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यूपीए: आजादी के बाद की भ्रष्टतम सरकार

Posted on 04 June 2011 by admin

यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार संबंधी प्रस्ताव

प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहन सिहं के नेतृत्व में यूपीए-2 सरकार ने अपने दो साल पूरे कर लिए है। उक्त अवसर पर प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह और यूपीए की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी दोनों ने भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का संकल्प व्यक्त किया। इससे बड़ी विडंबना नहीं हो सकती क्योंकि एक ऐसी सरकार भ्रष्टाचार से लड़ने का संकल्प कर रही है, जिसका हाल तक का एक मंत्री, एक वरिष्ठ कांग्रेसी सांसद और यूपीए के एक महत्वपूर्ण घटक के नेता की पुत्री भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों पर तिहाड़ जेल में बंद हैं। यह बात काफी अहम है कि ये गिरफ्तारियां भाजपा के अभियान, सतर्क मीडिया, के दबाव तथा सर्वोच्च न्यायालय की सतत निगरानी के कारण संभव हो सकीं। वस्तुतः इसके लिए डाॅ. मनमोहन सिंह या उनकी सराकर कोई श्रेय नहीं ले सकती क्योंकि कार्रवाई करने की बजाए उन्होंने तो इनमें से कुछ को निर्दोष होने का प्रमाणपत्र दे दिया था। यह जाहिर है कि डाॅ. मनमोहन सिंह आजादी के बाद की देश की सर्वाधिक भ्रष्ट सरकार के मुखिया हैं। इसमें पारदर्शिता की कमी है, उच्च स्तर पर संलिप्तता है, किसी प्रकार का कोई अंकुश नहीं है, पूरा तंत्र ढह चुका है तथा रोज-रोज नए घोटाले सामने आ रहे हैं। दरअसल, यह प्रधानमंत्री की ‘षड्यंत्रकारी चुप्पी’, ‘अपराधी उदासीनता’, और ‘घोर लापरवाही’ थी की उनकी नाक के नीचे उनका एक मंत्री देश के खजाने को लूटता रहा और वे उसकी अनदेखी करते रहे। इसमें यूपीए की सर्वशक्तिमान नेता श्रीमती सोनिया गांधी की चुप्पी भी उल्लेखनीय थी।

घोटालों और राष्ट्रीय संपŸिा की लूटा का यह सिलसिला काफी बड़ा है। लेकिन, उनमें से कुछ प्रमुख का यहां उल्लेख किया जा रहा है।

2जी स्पेक्ट्रम के आबंटन और लाइसेंस जारी करने में घोटाला
संचार मंत्रालय, भारत सरकार में 2जी लाइसेंसों के आबंटन में हुआ घोर भ्रष्टाचार स्वतंत्र भारत के इतिहास की सबसे शर्मनाक घटना है। यह तंत्र के दुरूपयोग, गलतबयानी और धोखाधड़ी का एक गंभीर मामला है, जिसमें बहुमूल्य स्पेक्ट्रम और लाइसेंस आबंटन में भारी राशि के एवज में चुनिंदा लोगों को फायदा पहुंचाया गया। यह तथ्य सर्वविदित है कि कैसे लाइसेंसों के लिए आवेदन सार्वजनिक रूप से 1/10/2007 तक मंगाए गए थे, उसके बाद एक नकली कट-आॅफ तिथि 25/9/2007 बनाई गई और 25/9/2007 तथा 1/10/2007 के बीच किए गए सभी आवेदनों को निरस्त कर दिया गया। खेल शुरू होने के बाद खेल के नियमों में बदलाव होने पर प्रधानमंत्री चुप्पी साधे रहे। इस पर कोर्ट ने भी प्रतिकूल टिप्पणी की।

