महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत 90 करोड़ से अधिक धनराशि व्यय कर जिला ग्राम्य विकास अभिकरण (डीआरडीए) खुद की अपनी पीठ थपथपा रहा है। इसकी तह में जाएं तो कड़वी सच्चाई का पता चलता है। नतीजतन 33 हजार लाभार्थियों में महज 29 ऐसे सौभाग्यशाली अति गरीब हैं जिन्हें इस योजना का लाभ मिला है। यह वह लाभार्थी हैं जो इंदिरा आवासों में रहते हैं।
मनरेगा योजना की सबसे बड़ी मंशा यही थी कि गांव के गरीब परिवारों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने में सहयोग किया जा सके। इसके लिए श्रम शक्ति के बदले उन्हें अच्छी मजदूरी देकर शहरों की तरफ उनका पलायन रोका जाना था। योजना के तहत फैजाबाद में भी अब तक हजारों बीपीएल परिवारों को लाभांवित करने की बात कही जा रही है लेकिन हकीकत कुछ और ही है। डीआरडीए द्वारा संचालित इंदिरा आवास योजना के तहत बीते तीन वर्षो में 11 हजार से अधिक बीपीएल परिवारों को आवासीय सुविधा मुहैया कराई गई है। इसके अलावा वित्तीय वर्ष 2010-11 में ही तीन हजार 669 बीपीएल परिवारों को इंदिरा आवास आवंटित किए गए हैं। इन हजारों परिवारों में से तीन दर्जन परिवारों को भी मनरेगा में शामिल नहीं किया गया। इतना ही नहीं विभाग के पास यह सूची भी नहीं है कि इंदिरा आवास के लाभार्थियों में से कितनों को मनरेगा के तहत लाभ दिया गया? वहीं मनरेगा की वेबसाइट हकीकत से पर्दा उठाती है।
वेबसाइट में वित्तीय वर्ष 2010-11 के दौरान उत्पन्न रोजगार की टेबल के 11वें खाने में उन परिवारों की संख्या दर्ज की गई है जो इंदिरा आवास योजना और भूमि सुधार योजना के लाभार्थी हैं और उन्हें रोजगार मुहैया कराया गया है। सूची साफ करती है कि मयाबाजार, मिल्कीपुर, पूराबाजार और रुदौली विकासखंड में एक भी इंदिरा आवास धारक को रोजगार नहीं मुहैया कराया गया। हालांकि परियोजना निदेशक अजय प्रकाश कहते हैं कि योजना के तहत काम करने के इच्छुक परिवारों को रोजगार उपलब्ध कराने में कोई कोताही नहीं बरती जाती।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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