Categorized | विचार

बिमारी क्यों हो रही है?

Posted on 10 April 2011 by admin

100_2615जन लोकपाल विल के लिऐ दूसरी आजादी की लड़ाई जन्तर मन्तर पर जनयोद्धा अन्ना हजारे के नेतृत्व में जन की जीत के साथ कुछ सवाल जरूरी हो गये है कि देश में भ्रष्टाचार की बिमारी क्यों हुई है इसके पीछे छिपे कारणों को जानना और उनका परीक्षण करके उनका निदान किये बिना कोई भी फायदा नहीं मिल सकता है कानूनों के मकड़ जाल से जन यदि सुखी हो सकता होता तो कब का यह देश सोने की चिड़िया बन गया होता। कवि धूमिल जनतंत्र में संसद की जन के प्रति भूमिका पर सवाल करते हुए यह कविता लिखते है-

एक आदमी/रोटी बेलता है/एक आदमी रोटी खाता है/एक तीसरा आदमी भी है/जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है। /वह सिर्फ रोटी से खेलता है/मैं पूछता हूँ ‘यह तीसरा आदमी कौन है’? मेरे देश की संसद मौन है। इस मौन को तोड़ने के लिये संविधान में निहित आधार तत्व को समझकर एक बार फिर दूसरी आजादी की लड़ाई लड़ने का वक्त आ गया है। टयूनिशिया में हुई जनक्रांति की आहट हमारे देश में भी आने लगी है। इस आहट के पीछे के सच को खोजने का समय बेचैनी पैदा कर रहा है। आजादी के अनेक सालों के बाद दूसरी आजादी की परिकल्पना मन में आना कहीं न कहीं इस व्यवस्था में गुत्थमगुत्था पैदा होने का कारण है। यह विचित्र समय है जब जज से लेकर मंत्रियों तक के दामन दागदार दिख रहे है। डगमग-डगमग होती नैय्या के पीछे छिप शैतानी हाथों और उसके रिमोड कन्ट्रोल की सच्चाईयां जानना ही होगा। वरना पश्चाताप के सिवा कुछ शेष नही रह जायेगा। दिशाहीन, दिशाहारे लोग अपने स्वार्थो के लिये आँखों पर काली पट्टी बांध कर मौनी बाबा बने हुये है। उन्हें जन के मन से कोई लेनादेना नही है। सारे दरवाजे अकेलेपन जैसे हो गये है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की सोच को तिलांजलि देकर संविधान की मूल भावना को तिरोहित कर के संसद की सेन्टर टेबल पर खुशी मनाने में मग्न है। जनता की रूलाई उन्हंे दिखाई नही देती है। ऐसा लगता है कि जनता की आॅखों में उतरे शोक के आॅसू उन्हें खुशी के आॅसू नजर आ रहे है। लगातार किसान से लेकर युवा तक पराधीन और दैयनीय जीवन जीते जीते आत्महत्या तक करने को मजबूर है। आदमी के मरते हुये चेहरे को देखने का साहस न जुटा पाने वाले लोगों के खिलाफ एक कमजोर हाथ एक मुठ्ठी में ताकत बटोर कर सब कुछ तहस नहस न कर दे इससे पूर्व संविधान को एक बार देखने का वक्त आ गया है। सरकारें अनिश्चितांओं से नहीं अपितु जनमत कराकर नीति तय करे। बाजारवाद चलेगा या संविधान मंे प्रदत्त उद्देशिका वाला समाजवाद।

भारतीय संविधान के आधार-तत्व तथा उसका दर्शन
किसी संविधान की उद्देशिका से आशा की जाती है कि जिन मूलभूत मूल्यों तथा दर्शन पर संविधान आधारित हो तथा जिन लक्ष्यों तथा उद्देश्यों की प्राप्ति का प्रयास करने के लिए संविधान निर्माताओं ने राज्य व्यवस्था को निर्देश दिया हो, उनका उसमंे समावेश हो।

हमारे संविधान की उद्देशिका मंे जिस, रूप में उसे संविधान सभा ने पास किया था, कहा गया हैः हम भारत के लोग भारत को एक प्रभुत्वसंपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के लिए उसके समस्त नागरिकों को न्याय स्वतंत्रता और समानता दिलाने और उन सबमें बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प करते हैं। न्याय की परिभाषा सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय के रूप में की गई है। स्वतंत्रता में विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता सम्मिलित है और समानता का अर्थ है प्रतिष्ठा तथा अवसर की समानता ।

