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रामलीला ग्राउण्ड ऐशबाग में कथा व्यास संत विजय कौशल जी महाराज के श्रीमुख से श्री रामकथा ज्ञान महोत्सव

Posted on 14 April 2011 by admin

लक्ष्मणपुरी सेवा संस्थान के तत्वावधान में पूज्य संत प्रवर विजय कौशल जी महाराज ने श्रीरामकथा ज्ञान यज्ञ महोत्सव के अन्तर्गत आज  चैथे दिन रामलीला ग्राउण्ड में हनुमान चालीसा के अर्थ का अमृतपान कराते हुए भारत की माताओं के त्याग व तपस्या को विस्तार से बताया। संतश्री विजय कौशल जी ने कहा कि गुजरीबाई जीजाबाई, अंजनि, सुमित्रा, उर्मिला, सीता सहित कई महान माताओं ने इस मातृभूमि में जन्म लिया जिससे यह देश धन्य हो गया। ये सभी त्याग, धैर्य व वीरता की मूर्ति हैं। इसलिये नारियों का देश में सम्मान होना चाहिए। वे कहते हैं कि माताओं का धर्म देखना है तो अम्बाला के पास स्थित सरहिन्द के द्वार पर जायें, जहाँ आज भी गुरू गोविन्द सिंह की माँ गुजरीबाई के त्याग व बलिदान की कहानी उन दीवारों में छिपी है। जिसमें उनके सामने गुरूगोविन्द जी के बेटों को चुनवा दिया था और उन बच्चों के सामने दादी गुजरीबाई को कत्ल कर दिया गया था। मगर गुजरीबाई ने धर्म परिवर्तन की बात को नहीं स्वीकार किया था।  चैतन्य महाप्रभु की माँ शचि ने भी बिना किसी स्वार्थ के अपने नवविवाहित बेटे चैतन्य को सन्यासी बनने के लिए गुरू के साथ भेज दिया।

लक्ष्मण की माता सुमित्रा ने वनवास जाने की आज्ञा मांगने पर अपने को लक्ष्मण की माँ होने से ही मना कर दिया था और कहा था कि तात तुम्हारि मातु वैदेही। पिता राम सब भाँति सनेही॥ अवध वहहिे जहाँ राम निवासू । तहहिं दिवस जहाँ भासनु प्रकासू॥ अर्थात सुमित्रा ने लक्ष्मण ने कहा कि लक्ष्मण मुझेे आज के बाद कभी माँ नहीं कहना तुम्हारी माँ वैदेही है और पिता राम हैं। राम तुम्हारे ही कारण वन जा रहे हैं क्योंकि तुम शेषनाग के अवतार हो।
तेरे सिर का भार उतारने के लिए ही वे वन जा रहे हैं। इसके बाद लक्ष्मण जी उर्मिला के पास जाने में संकोच कर रहे हैं। मगर उर्मिला तो उससे भी बड़े त्याग की मूर्ति है जो पहले से ही आरती का थाल लेकर लक्ष्मण क ो विदा करने के लिए खड़ी है। संतश्री कहते हैं कि लक्ष्मण जी मानव की भाषा में धर्म हैं। पत्नी वह है जो सभी प्रकार के संकोच को पति के मन से निकाल दे।

वे कहते हैं कि पत्नी के पति से पांच सम्बन्ध होते हैं। सखा, स्वामी, सहायक, पिता व माता। विवाहित होने पर सखा होते हैं। बच्चा होने पर सहायक हो जाते हंै। इसके बाद पिता  की भूमिका, इसके उपरान्त रक्षक हो जाती है और साठ वर्ष की आयु आते ही माता के समान व्यवहार करने लगती है। इसी लिए उर्मिला लक्ष्मण के सामने कई भूमिकाओं में खड़ी है। संतश्री विजय कौशल जी कहते हैं जो पति का कभी पतन या गिरने न होने दे, उसे पत्नी कहते हैं। उर्मिला का व्यवहार देखकर लक्ष्मण जी के रोने की कथा को बताते हुए विजय कौशल जी कहते हैं कि लक्ष्मण जी जीवन में तीन बार रोये हैं। एक बार उर्मिला द्वारा विदा किये जाते समय, दूसरी बार माता-सीता जी की अग्नि परीक्षा के समय तथा तीसरी बार माता सीता का राम के द्वारा परित्याग करते समय। संतश्री क हते हैं कि अयोध्या में राम राज्य सूर्यवंश के कारण नहीं, राजा जनक की पुत्रियों के कारण आया क्योंकि जनक के परिवार की बेटियों ने त्याग व धर्म का निर्वहन किया। संतश्री श्री निद्रा को लक्ष्मण जी द्वारा जीतने क ा प्रसंग बताते हुए कहते हैं कि निद्रा को जब लक्ष्मण जी ने जीत लिया तो वे उनके पास वरदान देने के लिए गयी। लक्ष्मण ने निद्रा को उर्मिला के पास भेज दिया। उर्मिला से निद्रा ने जब काफी अनुनय विनय की तो उर्मिला ने निद्रा से 14 वर्ष तक अपने द्वारा जलाये गये दीपक के जलते रहने का वरदान मांगा और कहा कि जब तक लक्ष्मण जी वापस नहीं आते, तब तक यह दीपक यूँ ही जलता रहे। तब क उनको अपनी उपासना में वासना की गंध ने आये अर्थात मेरी याद न आये। वीर और महावीर के  महत्व को बताते हुए संतश्री कहते हैं कि जो अपने अहंकार को तोड़ दे वह वीर व जो अपने अभिमान को छोड़ दे वह महावीर है। महावीर विक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी। अर्थात श्री हनुमान जी महावीर हैं। राम रघुवीर हैं। लक्ष्मण, भीष्म, अर्जुन,लवकुश वीर हैंै। वे कहते है कि वीर के पांच लक्षण होते हैं। जो दानवीर, धर्मवीर,विद्यावीर,ज्ञानवीर,दयावीर हैं और महावीर वे होते हैं जो पांच लक्षणों से युक्त वीर को अपने वश में कर ले, ऐसे महावीर हनुमान हैं।

श्री विजय कौशल जी ने हनुमान जी के बल का वर्णन करते हुए बताया कि 60 हजार हाथियों में जितना बल होता है, उतना दिगपाल। 60 हजार दिगपाल में जितना बल होता है उतना इन्द्र के ऐरावत में बल होता है, जितना बल 60 हजार ऐरावत में होता है उतना बल इन्द्र की दाहिनी भुजा में , 60 हजार इन्द्र की भुजाओं जितना बल हनुमान जी के कनिष्का उगली में होता है। लेकिन सुरसा के बढने पर हनुमान ने अपने आप को सबसे छोटा बना दिया और सुरसा के मुख में प्रवेश कर गये। उन्होंने अपने बल पर अहंकार नहीं किया। संतश्री कहते हैं कि अहंकारी कभी किसी की प्रशंसा नहीं करता। मगर हनुमान जी के बल की प्रशंसा रावण ने की।  श्री विजय कौशल जी ने बताया कि विक्रम वह होता है जिनकी बुद्घि, कौशल पर कोई अतिक्रमण न कर पाये। जिसको किसी भी प्रकार से कोइ उत्तेजित न कर पाये।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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