Categorized | विचार

‘माँ’ की महिमा को पहचानिये!

Posted on 07 May 2011 by admin

‘मदर्स डे’ पर विशेष

new-ho‘‘माँ’’ न कहीं पहाड़ पर है न कहीं जंगल में हैं। ‘‘माँ’’ न किसी मन्दिर में है, न किसी गिरिज़ा,  गुरुद्वारे, मस्ज़िद में हैं। ‘‘माँ’’ तो आपके घर में है। जिस माँ ने आपको जन्म दिया है, जिस माँ ने आपको पालपोस कर बड़ा किया है, मैं उसी ‘‘माँ’’ की बात कर रहा हूँ। आज आप जिस माँ की बदौलत ही अपने पैरों पर खड़े हैं, मैं उसी माँ की बात कर रहा हूँ। यह वही माँ है, जब आप पढ़ रहे होते थे और माँ जग रही होती थी, फिर प्यार से दुलार से आपको सुलाती थी, बाद में खुद सोती थी। इतना ही नही आपके सोने से पहले उठकर आपको चाय, दूध देती थी फिर करती थी आपके लिए नाश्ता तैयार और आपको खिला पिलाकर भेजती थी स्कूल। फिर दिन भर इन्तजार करती थी आपके स्कूल से लौटने का, मैं उसी माँ की बात कर रहा हूँ किसी देवी देवता की नही। क्योंकि ‘‘माँ’’ ही देवी है और ‘‘माँ’’ ही देवता। अतः अपनी ‘‘माँ’’ की पूजा करिये और उतारिये उसी ‘‘माँ’’ की आरती और उसी ‘‘माँ’’ की चरणों की धूल को प्रतिदिन अपने माथे पर लगाइये। सच मानिये! आपको अन्य किसी तिलक व टीका लगाने की जरुरत नही पड़ेगी और न ही किसी मन्दिर, मस्ज़िद, गिरिज़ा, गुरुद्वारे में जाने की। अगर आप इन पवित्र और पूजा स्थलों पर जाते भी हैं तो अच्छी बात है किन्तु ‘‘माँ’’ का स्थान भगवान से भी ऊपर है वह इसलिये कि भगवान को भी ‘‘माँ’’ ने ही जन्म दिया है इसलिये ‘‘माँ’’ पहले है और सब बाद में।

यदि आप चाहते हैं कि आप महान बनें, आपका समाज में सम्मान हो, तो इसके लिए आपको ‘‘माँ’’ की शरण में जाना होगा तभी मिलेगी आपको अपनी मंजिल अन्यथा नहीं! यदि आप ‘‘माँ’’ की शरण में चले गये व ‘‘माँ’’ के महत्व को समझ लिया तो निश्चित रुप से आप सफलता प्राप्त करेंगे। इस सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचने के लिए आपकी आँखों के समक्ष प्रत्येक पल माँ की तस्वीर घूमती रहनी चाहिए। सोते समय, उठते समय, पढ़ते समय, काम करते समय, चिन्तन करते समय, मनन करते समय, भजन करते समय, भोजन करते समय, हर समय प्रत्येक पल, प्रत्येक क्षण ‘‘माँ’’ की तस्वीर आपकी आँखों के सामने घूमती रहनी चाहिये। वह इसलिये कि ‘‘माँ’’ से अधिक आपको प्रेरणा अन्य कोई नही दे सकता, आपको अन्य कोई सफल नही बना सकता। ‘‘माँ’’ से अधिक आपको ‘‘जोश’’ बनाये रखने का सम्बल अन्य कोई प्रदान नही कर सकता क्यांे कि ‘‘माँ’’ त्याग की प्रतिमूर्ति है, ‘‘माँ’’ कर्तव्य की प्रतिमूर्ति है, ‘‘माँ’’ उत्साह व जोश की प्रतिमूर्ति है, ‘‘माँ’’ ममता की प्रतिमूर्ति है इसलिये आप प्रेरणा ‘‘माँ’’ से ही लीजिये। ‘‘माँ’’ को ही आदर्श मानिये ‘‘माँ’’ की तस्वीर को अपने मन मन्दिर में बैठाइये और ‘‘माँ’’ की पूजा करिये सच मानिये तभी आप सफलता के शिखर पर पहुंचेंगे साथ ही कहलाये जायेगे एक सफल व्यक्ति और तभी मंजिल आपके पग चूमेंगी।