प्रधानमंत्री ने तब भी चुप्पी साधे रखी जब तत्कालीन मंत्री ए. राजा ने 02 नवम्बर, 2007 के उनके पत्र की खुली अवहेलना की, जिसमें उन्होंने स्पेक्ट्रम के उचित मूल्य के लिए पारदर्शी प्रक्रिया अपनाने पर बल दिया था क्योंकि 2007 में इसे 2001 के मूल्य पर बेचा जा रहा था, जबकि देश में टेलीडेंसिटी कई गुणा बढ़ चुकी थी। देश को यह जानने का हक है कि सरकार के मुखिया के रूप में प्रधानमंत्री ने हस्तक्षेप करते हुए सारी प्रक्रिया को रोका क्यों नहीं जब सभी नियमों को ताक पर रख स्पेक्ट्रम कम मूल्य पर बेचा जा रहा था। क्या डाॅ मनमोहन सिंह स्वयं जानकारी के बावजूद नहीं कार्यवाही करने और देश के राजस्व को हानि पहुंचाने के दोषी हैं कि नहीं। एक दिन के भीतर 120 लाइसेंस जारी किए गए तथा स्पेक्ट्रम का आबंटन किया गया, जिसमें कई अपात्र कंपनियों को भी लाइसेंस मिल गया।

चैंकाने वाली बात यह है कि एक नियमित सीबीआई मामला दर्ज हो जाने के बाद भी, डाॅ. मनमोहन सिंह ने 26, जुलाई, 2009 को यह सार्वजनिक बयान दिया कि संचार मंत्री ए. राजा के खिलाफ आरोप सही नहीं है। यह कह कर वे सीबीआई को क्या संदेश देना चाह रहे थे, जो सीधे उन्हीं के तहत काम करती है। जब उच्चतम न्यायालय ने इस मामले की निगरानी शुरू की तो ये वही भूतपूर्व मंत्री थे, जो सबसे पहले गिरफ्तार हुए।

प्रधानमंत्री को इसका जवाब देना होगा कि समय-समय पर जिम्मेदार लोगों की आपŸिायों के बावजूद उन्होंने इतना बड़ा घोटाला कैसे होने दिया। इसके उलट वे 2010 के मध्य तक तत्कालीन मंत्री ए. राजा को बेगुनाही का प्रमाणपत्र देते रहे। तत्कालीन विŸा मंत्री श्री पी. चिदंबरम की भूमिका भी कई सवाल खड़े करती है। उनके विभाग द्वारा केबिनेट के 2003 के निर्णय के आलोक में ये आपत्ति बार-बार उठाई गई कि स्पैक्टम के कीमत एक पारदर्शी प्रक्रिया के अनुसार तय की जाए जिसमें उसकी सार्वजनिक नीलामी भी हो सकती है। ये बड़े आश्चर्य का विषय है कि 15 जनवरी 2008 को श्री चिदम्बरम ने तथाकथ्ति रूप से यह निर्णय कि चूंकि 10 जनवरी को लाइसेंस और स्पैटम दोनों का आबंटन हो चुका है। अतः इस मामले को अब बंद किया जाए। श्रीमती सोनिया गांधी को भी कई जवाब देने हैं। यूपीए तथा कांग्रेस पार्टी की अध्यक्षा होने के नाते उस सरकार में जिसकी वो सर्वोच्च नेता है, जब राष्ट्र का धन लूटा जा रहा था उस समय उनकी क्या जिम्मेवारी बनती थी ?

जब सीएजी ने लाइसेंस निर्गत करने तथा स्पेक्ट्रम के आबंटन के बारे में एक विस्तृत आॅडिट रिपोर्ट तैयार की तथा 1.76 लाख करोड़ रूपए के नुकसान का अनुमान लगाया तो भरसक कोशिश की गई कि इस निष्कर्ष को झुठलाया जाए और वर्तमान संचार मंत्री श्री कपिल सिब्बल ने सार्वजनिक रूप से संसद में कहा कि कोई घाटा नहीं हुआ है। अब सीबीआई ने भी अपनी जांच के दौरान पाया है कि हजारों करोड़ रूपए का नुकसान हुआ है और वह भी तदर्थ आधार पर। नुकसान का प्रथम दृष्टया अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि 3जी स्पेक्ट्रम की नीलामी में सरकार को 35,000 करोड़ रूपए के लक्ष्य की तुलना में लगभग 67,000 करोड़ रूपए का जबर्दस्त मुनाफा हुआ और इसके अलावा ब्राडबैंड वायरलैस एक्सेस सर्विसेज के लिए स्पेक्ट्रम की नीलामी से उसे 38,000 कराड़ रूपए का और फायदा हुआ इसके बावजूद, जहां तक 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले का प्रश्न है तो प्रधानमंत्री ने किसी समीक्षा के आदेश नहीं दिए।

