने लायक पर्याप्त पैसा उनके पास नहीं भी हो सकता है।
नुस्खे की प्रति रखने और बिना प्रतिलिपि नुस्खे पर दवाएं न देने से देश में कानून व्यवस्था की समस्या खड़ी हो सकती है, जिससे अंततः उल्लंघन की घटनाओं को बढ़ावा मिलेगा और इन सूचीबद्ध दवाओं की उपलब्धता में अनैतिक तत्व सक्रिय हो सकते हैं। दूसरी ओर, आरएमपी के लिए दवाओं की खरीद और मरीजों में बांटने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। इससे देश के नागरिकों को प्रदत्त मूलभूत अधिकारों का बुनियादी उल्लंघन हो सकता है क्योंकि इसके द्वारा लोगों के बीच कानूनी भेदभाव किया जाएगा और सुधार का मूलभूत उद्देश्य भी खत्म हो जाता है। अपरिहार्य परिस्थितियों में केमिस्ट द्वारा यह कानून तोड़ने पर भी उसे इस कृत्य के लिए 20000 रूपए तक जुर्माना और/या 2 साल तक जेल का दण्ड भोगना पड़ सकता है।
एआईओसीडी का दृष्टिकोण है कि ऐसा होने पर लोगों के लिए कोई आसानी बनने के बजाय बड़े पैमाने पर समस्याएं उत्पन्न होंगी, जिनसे दूर-दराज और अति दूर-दराज के लोग अधिक प्रभावित होंगे। सरकार से एआईओसीडी अनुरोध करता है कि प्रस्तुत ज्ञापन पर गहन विचार करते हुए डी एंड सी नियमों में ऐसे कोई बदलाव, जो अंततः बड़े पैमाने पर सामान्य जनता के लिए मुसीबतें खड़ी कर सकते हैं, करने से पहले पुनर्विचार करें।
एआईओसीडी के अध्यक्ष श्री जे.एस. शिंदे ने यह भी कहा कि यदि केन्द्र सरकार द्वारा हमारे अनुरोध पर ध्यान न दिया गया तो इससे देश के 7.5 लाख केमिस्टों की आजीविका प्रभावित होगी।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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