जब आप पैदा होते हैं तब ‘‘माँ’’ का दूध ही आपको जीवन देता है। कल्पना कीजिये कि आपको ‘‘माँ’’ का दूध न मिलता तो क्या आपके जीवन की रक्षा हो सकती थी और आप आज जिस स्थिति परिस्थिति में खड़े हैं तो क्या आप होते? कदापि नही! क्योंकि बिना ‘‘माँ’’ की प्रेरणा से आप मंजिल प्राप्त नहीं कर सकते हैं। वह इसलिए कि ‘‘माँ’’ से अधिक ज्ञानी व ‘‘माँ’’ से अधिक आपके हित की बात सोचने वाला इस दुनिया में अन्य कोई नही हैं एक बात और ध्यान से सुन लीजिये ‘‘माँ’’ से अधिक पढ़ा लिखा व ज्ञानी भी कोई नही हैं अगर आप समझते हैं कि ‘‘माँ’’ पढ़ी लिखी नही है तो यह आपकी भूल है। मै मानता हूँ कि इस संसार में और खासकर इस देश में अधिकांश महिलायें पढ़ी लिखी नही हैं और आज भी अशिक्षित हैं उन्हें किताबी ज्ञान नही हैं, उन्हें शब्द ज्ञान व भाषा ज्ञान नही है और उनके पास किसी प्रदेशीय बोर्ड, केन्द्रीय बोर्ड, किसी यूनिवर्सिटी आदि का कोई सर्टीफिकेट नहीं है। किन्तु मेरे दोस्त जब किसी महिला को ईश्वर ‘‘माँ’’ का सर्टीफिकेट दे देता है तो उसके सामने यह बोर्ड व यूनिवर्सिटी द्वारा प्रदत्त सर्टीफिकेट बौने हो जाते हैं। क्यों? वह इसलिये कि यह सर्टीफिकेट तो मनुष्य द्वारा प्रदत्त हैं किन्तु ‘‘माँ’’ का सर्टीफिकेट तो ईश्वर द्वारा प्रदत्त है अब आप ही सोचिये! कि मनुष्य द्वारा प्रदत्त सर्टीफिकेट बड़ा है या ईश्वर द्वारा प्रदत्त सर्टीफिकेट बड़ा? क्या अब भी आप सोचेंगे कि मेरी ‘‘माँ’’ पढ़ी लिखी नही हैं? कदापि नही! आपकी ‘‘माँ’’ पढ़ी लिखी हैं, आपकी ‘‘माँ’’ इतनी विद्वान हैं कि संसार में अन्य कोई विद्वान नहीं, आप तो कदापि नही! इसलिये इस भ्रम में मत रहिये कि मैं पढ़ा लिखा हूँ और मेरी ‘‘माँ’’ पढ़ी लिखी नहीं हैं, यदि आपने ऐसा सोच लिया तो गई आपकी किस्मत अंधेरे में, जिन्दगी भर हाथ पैर मारते रहोगे अंधेरे में। आपके पास पछताने के अलावा शेष कुछ नही बचेगा। यहाँ पर मैं आपको एक किवदन्ति का वर्णन कर रहा हूँ। एक युवक था दो अक्षर पढ़कर अपने आपको पढ़ा लिखा समझता था और अपनी ‘‘माँ’’ को बिना पढ़ा लिखा। सो पढ़कर लिखकर वह नौकरी की तलाश में दूसरे शहर जाने लगा तो ‘‘माँ’’ ने कहा कि बेटा अमुक दिशा में मत जाना और अगर अमुक दिशा में जाना बहुत जरूरी हो तो बेटा ‘‘अंधेर नगरी’’ मत जाना। अंधेर नगरी अमुक दिशा में ही है सो युवक ने सोचा कि ‘‘माँ’’ पढ़ी लिखी तो है नही इसको इतना ज्ञान कहाँ से आ गया अमुक दिशा व अमुक नगरी का। यह तो भूगोल व इतिहास की बातें हैं। माँ को तो चिट्ठी भी पढ़नी नही आती है और कर रही है इतिहास और भूगोल की बातें। ऐसा सोच कर वह युवक उसी अमुक दिशा की ओर चल दिया और वह पूछते-पूछते पहुँच गया वह अंधेर