जब डाॅ. मुरली मनोहर जोशी लोक लेखा समिति के अध्यक्ष के रूप में इस मामले की जांच कर रहे थे तो तब शुरू में डाॅ. मनमोहन सिंह ने स्वयं श्री जोशी की एक अनुभवी संसदीय नेता के रूप में प्रशंसा की तथा कहा था कि वे अच्छा काम कर रहे हैं। तथापि, जब डाॅ. जोशी की अध्यक्षता वाली समिति ने कैबिनेट सचिव तथा प्रधानमंत्री के सचिव को पूछताछ के लिए बुलाया तो सभी संसदीय और संवैधानिक नियमों की अवहेलना करते हुए कई केंद्रीय मंत्रियों द्वारा इसमें बाधा पहुंचाई गई। जाहिर है कि यह सरकार बहुत कुछ छुपाना चाहती है। डाॅ जोशी ने लोकसभा के स्पीकर को अपनी रिपार्ट सौंप दी है। हम यह मांग करते हैं कि उससे संसद के आगामी सत्र के पहले दिन संसद में प्रस्तुत करते हुए सार्वजनिक किया जाए।

अब वर्तमान कपड़ा मंत्री और मई, 2004 से मई, 2007 तक दूरसंचार मंत्री रहे दयानिधि मारन की भूमिका भी संदेह के घेरे में आ गई है। उन्होंने जोर दिया और डाॅ. मनमोहन सिंह आसानी से मान गए कि स्पेक्ट्रम का मूल्य निर्धारण मंत्री समूह के अधिकार क्षेत्र से बाहर रहना चाहिए क्योंकि इस बारे में डीएमके से समझौता हुआ है। इसका देश को बहुत नुकसान उठाना पड़ा। अब गंभीर आरोप लग रहे हैं कि एक खास मोबाइल कंपनी की 74 प्रतिशत इक्विटी जब एक विदेशी कंपनी ने खरीद ली तो उसे फायदा पहुंचाया गया और तत्पश्चात् यह पैसा तथाकथित रूप से एक सहायक कंपनी के माध्यम से श्री मारन के परिवार के बिजनेस में निवेश किया गया। हितों के स्पष्ट टकराव तथा अधिकार के दुरूपयोग के अलावा यह स्पष्ट था कि सरकारी निर्णयों की बिक्री हो रही थी। जाहिर है, उनकी भूमिका की भी जांच होनी चाहिए।
हमें उम्मीद है कि संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी इस घोटाले की तह तक जाएगी और देषियों को सजा मिलेगी। गठबंधन राजनीति की मजबूरियों को भ्रष्ट लोगों का गठबंधन नहीं बना देना चाहिए। भाजपा की यह मांग है कि धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार के ऐसे गंभीर मामले का जिम्मा यूपीए के सिर्फ एक सहयोगी (डीएमके) के ऊपर नहीं डाला जा सकता। सरकार में शीर्ष और वरिष्ठ पदों पर बैठे ऐसे लोग हैं जो इस लूट में शामिल रहे हैं। जाहिर है, उनकी भूमिका की भी जांच होनी चाहिए और जांच एजेंसी को पूरी छूट दी जानी चाहिए।

राष्ट्रमंडल खेलों में आम जनता के धन की लूट
किसी भी अंतर्राष्ट्रीय खेल का आयोजन उपलब्धि और उत्सव का मौका होता है। हांलाकि, कुछ महीने पहले दिलली में आयोजि राष्ट्रमंडल खेलों में हमारे खिलाड़ियों ने देश को गौरवान्वित किया, लेकिन बड़े पैमाने पर हुए भ्रष्टाचार से देश को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शर्मींदगी और नाराजगी झेलनी पड़ी। भाजपा ने खासतौर पर हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नितिन गडकरी ने राष्ट्रमंडल खेलों में लूट को सराहनीय ढंग से तथ्यों और आकड़ों के साथ देशभर में उजागर किया है। आज, श्री सुरेश कलमाड़ी आयोजन समिति के अपने अनेक सहयोगियों के साथ जेल में हैं। लेकिन, मामला यहीं खत्म नहीं होता। वे इसके मोहरे मात्र हैं। प्रत्येक फाइल को कैबिनेट, कैबिनेट सब-कमीटी, मंत्री समूह, संबंधित मंत्रालय, यय विŸा समिति, पीएमओ और अंततः प्रधानमंत्री की मंजूरी मिली थी।

