आज ईरान में बहाई समुदाय के सात नेताओं को बन्दी बनाये जाने की तीसरी वर्षगांठ है। तेहरान के एविन जेल में 30 महीने से अवैधानिक रुप से बन्दी बनाये गये सात व्यक्तिओं को अगस्त 2010 में उनके ऊपर मुकदमा चलाया गया और सजा दी गई। इन बेकसूर कैदियों के वकील (नोबल पुरस्कार विजेता सुश्री शिरीन एबादी) के अनुसार कोर्ट की कार्यवाही केवल एक ढ़ोग था जिसमें अपराध का कोई सबूत नही पेश किया गया। अपील के बाद इन व्यक्तिओं की 20 साल की सज़ा को कम करके 10 साल का कर दिया गया। दो माह पूर्व कोर्ट ने दुबारा 20 साल की सज़ा सुना दी, हांलाकि अपील कोर्ट ने तीन सबसे घोर इज्लामों को रद्द कर दिया। आज की तारीख तक कोई भी कोर्ट का फैसला, न तो असली या न तो अपील को लिखित रुप मंे किसी भी बन्दी या उनके अटार्नी को दिया गया है।
पूरे विश्व के बहाई समुदाय के सदस्यों में ये चिन्ता है कि इनमें से दो महिला बन्दी (फरीबा कमलाबादी जो एक मनोवैज्ञानिक व तीन बच्चो की माँ है और महबास साबेत जो एक स्कूल की प्रधानाचार्या हैं) उनको तेहरान से 60 किलोमीटर दूर करचाक जेल में स्थानान्तरित कर दिया गया है। संयुक्त राष्ट्र की बहाई अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय की मुख्य प्रतिनिधि सुश्री बानी दुग्गल का कहना है, ‘‘हमें लगता है कि उनको 400 अन्य कैदियों के साथ एक बडे़ से गोदाम रूपी कमरे में बन्दी बनाकर रखा गया है जिसमे न्यूनतम सुविधाए हैं।’’
रोक्साना साबेरी, एक अमरीकी महिला व युवा पत्रकार जिन्होने 2009 में ईरान के जेल में कई महीने बिताये थे, ने अक्सर कमालाबादी और साबेत द्वारा दिखाये गये दलायु एवं स्नेहशील व्यवहार के बारे में लिखा है जब वो एवेन जेल में उनके साथ बन्द थीं।
मार्च 2011 में वाॅल स्ट्रीट जरनल में एक लेख में साबेरी लिखती है कि ‘‘उन्होने हमारी आत्मा को बल दिया, हमें नई आशा दी, और हमारी देखभाल की, जब हम भूख हड़ताल पर थे।’’ इन सात पुरुष व महिलाओं पर ऐसे अपराधों का आरोप लगाया गया जैसे धार्मिक पवित्रताओं का मज़ाक उडाना, इज़राइल के लिए जासूसी करना इत्यादि - ऐसे आरोप जो कभी भी सिद्ध नही किये गये।’’
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कई देशों द्वारा तेज दबाव की वजह से बहाईयों पर आक्रमण कुछ हद तक कम होते दिखाई दिये किन्तु 2004 में राष्ट्रपति अहमदेनिजाद के चुनाव के उपरान्त, बहाईयों के खिलाफ मानव-अधिकार उल्लंघन और भी बढ़ गया। तब से लगभग 382 बहाईयों को गिरफ्तार किया जा चुका है जिसमें 75 इस वक्त जेल में बन्द हैं और 100 से ऊपर सज़ा का इंतजार कर रहे है।
बहाईयों को बिजनेस के लाइसेन्स व सरकारी नौकरियाँ मिलने पर रोक है। विश्व विद्यालय में जो थोड़े से बहाई दाखिला लेते हैं उनको भी उनका धर्म पता चलने पर निकाल दिया जाता है और अक्सर सरकारी अफसरों द्वारा बहाईयों के घरों को तहस-नहस कर दिया जाता है। किसी दशा में उनके घरों को भी उन व्यक्तिओं द्वारा जला दिया जाता है जिनकी भावनाओ को तरह-तरह के बेनाम पर्चो द्वारा उकसाया जाता है जो जानबूझकर बहाईयों के प्रति दुश्मनी जगाने के लिए बाँटे जाते हैं।
सभी देशों की सरकारों ने और हाल ही में यूरोपियन यूनियन और यूनाइटेड किंगडम ने ईरान की निंदा की है। कनाडा की सरकार ने ईरान में हो रहे मनावाधिकारों के हनन पर संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया जिसे दिसम्बर में बहुमत से पास कर दिया गया। इसके अतिरिक्त 6 फरवरी को हुई एक संसदीय बहस में कंन्ज़र्वेटिव, लिबरल तथा एन.डी.पी. पार्टियों के सदस्यों ने बढ़-चढ़कर ईरान के बहाई समुदाय के पक्ष में अपने विचार रखे। मार्च 2009 में एकमत आॅल पार्टी वोट के द्वारा इग्लैंड के हाउस आॅफ कामन्स में बहाईयों के प्रति र्दुव्यहार की खुलकर भत्र्सना की गयी तथा कनाडा के विदेश मंत्री ने इस विषय पर कई बार आवाज़ उठाई है।
इस सब के बावजूद भी ईरान के राजनेता अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा की जा रही इस निंदा की पूरी तरह अनदेखी कर रहे हैं और बहाईयों के मनावाधिकारों का हनन होता जा रहा है।
इस विषय में ईरानियों के साथ सही व मानवतापूर्ण व्यवहार करने की प्रार्थना करने हेतु लखनऊ का बहाई समुदाय 21 मई की शाम को साहू पैलेस, कुकरैल पिकनिक स्पाॅट रोड पर एक विशेष सभा का आयोजन कर रहा है। श्री वी.एन. गर्ग, आई.ए.एस. कमिश्नर, इन्फ्रास्ट्रक्चर एण्ड इन्ड्रस्टियल डेवलपमेन्ट इस सभा की अध्यक्षता करंेगे और सिटी मोन्टेसरी स्कूल के संस्थापक-प्रबन्धक डा. जगदीश गाँधी इस अवसर पर प्रमुख वक्ता रहेंगे। मानवाधिकार व मानव प्रतिष्ठा के सभी समर्थक इस सभा में सम्मिलित होने के लिए सादर आमंत्रित है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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