नगरी। अंधेर नगरी पहुँचते ही उस युवक कोएक बड़ी नौकरी मिल गयी तो वह युवक ‘‘माँ’’ के अल्प ज्ञान पर जमकर हँसा। हँसते-हँसते नौकरी करने लगा उस अंधेर नगरी में प्रत्येक वस्तु टका सेर थी (एक रुपये किलो) यानि की सब्जी भी टका सेर और फल भी टका सेर, दूध भी टका सेर व घी भी टका सेर, यानी की सबकुछ टका सेर। यह देखकर युवक बड़ा ही खुश हुआ अब पानी की जगह जूस पीने लगा। दूध की जगह घी पीने लगा। सो कुछ ही दिनों में खा पीकर हट्टा-कट्टा और मोटा हो गया गर्दन भी गेंडे की तरह हो गयी जिसे घुमाने में भी दिक्कत होती थी। एक दिन उस नगरी में एक दुर्घटना हो गयी उस दुर्घटना में सड़क पार कर रहे दो बच्चों को एक ट्रक ने कुचल दिया। वहीं घटना स्थल पर दोनो बच्चों का अन्त हो गया और ट्रक ड्राइवर को पकड़ लिया गया व उसे अंधेर नगरी राजा के सामने हाजिर किया गया। ट्रक ड्राइवर का अपराध बताया कि इसने दो अबोध बालकों को कुचल दिया है। इतना सुनते ही राजा क्रोधित हुआ व उस ड्राइवर को फाँसी की सजा सुना दी। फाँसी की सजा सुनते ही ड्राइवर ने अपने बचाव में कहा कि महाराज! ट्रक तो अमुक मालिक का है मैं तो उसका नौकर हूँ अतः फाँसी ट्रक के मालिक को दी जाय। राजा ने कहा बात तो ठीक है ट्रक के मालिक को पकड़ कर लाओ। ट्रक का मालिक लाया गया और उसको फाँसी की सजा सुना दी गयी। ट्रक के मालिक ने अपने बचाव में कहा कि महाराज! फाँसी की सजा मुझे क्यों? यह सजा तो ट्रक कम्पनी के मालिक को सुनाई जानी चाहिये। तो ठीक है ट्रक कम्पनी के मालिक को बुलाओ। ट्रक का मालिक आया तो फाँसी की सजा उसको सुना दी गयी सजा सुनते ही कम्पनी का मालिक अपने बचाव में बोला महाराज! सजा मुझे क्यों? ट्रक तो कल्लू मिस्त्री ने बनाया था फाँसी कल्लू मिस्त्री को ही दी जानी चाहिए। ठीक है कल्लू मिस्त्री को पकड़कर लाओ, राजा ने हुकुम फरमाया। अब कल्लू मिस्त्री को फाँसी की सजा सुना दी गयी। सजा के मुताबिक कल्लू मिस्त्री को फाँसी के तख्ते पर ले जाया गया किन्तु यह क्या फाँसी का फन्दा कल्लू मिस्त्री की गर्दन में ढीला पड़ गया कल्लू की गर्दन पतली और फंदा बड़ा अब क्या हो? इस समस्या को जल्लादों ने दरबार में जाकर राजा को बताया राजा ने हुक्म दिया कि जिस व्यक्ति की गर्दन में यह फंदा सही आ जाय उस व्यक्ति को फाँसी की सजा दे दी जाय। हुक्म सुनते ही नगर के सिपाही प्रत्येक व्यक्ति की गर्दन में वह फाँसी का फंदा नाप-नाप कर देखने लगे फंदा देखकर गर्दन नापते-नापते वह फंदा उसी नवयुवक की गर्दन में सही बैठ गया। जिस युवक ने अपनी माँ की बात की अनसुनी कर अंधेर नगरी में आ गया था। उस युवक को पकड़कर दरबार में राजा के सामने हाजिर किया गया। और बताया गया कि