प्रधानमंत्री ने श्री वी.के. शंगुलू की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया और घोषणा की कि इसकी रिपोर्ट पर कार्रवाई की जाएगी। पांचवी रिपोर्ट में इसकी पुनः पुष्टि हुई कि गंभीर घपले हुए हैं, जिससे ठेकेदारों को अनुचित फायदा पहुंचा है और अपव्यय तथा सरकार को नुकसान हुआ है। रिपोर्ट में पाया गया है कि ठेके देने में गंभीर अनियमितताएं हुई हैं क्योंकि शुरूआत से ही साजिश थी कि परियोजनाओं को पूरा करने में विलंब किया जाए, लागत बढ़ाई जाए और पैसा मांगा जाए और समय कम होने के कारण ऊंची लागत में ठेके दिए जाएं। समिति ने श्रीमती शीला दीक्षित की दिल्ली सरकार जिनके हाथ में सारी विŸाीय शक्तियां थीं, विभिन्न एजेंसियों जैसे डीडीए, सीपीडब्लयूडी इत्यादी, श्री सुरेश कलमाडी की अध्यक्षता वाली आयोजन समिति की कड़ी आलोचना की है। चाहे वह राष्ट्रमंडल खेल गांव हो, यहां तक कि एयर कंडीशनरों, कुर्सियों, टाॅयलेट पेपर तक खरीद में बड़े पैमाने पर घपले हुए हैं।

इस रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि “बीमारी अंदर तक फैली है और इसे अपवाद नहीं माना जा सकता, जिसके लिए सिर्फ कनिष्ठ पदाधिकारी जिम्मेदार हैं। इसमें शामिल अधिकारियों की आगे और जांच के आधार पर पहचान की जानी चाहिए और उपयुक्त कार्रवाई की जानी चाहिए।” समिति ने आगे कहा है, “एक प्रकार की कुटिलता से काम किया गया और परियोजनाओें में अनुचित विलंब शायद जानबूझकर किया गया, जिससे कि दहशत का माहौल उत्पन्न हो तथा सभी संबंधितों को लाभ पहुंचाया जा सके।”

राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में करदाता के कुल पैसों का नुकसान लगभग 70,000 करोड़ रूपए है। यह सर्वविदित है कि विŸाीय अनुमोदनों में पीएमओ के कुछ अधिकारी शामिल थे। अब कार्रवाई करने की बजाए दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शली दीक्षित ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया है और प्रधानमंत्री पुनः चुप्पी साधे हुए हैं। जैसा कि शुंगलू समिति ने सिफारिश की है, भाजपा यह मांग करती है कि उच्च पदों पर आसीन उन सभी लोगों की पहचान की जाए, उनकी जांच हो तथा उन्हें पर्याप्त दंड दिया जाए। भाजपा की यह मांग है कि सीबीआई को दिल्ली सरकार और राष्ट्रमंडल खेल घोटाले में मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित की भूमिका की भी जांच करनी चाहिए। इसमें उनकी संलिप्तता भी स्पष्ट है।

केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की संस्थागत गरीमा और नैतिकता से समझौता
यपीए सरकार ने केंद्रीय सतर्कता आयोग के अध्यक्ष के रूप में पीजी थाॅमस की नियुक्ति में नैतिकता की सभी सीमाओं को पार कर दिया। वे दागदार थे क्योंकि पामोलीन घोटाले से जुड़े मामलों में उन पर चार्जशीट की गई थी, जो केरल में एक कोर्ट के समक्ष लंबित थी। जो समिति अनंशंसा करने वाली थी, उसमें प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के अलावा लोकसभा में विपक्ष की नेता भी शामिल थीं। श्रीमती सुषमा स्वराज ने श्री थाॅमस की नियुक्ति का विरोध किया क्योंकि वे भ्रष्टाचार के एक मामले में आरोपी थे। गृहमंत्री ने गलत बयानी की कि वे दोषमुक्त हो चुके हैं। श्रीमती सुषमा स्वराज का यह अनुरोध कि नियुक्ति को एक दिन के लिए टाल दिया जाए और तथ्यों का पता लगाया जाए या किसी और नाम पर विचार किया जाए, नहीं माना गया। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री दोनों ने जबर्दस्ती श्री थाॅमस की नियुक्ति कर दी। यहां यह उल्लेखनीय है कि पहले दूरसंचार सचिव के रूप में उन्होंने 2जी लाइसेंस देने के बारे में सीएजी की आॅडिट का यह कह कर विरोध किया थ्ज्ञा कि यह एक नीतिगत मामला है और इसका आॅडिट नहीं हो सकता। उसके बाद जो हुआ वह सबको पता है।