वास्तव में, न्याय, स्वतंत्रता, सामनता और बंधुता एक वास्तविक लोकतंत्रात्मक व्यवस्था के अत्यावश्यक सहगामी तत्व है, इसलिए उनके द्वारा केवल लोकतंत्रात्मक गणराज्य की संकल्पना स्पष्ट होती है। अंतिम लक्ष्य है व्यक्ति की गरिमा तथा राष्ट्र की एकता सुनिश्चित करना। इस प्रकार, उद्देशिका यह घोषणा करने का काम करती है कि भारत के लोग संविधान के मूल स्त्रोत हैं, भारतीय राज्य व्यवस्था में प्रभुता लोगों में निहित है और भारतीय राज्य व्यवस्था लोकतंत्रात्मकहै जिसमें लोगों को मूल अधिकारों तथा स्वतंत्रताओं की गारंटी दी गई है तथा राष्ट्र की एकता सुनिश्चत की गई है। हमारे संविधान की उद्देशिका में बहुत ही भव्य और उदात्त शब्दों का प्रयोग हुआ है। वे उन सभी उच्चतम मूल्यों को साकार करते हैं जिनकी प्रकल्पना मानव-बुद्धि,  कौशल तथा अनुभव अब तक कर पाया है।

42वें संशोधन के बाद जिस रूप में उद्देशिका इस समय हमारे संविधान में विद्यमान है, उसके अनुसार, संविधान निर्माता जिन सर्वोच्च या मूलभूत संवैधानिक मूल्यांे मंे विश्वास करते थे, उन्हें सूचीबद्ध किया जा सकता है। वे चाहते थे कि भारत गणराज्य के जन-जन के मन में इन मूल्यों के प्रति आस्था और प्रतिबद्धता जगे-पनपे तथा आनेवाली पीढ़ियां, जिन्हें यह संविधान आगे चलाना होगा, इन मूल्यों से मार्गदर्शन प्राप्त कर सकें। ये उदात्त मूल्य हैः

संप्रभुता, समाजवाद, पंथनिरपेक्षता, लोकतंत्र, गणराज्यीय स्वरूप, न्याय, स्वतंत्रता, समानता, बंधुता, व्यक्ति की गरिमा, और, राष्ट्र की एकता तथा अखंडता।

समाजवाद
संविधान निर्माता नहीं चाहते थे कि संविधान किसी विचारधारा या वाद विशेष ने जुड़ा हो या किसी आर्थिक सिंद्धात द्वारा सीमित हो। इसलिए वे उसमंे, अन्य बातों के साथ-साथ, समाजवाद के किसी उल्लेख को सम्मिलित करने के लिए सहमत नही हुए थे। किंतु उद्देशिका मंे सभी नागरिकों को आर्थिक न्याय और प्रतिष्ठा तथा  अवसर की समानता दिलाने के संकल्प का जिक्र अवश्य किया गया था। संविधान (42वां संशोधन) अधिनियम, 1976 के द्वारा हमारे गणराज्य की विशेषता दर्शाने के लिए समाजवादी शब्द का समावेश किया गया। यथासंशोधित उद्देशिका के पाठ मंे समाजवाद के उद्देश्य को प्रायः सर्वोच्च सम्मान का स्थान दिया गया है। संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न के ठीक बाद इसका उल्लेख किया गया है। किंतु समाजवाद शब्द की परिभाषा संविधान मंे नही की गई।

संविधान (45वां संशोधन) विधेयक मंे समाजवादी की परिभाषा करने का प्रयास किया गया था तथा उसके अनुसार इसका अर्थ था इस प्रकार के शोषण-सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक-से मुक्त। इस विधेयक को अंततः 44वें संशोधन के रूप में पास किया गया, किंतु इसमंे समाजवादी की परिभाषा नहीं थी। समाजवादी की परिभाषा करना कठिन है। विभिन्न लोग इसका भिन्न-भिन्न अर्थ लगाते है और इसकी कोई निश्चित परिभाषा नहीं है। शब्दकोश के अनुसार समाजवाद मंे उत्पादन तथा वितरण के साधन, पूर्णतया या अंशतया, सार्वजनिक हाथों मंे अर्थात सार्वजनिक (अर्थात राज्य के) स्वामित्व अथवा नियंत्रण में होने चाहिए।