हुजूर यह फाँसी का फंदा इस युवक के गले में सही बनता है। तो ठीक है इस युवक को ही फाँसी दे दी जाय। फाँसी की सजा सुनकर उस युवक को अपनी गलती का एहसास हुआ और तब उसे ‘‘माँ’’ की बहुत याद आयी ‘‘माँ’’ की याद में वह फूटफूटकर रोने लगा। ‘‘माँ’’ की तस्वीर उस युवक की आँखों के सामने बार-बार आने लगी उस तस्वीर ने युवक से कहा बेटे अब रोने से क्या फायदा यह अज्ञानी राजा तेरे करुण, क्रन्दन करने से तेरी फाँसी की सजा को माफ नही करेगा। हाँ एक बात हो सकती है तू इस राजा से अपनी अन्तिम इच्छा पूरी करने की याचना कर ले उस याचना में मांग ले कि मैं अपनी ‘‘माँ’’ से मिलना चाहता हूँ तब मुझे बुलाया जायेगा और मैं वहाँ आकर तेरे प्राणों की रक्षा कर सकती हूँ। उस युवक को एक बार फिर अपनी ‘‘माँ’’ की बुद्धि व शिक्षा पर सन्देह हुआ कि ‘‘माँ’’ मुझे कैसे जीवन दान दिला सकती है किन्तु सोचने का समय नही था। अतः संकट में ‘‘माँ’’ की बात मान ली और राजा से याचना की कि महाराज! फाँसी से पहले मेरी एक अन्तिम इच्छा है कि भरे दरबार में मेरी मुलाकात ‘‘माँ’’ से करवा दी जाय। उस राजा ने युवक की अन्तिम इच्छा मान ली और आदेश दिया कि इस युवक से पता पूछकर इसकी ‘‘माँ’’ को बुलाया जाय तब तक के लिए फाँसी की सजा टाल दी जाय। नगर के सिपाही उस बताये गये पते पर पहुँचे और उस युवक की ‘‘माँ’’ को दरबार में लाकर हाजिर किया। राजा ने दरबार में इस युवक को भी बुलाया माँ बेटे में कुछ काना-फूसी हुई माँ ने बेटे से कहा तुझे मेरी कसम है मेरे बेटे! मैं राजा से जो कुछ कहूँगी तू उसका विरोध नही करेगा और चुप रहेगा तभी तेरे प्राण बच सकते हैं। तब उस युवक की माँ ने कहा कि हे राजन् मेरे बेटे को फाँसी इसलिये दी जा रही है कि इसकी गर्दन मोटी है और फाँसी का फंदा इसकी गर्दन में सही बैठ गया है किन्तु इस मोटी गर्दन के लिए यह जिम्मेदार नही है इसके लिए मैं जिम्मेदार हूँ मैने इसको खिला पिलाकर और अपना दूध पिलाकर मोटा किया है इसकी मोटी गर्दन के लिए दोषी यह नहीं, दोषी मैं हूँ क्योंकि मैं इसकी माँ हूँ अतः फाँसी मुझको दी जाय महाराज! ऐसा सुनकर राजा ने आदेश दिया कि युवक को छोड़ दिया जाये और फाँसी इसकी माँ को दी जाय, वह इसलिए कि हमारे शास्त्रांे में भी लिखा है कि सजा चोर को नहीं चोर की नानी को दी जानी चाहिये। अतः यहाँ नानी मौजूद नहीं है और नानी इस दुनियाँ में भी नहीं है अतः इसकी ‘‘माँ’’ को तुरन्त फाँसी दे दी जाय। आदेश में विलम्ब न हो अगर फाँसी का फन्दा बड़ा पड़ रहा हो तो तुरन्त छोटा कर लिया जाय यह हमारा आदेश है और आदेश का पालन किया गया। उस युवक की ‘‘माँ’’ को फांसी दे दी गयी और उस युवक को बाइज्जत बरी कर दिया गया।

