जिला में बंद बंदी को उनसे मिलने आने वाले परिजन बताते हैं कि यहां क्षमता से अधिक बंदियों-कैदियों के आ जाने से उसे बैरकों में भूसे की तरह ठूंसकर रखा जाता है। मंगलवार को पेशी पर कचहरी आये एक बंदी की व्यथा उसी के शब्दों में कि हम पैर फैलाते तो दूसरे बंदी के सिर तक पहुंच जाता है। करवट बदलते हैं तो दूसरे के बदन पर चढ़ जाने जैसी स्थिति रही है। एक ही करवट में न जाने कितनी रातें काटनीं पड़ीं हैं। यही आरोप कमोबेश हर कैदी-बंदी का है।
कारागार में इस समय क्षमता के मुकाबले कम से कम तीन गुना अधिक बंदी निरुद्ध हैं जिससे अव्यवस्थाएं हावी हैं। जेल सूत्रों के मुताबिक अंग्रेजों के जमाने में बनी इस जेल में प्रायः उन्हीं के जमाने की क्षमता भी है। यहां केवल 511 बंदियों को निरुद्ध करने की व्यवस्था है लेकिन वर्तमान में1936 बंदी निरुद्ध है। इनमें 50 महिलाएं तथा 400 सजायाफ्ता कैदी शामिल हैं।
इस कारागार में कुल 13 बैरकें हैं। प्रत्येक बैरक में 60 बंदी रखे जाने का प्राविधान है लेकिन इनमें से प्रत्येक में 130 बंदी हैं। बैरक नम्बर-5 और 9 को छोड़कर अन्य की छतें टीनशेड की हैं। गर्मियों में ये छतें आग बरसाती हैं तो जाड़ों में बर्फ के गोले। रातें समंदर सी अपार और दिन पहाड़ से लगते हैं। टुकड़ा-टुकड़ा रातें कटतीं हैं, धज्जी-धज्जी दिन। एक-एक पल एक-एक युग लगता है। ये बैरकें काल कोठरी से कम नहीं।
जेलर सुरेशचन्द्र का कहना है कि यहां क्षमता से अधिक बंदी होते हैं लेकिन उनका यह भी कहना है कि इसके बावजूद व्यवस्थाएं दुरुस्त रखी जा रही हैं। जेल में किसी प्रकार की अव्यवस्था नहीं है। आदेश मिलते ही सजायाफ्ता कैदियों को दूसरी जेल में शिफ्ट कर दिया जाता है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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