सीवीसी एक नैतिक गरिमायुक्त संस्था है। उनकी नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करते समय उच्चतम न्यायालय ने पाया कि क्व्च्ज् की 2000 से 2004 के बीच की कई नोटिंग, जिसमें श्री थाॅमस के विरूद्ध विभागीय कार्रवाई शुरू करने की अनुशंसा की गई थी, चयन आयोग की जानकारी में नहीं लाई गई। कोर्ट ने कहा कि जब सीवीसी जैसी किसी संस्था की नैतिक गरिमा का प्रश्न हो तब जनहित को सर्वोपरि रखा जाना चाहिए और वैयक्तिक नैतिकता और गरिमा का “निश्चय ही संस्थागत की नैतिकता गरिमा से संबंध है।” तदनुसार, कोर्ट ने कहा कि इस प्रक्रिया में पारदर्शिता का पालन नहीं किया गया तथा यदि किसी सदस्य का विरोध है और बहुमत उसे अस्वीकार करता है तो उसे अवश्य ही इसका कारण बताना चाहिए।

एक प्रधानमंत्री के रूप में और चयन समिति के अध्यक्ष के रूप में एक दागी अधिकारी की सीवीसी के रूप में नियुक्ति थोपने के लिए डाॅ. मनमोहन सिंह पूरी तरह जिम्मेवार हैं। उन्होंने अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि आखिर उन्होंने श्री थाॅमस के विरूद्ध नेता प्रतिपक्ष श्रीमती सुषमा स्वराज की एक वैद्य आपŸिा को दरकिनार क्यों किया?

आदर्श कोआॅपरेटिव सोसाइटी घोटाला
यह भी भ्रष्टाचार का एक काॅपीबुक मामला था। आदर्श कोआॅपरेटिव सोसाइटी को रक्षा मंत्रालय के नियंत्रण वाली जमीन कारगिल के नायकों और उनकी विधवाओं के लिए फ्लैट बनाने हेतु मंुबई के एक महंगे इलाके में दी गई थी। लेकिन, घपलेबाजी और धोखाधड़ी के जरिए इसे नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों ने हड़प लिया। जब चव्हाण राजस्व मंत्री और विलासराव देशमुख मुख्यमंत्री थे तो सभी नियमों से छेड़छाड़ की गई। यहां तक कि वर्तमान केंद्रीय मंत्री और भूतपूर्व मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे की भूमिका भी संदेह के घेरे में है। इसके लाभार्थियों में कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों सहित बड़े नेताओं के अनेक रिश्तेदार शािमल हैं।

यदि कारगिल के नायकों की याद के साथ हुए ऐसे अपमान पर देशभर में क्षोभ उत्पन्न न हुआ होता तो शायद इसकी भी जांच मुश्किल होती। हालांकि, अभी भी संदेह कायम है क्योंकि रक्षा विभाग द्वारा प्लाट के स्वामित्व संबंधी फाइल गायब हो गई है। यहां तक कि पर्यावरणीय स्वीकृति वाली फाइल केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से गायब हो चुकी है।