समाजवाद का आशय यह है कि आय तथा प्रतिष्ठा और जीवनयापन के स्तर मंे विषमता का अंत हो जाए। इसके अलावा, उद्देशिका मंे समाजवादी शब्द जोड़ दिए जाने के बाद, संविधान का निर्वचन करते समय न्यायालयांे से आशा की जा सकती थी कि उनका झुकाव निजी संपत्ति, उद्योग आदि के राष्ट्रीयकरण तथा उस पर राज्य के स्वामित्व के तथा समान कार्य के लिए समान वेतन के अधिकार के पक्ष में होता है। ’

भारतीय संविधान के उद्देश्यों के विरूद्ध
गुपचुप तरीके से बाजारवादी व्यवस्था को थोपने के दुस्परिणाम सामने आने लगे है। नक्सलवाद और अराजकता के जाल मंे उलझते भारत को बचाने के लिए सिर्फ जनलोक पाल बिल से काम चलने वाला नहीं है हमें सरकार पर दबाव डालना होगा कि आपने बिना रिफरेडम कैसे बाजारवादी व्यवस्था को अपना लिया है दूसरी आजादी तभी मिलेगी जब तक हम समाजवादी व्यवस्था लागू नहीं करवा पाते है जो संविधान की मूल भावना की उद्देशिका में सामिल किया गया है। बदलते परिवेश में क्या देश के लिऐ उचित है क्या अनुचित?  फैसला जनमत संग्रह से होना चाहिए। यह कोई सामान्य व्यवस्था नहीं है जिसे हमारे चुने प्रतिनिधि तय कर ले, बल्कि संविधान के उद्देश्यों मंे परिवर्तन लाना है। बर्ना लगड़ी और कटपुतली सरकारें  टाटा और अंबानी जैसे बाजारवादी व्यवस्था के समर्थक लोगों की चेरी बनने को मजबूर रहेगी और बजारवादी लोग अपने लाभकारी निहतार्थ पूरे करते रहेंगे। जन लोकपाल बिल में कुछ शर्ते जोड़ना होगी जिनमें कानून के विपरीत कार्य मंे स्वतः रदद होना मुख्य होता है इस देश को बचाना है तो सबसे पहले कानून के विपरीतकार्य के द्वारा होने वाले लाभ को रद्द करना अनिवार्य कदम होगा। जिस तरह टू-जी स्टेंप घोटाले में लाईसेंस होल्डरों के लाईसेंस अभी तक रद्द न होना चिंता का सबब बना हुआ है इसी कारण गलत कार्यो को लगातार होने को बल मिलता है। सबसे पहले टूजी घोटाले के लाभार्थियों के करार को रद्द करने के साथ ही घोटाले करने वालों की सजा के मामले में निर्णय देने की समय सीमा न्यायालय के सामने होना चाहिए। करार रद्द होने के कारण कोई भी कठिनाई पैदा हो और इस कठिनाई से जूझने के लिए भारतीय जनता को तैयार रहना चाहिए क्योकि जो भी कार्य जन्म से ही गलत था उसे कैसे न्याय उचित या देश की पूॅजी के नाम पर पर्दा डालने का खेल खेला जा सकता है। इन कठोर निर्णय के बिना  भ्रष्टाचार का सिलसिला नही रुक सकता है।  ट्रांसफर प्रापर्टी एक्ट जैसे अनेक प्रावधान है जिनमें कुछ कानून के अन्तर्गत स्वतः निरस्त हो जाते है और कुछ को इंगित करने पर निरस्त किया जाता है। लेकिन जो कार्य जन्म से ही गलत है उसे खत्म होना ही चाहिए। चाहे इस कार्य को सरकार ने किया हो या पूंजीपति ने अथवा जनता ने यह तो तय करना ही होगा। क्योंकि आर्दश सोसायटी जैसे अनेक मामले सामने आये हैै जहां पर्यावरण को अनदेखा किया गया। कहीं नीतियों में हेरफेर किया गया। तो कहीं लाभार्थियों के नाम बदले गये है। जब जन्म से ही इन मामलों में गलत हुआ है तो उसे रद्द करना ही पड़ेगा। हमे बिमारी को दबाने के उपाय के स्थान पर बिमारी के कारणों की खोज करना जरूरी है। तभी बिमारी का समूलनाश हो पायेगा।

’ इस आलेख में सुभाष कश्यप लिखित पुस्तक हमारा संविधान के अंश समाहित है।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
राजसदन- 120/132
बेलदारी लेन, लालबाग
लखनऊ
मो0ः 9415508695
(लेखक-दैनिक भास्कर के लखनऊ ब्यूरोप्रमुख है।)

Leave a Reply

You must be logged in to post a comment.

Advertise Here

Advertise Here

 

November 2024
M T W T F S S
« Sep    
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930  
-->









 Type in