अल्पसंख्यकों को शिक्षित करने के लिए केंद्र व प्रदेश सरकार के द्वारा तमाम योजनाएं चलाई जा रहीं हैं लेकिन इनका लाभ इतनों को मिल रहा है इसका कोई रिकार्ड नहीं है। यहीं हाल है मदरसा आधुनिकीकरण का, जिसके लिए करोड़ों रुपये का बजट होने के बावजूद तीन दर्जन से अधिक मदरसों के असातजा (शिक्षक) बच्चों को भूखे पेट पढ़ाने को मजबूर हैं।
केंद्र सरकार की ओर से 2005-06 में शुरू हुई मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत जिले के 100 में से 38 मदरसों को चयनित गया था। इनमें बच्चों को तालीम देने के लिए 91 असातजा (शिक्षकों) को छह हजार रुपये प्रतिमाह वेतन के हिसाब से नियुक्ति दी गई। शुरूआत में तो सब कुछ ठीक-ठाक चला लेकिन थोड़े ही दिनों में ये सभी असातजा वेतन को तरसने लगे। कभी तीन तो कभी छह माह का वेतन आने के कारण मदरसा शिक्षकों की आर्थिक स्थिति डगमगाने लगी। कर्ज हो जाने के कारण कइयों के परिवार में तनाव और फांकाकशी की स्थिति पैदा हो गई है लेकिन इस बार तो हद ही हो गई। पिछले 14 माह से मदरसा आधुनिकीकरण के तहत नौकरी कर रहे शिक्षकों को वेतन नहीं मिला है। मामला केंद्र से जुड़ा होने के कारण अधिकारी भी आश्वासन की घुट्टी के अलावा कुछ नहीं कर पा रहे हैं।
जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी शकील अहमद के अनुसार आधुनिकीकरण के तहत जिले के शिक्षकों को वेतन देने के लिए 65 लाख, 52 हजार रुपये की आवश्यकता है। जैसे ही बजट मिलेगा मदरसा संचालकों के खातों में भेज दिया जाएगा। इस सम्बन्ध में शासन से बराबर संपर्क किया जा रहा है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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