अब आप ही बताइये ‘‘माँ’’ के अलावा और कौन है जो आपके लिये अपने प्राणों की बलि दे दे उत्तर है कोई नही! अब आप समझे। ‘‘माँ’’ की कृपा और ‘‘माँ’’ का महत्व तथा ‘‘माँ’’ की शैक्षिक योग्यता! माँ की शैक्षिक योग्यता यह है कि वह अपनी बुद्धि से आपको फाँसी से भी मुक्ति दिला सकती है और बदले में खुद फाँसी के तख्ते पर झूल जाती है। मुसीबत में दुनियाँ आपका साथ छोड़ जाय किन्तु ‘‘माँ’’ आपका साथ नही छोड़ती। दुनियाँ आपको बुरा कहे लेकिन ‘‘माँ’’ आपको बुरा नही कहती है तब ऐसी महिमामयी ‘‘माँ’’ की महिमा को पहचानिये उसकी मूर्ति को मन मन्दिर में बैठाइये उसकी आराधना करिये, उसकी पूजा करिये आपको किसी भी मन्दिर, मस्ज़िद, गिरिज़ा व गुरुद्वारे में जाने की आवश्यकता नही है बस आवश्यकता है ‘‘माँ’’ से प्रेरणा लेने की। तथा गुणों की खान इस पूज्य ‘‘माँ’’ से कुछ गुण सीखने की जो अनगिनत गुणों से भरपूर है ‘‘मेरी माँ’’। मेरी माँ दया, धर्म, करुणा, क्षमा, सहनशीलता, कर्तव्य परायणता, त्याग, तपस्या, वफादारी, ईमानदारी, शालीनता, शान्ति, विनम्रता, कर्मठता, लगनशीलता की प्रतिमूर्ति है, यह तो दो चार उदाहरण मात्र हैं ‘‘माँ’’ के गुणों के। वरना ‘‘माँ’’ में तो इतने गुण विद्यमान है कि उन गुण का बखान भगवान राम और भगवान कृष्ण भी नही कर सके हैं तो मुझ जैसा तुच्छ लेखक माँ के गुणों का बखान कैसे कर सकता है? मेरे लिये बस इतना ही काफी है कि मैं ‘‘माँ’’ के महत्व को अपनी लेखनी द्वारा आपको पहचानने के लिये आपसे अनुरोध कर रहा हूँ इस लेख के माध्यम से। मैं यह जानता हूँ कि ‘‘माँ’’ के सम्पूर्ण गुणों को मैं और आप दोनो ही पूर्ण रुप से अपने जीवन में नही उतार सकते हैं। हाँ एक बात अवश्य है कि अगर हमने ‘‘माँ’’ के विराट रुप को थोड़ा बहुत भी पहचान लिया और अनगिनत गुणों की खान अपनी पूज्य ‘‘माँ’’ के कुछ प्रतिशत गुण भी यदि हमने अपने जीवन में उतार लिये तो हमें सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचने से दुनियाँ की कोई ताकत नही रोक सकती है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि जिस-जिस व्यक्ति ने अपनी ‘‘माँ’’ के गुणों को अपने जीवन में उतारा है वह इतिहास पुरुष बने हैं और बने हैं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम! जरा आप सोचिये कि अगर ‘‘राम’’ अपनी माता कैकयी की इच्छा का पालन न करते और वन को न जाते तो क्या ‘‘राम’’ मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम और भगवान श्री राम बन पाते? आज भगवान श्रीराम की घर-घर में पूजा होती है वह इसलिए कि उन्होंने कैकयी ‘‘माँ’’ की बात सहज भाव से शिरोधार्य की थी व प्रसन्नतापूर्वक बन चले गये थे। ‘‘माँ’’ के इस आदेश को पालन करने से ही राम