एंट्रिक्स काॅरपोरेशन लिमिटेड - देवास मल्टीमीडिया घोटाला
एक और घोटाला अंतरिक्ष विभाग में प्रकाश में आया है, जो सीधे प्रधानमंत्री के अधीन है। 2005 में एंट्रिक्स कारपोरेशन लि., इसरो की वाणिज्यिक शाखा, ने देवास मल्टीमीडिया के लिए दो सैटेलाइट लांच किए और बगैर निलामी या उपयुक्त मूल्य निर्धारण किए सिर्फ 1000 करोड़ रूपए में मोबाइल टेलीफोनी सहित दुर्लभ एस-बैंड के बीस वर्षों तक 70 डभर्् के असीमित उपयोग का बड़ा फायदा दिया। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछले साल सरकार ने 3जी मोबाइल सेवाओं हेतु इसी तरह की वायु तरंगों हेतु 15 डभर्् की नीलामी से 67719 करोड़ रूपए कमाए तथा 38000 करोड़ रूपए की उगाही ब्राडबैंड वायरलेस एक्सेस सर्विसेज की नीलामी से हुई। इसमें न तो सरकार का कोई अनुमोदन लिया गया और न इसकी निगरानी हुई। इस सौदे के पांच वर्ष बाद इसे निरस्त करने का निर्णय जुलाई, 2010 में लिया गया। राष्ट्रीय खजाने को हुए इस नुकसान की देशव्यापी प्रतिक्रिया के बाद, इस सौदे को अंततः फरवरी, 2011 में रद्द किया गया। इसके पूर्व देवास मल्टीमीडिया के अधिकारी सरकार के तथा पीएमओ के उच्चाधिकारियों के संपर्क में थे।

अंतरिक्ष विभाग सीधे प्रधानमंत्री के अधीन है। जब इस भारी घपले के बारे में उनसे पूछा गया तो उनका जवाब वही था कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी। यह बात विचित्र लगती है कि जब कभी किसी अनियमितता के बारे में उनसे पूछा जाता है तो वे अनभिज्ञता का रोना रोते हैं। डाॅ. मनमोहन सिंह से हम ये पूछना चाहेंगे कि क्या आप कोई निगरानी नहीं करते अथवा जब कभी कोई भ्रष्टाचार होता है तो उससे आप मुंह फेर लेते हैं।

विदेशी बैंकों में जमा भारतीय नागरिकों का काला धन
भारतीय नागरिकों द्वारा अपराध और भ्रष्टाचार से उपर्जित काले धन को विदेशी बैंकों में जमा करने के सवाल पर सरकार की उदासीनता से लेकर देशभर में गहरी नाराजगी है। पहले जब लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा संसदीय दल के नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी ने यह मुद्दा उठाया था तो कांग्रेस ने इसे चुनावी स्टंट बताया था। बाद में कहा गया कि सŸाा में आने के बाद सार्थक कदम उठाए जाएंगे। इस मुद्दे से जुड़े एक पीआईएल में जिस प्रकार उच्चतम न्यायालय ने प्रतिकूल टिप्पणियां की है उससे सरकार की नीयत का पता लगता है। हम सिर्फ बहुविषयी समिति द्वारा अध्ययन और पांच बिंदुओं वाली रणनीति की बातें सुन रहें हैं। ये सिर्फ दिखावा है और इसमें ऐसा कोई इरादा नहीं कि एक समय-सीमा के भीतर कालेधन का पता लगाया जाए और देशवासियों को बताया जाए। अमेरिका दोहरी कर नीति के बावजूद टैक्स चोरों के नाम जाहिर करने के लिए स्वीस अधिकारियों को मजबूर कर सकता है। भारत अब कोई तीसरी दुनिया की अर्थव्यवस्था नहीं बल्कि एक उभरती हुई आर्थिक महाशक्ति है, जिसकी जी-20 राष्ट्रों में अच्छी दखल है। इसका इस्तेमाल आखिर सरकार क्योंकि नहीं करती। भ्रष्टाचार के विरूद्ध संयुक्त राष्ट्र संधि जो दिसंबर 2005 में प्रभावी हुई थी, उसका अनुसमर्थन भारत ने अभी पिछले सप्ताह ही किया है। यह वैश्विक भ्रष्टाचार से लड़ने का एक व्यापक उपकरण है। यदि उच्चतम न्यायालय की निगरानी नहीं होती तो प्रवर्तन निदेशालय और अन्य एजेंसियों को हसन अली की निष्पक्ष जांच नहीं करने दी जाती जो लगभग 76,000 करोड़ रूपए का कर चोर है तथा जिसके कई विदेशी खाते हैं। इसका कारण स्पष्ट है, आरोपित व्यक्तियों की जांच के दौरान कुछ बड़े कांगेसी नेताओं के विरूद्ध भी आरोप लगे हैं।

यूपीए सरकार में घोटाले एक के बाद एक चैंकाने वाली नियमितता से प्रकट होते रहते हैं। अनाज और खाद्य के आयात निर्यात में जितनी भयंकर अनियमितताएं हुई हैं उसकी जानकारी सार्वजनिक है। एफ.सी.आई. के गोदामों में रखा लाखों टन अनाज सड़ गया और गरीब जनता भूख से कराहती रही, ये भी देश जानता है। अब कोयला के ब्लाॅक के आबंटन में भी भयंकर अनिमतताओं की शिकायत सामने आ रही है, जो निजी हाथों में दिए गए हैं। ये आबंटन उस समय के भी हैं जब डाॅ मनमोहन सिंह स्वंय कोयला मंत्री थे। ऐसे महंगे कोल ब्लाॅक गैर सार्वजनिक निजी कंपनियों और सार्वजनिक प्रतिष्ठानों को आबंटित किए गए। जिनका काम सवालों के घेरे में था और जिनकी योजनाएं सिर्फ कागज पर थीं।

उपरोक्त उदाहरण यूपीए-1 तथा यूपीए-2 सरकारों की भ्रष्टाचार की सिर्फ मिसालें हैं। निःसंदेह आजादी के बाद से आज तक किसी भी सरकार पर भ्रष्टाचार के इतने आरोप नहीं लगे। देश ने देखा कि किस तरह शर्मनाम ढंग से रिश्वतखोरी के जरिए डाॅ. मनमोहन सिंह की सरकार ने लोकसभा में विश्वास प्रस्ताव जीता। आज तक भी दोषियों के विरूद्ध कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं हुई है। समूची यूपीए सरकार ओटैवियो क्वात्रोच्ची को बचाने में जुटी हुई थी, सिर्फ इसलिए कि गांधी परिवार से उनकी करीबी थी। सभी को पता है कि कैसे एक सरकारी विधि अधिकारी की गलतबयानी के आधार पर बोफोर्स घोटाले के रिश्वत का पैसा उसके लंदन बैंक खाते से मुक्त किया गया था। इन घोटालों के कारण देश की जो तबाही हुई है, इसकी जिम्मेवारी से श्रीमती सोनिया गांधी और डाॅ. मनमोहन सिंह बच नहीं सकते। उन्हें जवाब देना होगा। देश को अपने निष्कर्ष निकालने का हक है।

भाजपा इन घपलों और घोटालों को उजागर करती रहेगी और इनके खिलाफ लड़ती रहेगी। भाजपा की मांग है कि अपराध और भ्रष्टाचार से अर्जित भारतीय नागरिको का समस्त काला धन जो विदेशी बैंकों में जमा है, एक निश्चित समय-सीमा के भीतर भारत लाया जानाचाहिए और पर्याप्त कार्रवाई की जानी चाहिए। यह भी जरूरी है कि यूपीए सरकार के विभिन्न घोटालों में शामिल सभी बड़े-बड़े लोगों पर कोर्रवाई होनी चाहिए।

जिस शर्मनाक तरीके से डाॅ मनमोहन सिंह की सरकार ने सार्वजनिक सम्पत्ति और कर दाताओं के पैसे के लूट की छूट दी उस आधार पर उसने शासन करने के सारे नैतिक आधार को खो दिया है। इस कारण भारत और भारतीयों का सिर शर्म से झुक गया है और पूरी दुनिया में देश की बदनामी हुई है।

भारतीय जनता पार्टी देश की जनता का आह्वान करती है कि वह यूपीए सरकार और शासन के दौरान जितने आयोजित और प्रायोजित भ्रष्टाचार हुए हैं उनके खिलाफ निर्णायक संघर्ष के लिए तैयार हो क्योंकि यूपीए का भ्रष्टाचार देश की राजनीति और शासन व्यवस्था को अन्दर से कमजोर और खोखला कर रहा है। जनमत का दबाव इसलिए भी आवश्यक है कि जो दोषी हैं; भले ही उनका कद अथवा पद कुछ भी हो के खिलाफ कार्यवाई हो सके और उन्हें दण्ड मिले।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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