को ‘‘भगवान राम’’ बना दिया अन्यथा दशरथ तो राम को केवल ‘‘राजा राम’’ बनाने जा रहे थे तो सोचिये कहाँ ‘‘राजा राम’’ और कहाँ ‘‘भगवान राम’’। यह जादू है माँ के आदेश में, माँ के आदेश के पालन से जब राम भगवान राम बन गये तो आप क्या बन सकते हैं माँ के आदेश पालन करने से, यह आप ही सोचिये। दूसरी और रावण ने अपनी ‘‘माँ’’ का आदेश नहीं माना था, सोचा था कि ‘‘माँ’’ कम पढ़ी  लिखी है, अज्ञानी है, और मैं चारो वेदों का ज्ञाता, विश्व का महान पंडित, विश्व में व्याप्त तमाम शक्तियों का स्वामी। मैं महान ज्ञानी हूँ और बात मान लूँ बिना पढ़ी लिखी ‘‘माँ’’ की! सो रावण ने माँ के आदेश की अवहेलना की, परिणाम सबके सामने हैं सोने की लंका जलकर राख हो गई व पूरा परिवार मिल गया खाक में। काश! रावण भी अपनी ‘‘माँ’’ के इस आदेश को कि सीता जी को पूर्ण सम्मान के साथ श्री राम को लौटा दो मान लेता तो रावण का जो हश्र हुआ वह न होता। कई बार ऐसा प्रतीत होता है कि ‘‘माँ’’ का यह आदेश हमारे हित में नही है? किन्तु ऐसा हमारी अज्ञानतावश होता है ऐसा कोई भी आदेश ‘‘माँ’’ कभी देती ही नही है जो कि हमारे हित में न हो। माँ के आदेश में सोचने विचारने की कोई गुंजाइश नही होती है, आप चाहे जितने बड़े विचारक हों चाहे जितने बड़े मनोवैज्ञानिक, वैज्ञानिक, डाक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर, प्रशासनिक अधिकारी, नेता, अभिनेता, संत, महात्मा हों  ‘‘माँ’’ की तुलना में आपका ज्ञान नगण्य हैं। इस बात को जब तक आप ध्यान में रखेंगे आप प्रगति पथ पर अग्रसर होते जायेंगे और जिस दिन आपने अपने ज्ञान को सर्वोपरि समझा और आपकी निगाह में ‘‘माँ’’ का स्थान नगण्य हो गया तो समाज की निगाह में आप नगण्य हो जायेंगे। आपका समाज में स्थान ‘‘माँ’’ के स्थान से जुड़ा है जितना अधिक आप अपनी ‘‘माँ’’ को महत्व देते हैं यह समाज उससे सौ गुना महत्व आपको देगा। अतः ‘‘माँ’’ के महत्व को समझिये, ‘‘माँ’’ के आदेशों का पालन करिये और पहुँच जाइये सफलता के सर्वोच्च शिखर पर, बिना ‘‘माँ’’ को महत्व दिये सफलता के शिखर पर पहुँचना एक दिवास्वप्न के बराबर है। जब ईश्वर ने ‘‘माँ’’ के महत्व को समझा है व ‘‘माँ’’ को ही सर्वोपरि माना है तो फिर आप कौन हैं? ईश्वर के सामने! यह प्रश्न मैं आपके लिये छोड़ रहा हूँ, आपके चिन्तन व मनन के लिए।

(हरि ओम शर्मा)
12, स्टेशन रोड, लखनऊ
फोन नं0: 0522-2638324
मोबाइल: 9415015045, 9839012365
ईमेल: hosharma12@rediffmail.com

Leave a Reply

You must be logged in to post a comment.

Advertise Here

Advertise Here

 

November 2024
M T W T F S S
« Sep    
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930  
-->









 Type in